Shambhunath Shukla-
अल्लाह हो अकबर और हर-हर महादेव के सम्मिलित नारे ने बहुत कुछ तय कर दिया है। न सिर्फ़ 2022 के लिए बल्कि 2024 के लिए भी। मीडिया को अपने केंद्र में गाँवों को भी रखना चाहिए क्योंकि गाँव भविष्य की राजनीति तय करते हैं, ये चौड़ी-चौड़ी सड़कें, तेजस और बुलेट ट्रेनें नहीं। बीजेपी के पास सिर्फ़ राम थे लेकिन अब कांग्रेस के महादेव राम पर भारी पड़ेंगे।
साम्प्रदायिक वैमनस्य कुछ समय तक ही लाभकारी होता है मगर जब महँगाई, बेरोजगारी और अफ़रा-तफ़री से मनुष्य ही ख़तरे में हो तो लोग स्वतः एक हो जाते हैं और यही कल मुज़फ़्फ़र नगर की महा पंचायत में दिखा। वहाँ पर जो आज तक की रिपोर्टर चित्रा त्रिपाठी के साथ हुआ, वह संकेत है कि मीडिया ने अगर सच न दिखाया तो उसकी लुटिया भी डूबेगी।
Rangnath Singh-
‘अल्लाहू अकबर’ और ‘हर हर महादेव’ का नारा एक साथ लगाना अच्छी शुरुआत है। इससे साम्प्रदायिक सौहार्द्र बढ़ने की आशा बढ़ती है। मेरे ख्याल से, राकेश टिकैत तो इसे मंच से लगा सके लेकिन ओवैसी या आजम खान को एक साथ दोनों नारा लगाने में शायद मुश्किल होगी। इस मुद्दे पर इन दोनों नेताओं के स्टैण्ड का इंतजार रहेगा।
Charan Singh Rajput-
अखिलेश के चेहरे पर मुस्कान और योगी के माथे पर शिकन दे गई किसान महापंचायत… भाजपा को झटके के रूप में देखा जा रहा है जाट बहुल मुजफ्फनगर में योगी-मोदी मुर्दाबाद के नारों का लगना… नये किसान कानूनों को वापस कराने के लिए 9 माह से चल रहा किसानों का आंदोलन मोदी सरकार के लिए दिक्कत पैदा करे या न करे पर अगले साल उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में यह आंदोलन योगी आदित्यनाथ की सरकार के लिए दिक्कतें पैदा करने वाला है। वैसे भी किसान आंदोलन की तुलना भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत ने आजादी की लड़ाई से कर आंदोलन के और तेज होने के संकेत दे दिय हैं। योगी के लिए सोचने का विषय यह भी है कि सपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लडऩे की रणनीति बना रहे रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन को भुनाने में जुट गये हैं।
जयंत चौधरी बाकायदा किसान महापंचायत पर हेलीकाप्टर से पुष्पों की वर्षा करने की तैयारी कर रहे थे पर जिला प्रशासन ने किसानों में भगदड़ मचने का अंदेशा जताकर उन्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं दी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में ‘यूपी मिशनÓको लेकर हुई किसान महापंचायत में उमड़ी भारी भीड़ किसान आंदोलन की मजबूती का संदेश दे गई। भले ही योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के किसानों को रिझाने के लिए तमाम प्रयास कर रहे हों पर गन्ने का बकाया भुगतान तथा बिजली की महंगी दरों को मुद्दा बनाने वाले राकेश टिकैत योगी सरकार के लिए मुसीबतें खड़ी करने वाले हैं।
मुजफ्फरनगर जिले के जीआईसी मैदान में हुई हुई महापंचायत में संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले सैकड़ों किसानों ने केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की। जाट बहुत जिले मुजफ्फरनगर में योगी-मोदी मुर्दाबाद के नारे भाजपा के लिए खतरा भी बन सकते हैं। यह वही मुजफ्फरनगर जिला है, जिसमें हुए दंगों को भुनाकर भाजपा ने न केवल आम चुनाव बल्कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में फतह हासिल की थी। इस महापंचायत में देशभर के 300 से ज्यादा सक्रिय संगठनों के शामिल होने का दावा किया गया है। इन संगठनों में 60 किसान संगठन बताये जा रहे हैं।
महापंचायत में कर्मचारी, मजदूर, छात्र, शिक्षक, रिटायर अधिकारी, सामाजिक, महिला आदि संगठनों के कार्यकर्ताओं के पहुंचने का दावा महापंचायत आयोजकों ने किया है। किसानों की महापंचायत में महिलाएं भी जोर-शोर से अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए पहुंची थी। योगी सरकार के लिए यह दिक्कतभरा है कि उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी सपा के सहयोगी संगठन रालोद का पर्दे के पीछे से किसान महापंचायत को पूरा समर्थन है। खुद राकेश टिकैत रालोद के टिकट पर अमरोहा सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी तो किसान महापंचायत पर हेलकाप्टर से पुष्पों की वर्षा करना चाहते थे पर भगदड़ मचने के अंदेशा का हवाला देते हुए जिला प्रशासन ने इसकी अनुमति नहीं दी।
किसान एकता मोर्चा ने ट्वीट कर कहा कि केंद्र सरकार जिन्हें ‘चंद किसान’ बताकर नकार रही थी, मुजफ्फरनगर में इन किसानों ने अपनी ताकत दिखाई है। किसानों ने एक रणनीति के तहत महापंचायत का स्थान पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मुजफ्फरनगर जिला चुना है। मुजफ्फरनगर एक तो किसान राकेश टिकैत का गृह जनपद है। उनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत ने किसानों की जमीनी लड़ाई लड़ी है। मुजफ्फरनगर के पड़ोसी जिले बागपत के पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह और उनके पुत्र अजित थे, अब उनके पौत्र जयंत चौधरी रालोद की कमान संभाल रहे हैं। मुजफ्फरनगर जिले की सीमा से लगे मेरठ, सहारनपुर, बिजनौर किसान बहुल जिले हैं।
दरअसल उत्तर प्रदेश में जाटों का बड़ा दबदबा माना जाता है। यह माना जाता है कि चाहे लोकसभा चुनाव हो या फिर विधानसभा चुनाव, जाट मतदाता जिधर गए उसी का बेड़ा पार हो गया। 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव और 2019 का लोकसभा चुनाव इसका ताजा उदाहरण है। इससे भी पहले वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जाटों ने अपना जनादेश कुछ इस तरह दिया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सभी लोकसभा सीटें भारतीय जनता पार्टी के खाते में आ गईं। यह सिलसिला 2019 के लोकसभा चुनाव में भी जारी रहा। यहां पर भाजपा की एकतरफा जीत रही। सपा-बसपा और रालोद का मजबूत गठबंधन भी पिट गया। वैसे तो पूरे उत्तर प्रदेश में जाटों की आबादी 6 से 8 फीसद के आसपास है, लेकिन पश्चिमी यूपी में जाट 17 फीसद से ज्यादा हैं। खासतौर से सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, बिजनौर, गाजियाबाद, मुरादाबाद, संभल, अमरोहा, बुलंदशहर, हाथरस, अलीगढ़, नगीना, फतेहपुर सीकरी और फिरोजाबाद में जाटों की ठीकठाक आबादी है।
ऐसे में आगामी यूपी विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर सभी दलों ने जाट वोटों को लेकर सक्रियता बढ़ा दी है। जाटों को लुभाने में राकेश टिकैत को साधना मुख्य माना जा रहा है। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश के भाजपा समर्थक किसान आंदोलन को जाटों और गुर्जरों का आंदोलन बता रहे हैं। वैसे भी गाजीपुर बॉर्डर पर चल रहे किसानों के आंदोलन पर भारतीय जनता पार्टी भी निगाह बनाए हुए है। राकेश टिकैत पर भाजपा की खास नजर है। सिर्फ उत्तर भारत के कुछ राज्यों तक सिमटे राकेश टिकैत फिलहाल किसानों के बड़े नेता के तौर पर शुमार किए जाने लगे हैं। नये किसान कानूनों को लेकर 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को लामबंद होकर वोट करने वाले जाट 2022 के चुनाव में भाजपा के खिलाफ जा सकते हैं जो भाजपा के लिए चिंता का विषय है।