Connect with us

Hi, what are you looking for?

साहित्य

दोनों जवानी में कम्युनिस्ट थे और दोनों का मार्क्सवाद से मोहभंग समान कारण से हुआ!

कृष्ण कल्पित-

अलविदा मिलान कुंदेरा… नोबेल पुरस्कार की प्रतीक्षा में… दुनिया के साहित्य जगत में नोबेल पुरस्कार की हैसियत मोक्ष जैसी हो गई है । आज मिलान कुंदेरा(94) की मृत्यु पर दुनिया भर में जो भी लिखा जा रहा है, उसमें इस बात का अफ़सोस जताया जा रहा है कि मिलान कुंदेरा को नोबेल पुरस्कार नहीं मिला, जबकि वे इसके हकदार थे । उन्हें कई बार नोबेल के लिए नामित किया गया, हालांकि नोबेल के लिए सबसे अधिक बार नामित वी एस नायपॉल को किया गया था ।

Advertisement. Scroll to continue reading.

नायपॉल को जब इस शताब्दी की शुरुआत में नोबेल दिया गया तो उन्होंने एक रेडियो इंटरव्यू में इसका बदला लेते हुए और प्रतिकार करते हुए कहा कि मैं पेरिस की उन वैश्याओं और नोबेल कमेटी का आभार व्यक्त करता हूं जिन्होंने मुझे सुकून दिया । कामसुख और आराम दिया ।

मिलान कुंदेरा लंबे समय से बीमार थे और नोबेल का इंतजार करते हुए आखिरकार मर गए । नोबेल नहीं मिलने से मिलान कुंदेरा कमतर लेखक नहीं हो गए । लेकिन सभी इस बात का अफ़सोस जता रहे हैं । हो सकता है उनको नोबेल पुरस्कार के लिए पुनर्जन्म लेना पड़े ।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मिलान कुंदेरा के साथ हिंदी दुनिया में निर्मल वर्मा का नाम आ रहा है जिन्होंने उनकी कहानियों के अनुवाद हिन्दी में किए । निर्मल और कुंदेरा न केवल समकालीन थे बल्कि हमउम्र थे । भारत सरकार की फैलोशिप पर निर्मल वर्मा जब प्राग गए तो उन्होंने उनकी एक कहानी खेल खेल में का हिंदी अनुवाद किया जो उस समय सारिका में प्रकाशित हुआ ।

मिलान कुंदेरा और निर्मल वर्मा न केवल हमउम्र थे, बल्कि दोनों जवानी में कम्युनिस्ट थे और दोनों का मार्क्सवाद से मोहभंग भी समान कारण से हुआ । ऐसा लगता है जैसे निर्मल वर्मा मिलान कुंदेरा को फॉलो कर रहे हों । उसी पथ पर चल रहे हों । निर्मल वर्मा ने मिलान कुंदेरा की रचनाओं का चेक भाषा से हिन्दी में अनुवाद किया लेकिन मिलान कुंदेरा ने निर्मल वर्मा की किसी रचना का अनुवाद नहीं किया, जबकि दोनों समकालीन थे और हमउम्र थे । हो सकता है मिले भी हों ।

निर्मल वर्मा को मिलान कुंदेरा की तरह कभी नोबेल पुरस्कार के लिए नामित नहीं किया गया, हालांकि अटल बिहारी वाजपेई की सरकार ने न केवल निर्मल वर्मा को पद्मभूषण दिया बल्कि निर्मल वर्मा के लिए नोबेल के लिए सरकारी संस्तुति भेजी जो सिर्फ़ औपचारिकता होती है । सभी सरकारों से उनके देश के लेखकों की संस्तुति मांगी जाती है, जिसे नोबेल कमेटी कभी गंभीरता से नहीं लेती । निर्मल वर्मा हिन्दी में जितने विशिष्ट और अलग नज़र आते हैं, वे अंग्रेज़ी अनुवाद में अतिसाधारण हो जाते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मिलान कुंदेरा बिना नोबेल पुरस्कार भी बीसवीं शताब्दी के महान लेखक थे और रहेंगे, लेकिन नोबेल की लालसा ने कितने महान लेखकों को टुच्चा बना दिया, इसकी कहानी भी कम दिलचस्प नहीं । जैसे नोबेल पुरस्कार के लालच ने सलमान रुश्दी जैसे अतिप्रतिभावान लेखक को काना/बौना बना दिया ।

नोबेल पुरस्कार महानता की राह का रोड़ा है, लालच है, जिसे हटाए बिना भविष्य में कोई लेखक महान नहीं हो सकता !

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement