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सुख-दुख

मोदी की वैक्सीन सवालों के घेरे में!

सौमित्र रॉय-

मोदी राज के पिछले 7 साल में ऐसा कई बार हुआ है। साइंस की बात आते ही भगवा जमात की सारी प्रबुद्धता की हवा निकल जाती है।

बिना सोचे-समझे दुनिया का सबसे कड़ा लॉकडाउन लगाने की मूर्खता अब इतिहास बन चुकी है।

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ताजा मामला वैक्सीन का है। आज के टाइम्स ऑफ इंडिया में डॉ. गगनदीप कांग के इस इंटरव्यू को गंभीरता से पढ़ें। डॉ. कांग कोअलिशन फॉर एपिडेमिक प्रिपेयर्डनेस इनोवेशन (सीईपीआई) की उपाध्यक्ष हैं।

वे दुनिया की एक नामचीन वैज्ञानिक हैं। वे खुद भी कोवैक्सीन और कोविडशील्ड को लेकर मोदी सरकार की मूर्खता से हैरान हैं।

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वे इस बात पर भी हैरान हैं कि दोनों वैक्सीन के अब तक के ट्रायल पर सार्वजनिक रूप से किसी साइंस जर्नल में अभी तक कोई भी डेटा नहीं होने के बाद भी डीसीजीआई ने उन्हें अप्रूवल कैसे दे दिया?

डॉ. कांग यह भी कहती हैं कि दोनों वैक्सीन निर्माता कंपनियों ने वैक्सीन के प्रभावी होने को लेकर कोई भी प्रमाण या आंकड़े नहीं दिए हैं। ऐसे में यह बात कैसे कही जा रही है कि वैक्सीन के दो डोज लेने होंगे ?

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एक और अहम बात। कोविडशील्ड के बारे में कहा गया है कि यह फेस 2/3 के क्लीनिकल ट्रायल मोड में है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें तो इसे फेस 2 ट्रायल माना जाता है, जो कि किसी भी वैक्सीन की सुरक्षा और रोग प्रतिरोधकता से जुड़ा है। फेस 3 ट्रायल वैक्सीन के प्रभावी और उपयोगी होने के बारे में किया जाता है।

इन सबके बावजूद हड़बडी किस बात की है ?

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हड़बड़ी है खुद को आत्मनिर्भर, सक्षम दिखाने की। हड़बड़ी है हर जोखिम को अनदेखा कर लोगों को वैक्सीन लगाकर उनकी जान से खेलने की।

क्योंकि खुद प्रधानमंत्री ऐसा चाहते हैं। भारत के प्रधानमंत्री की शैक्षणिक योग्यता, उनकी डिग्री सवालों के घेरे में है।

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वे खुद को चाय बेचने वाला बताते हैं, लेकिन साइंस की ऊंची-ऊंची बातें करते हैं।

वे हर बात पर अपनी छाती ठोकना चाहते हैं, क्योंकि ऐसा करके ही उनका राज चल रहा है।

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लेकिन आम जनता की जान से खेलने का उन्हें कोई हक नहीं।

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