शीतल पी सिंह-
साहेब लगभग रोजाना देश विदेश के दौरे पर रहते हैं। प्रधानमंत्री के रूप में अब तक के सारे प्रधानमंत्रियों ने मिलकर जितनी हवाई यात्राएं की होंगी, साहेब ने उस आंकड़े को तोड़ जरूर दिया होगा।
लेकिन प्रधानमंत्री की इस गगन विहारिता की बहुत बड़ी क़ीमत है। संलग्न क्लिपिंग्स साहेब के चंद दौरों के दौरान संबंधित सिविक बाडीज द्वारा किए गए खर्चों की हैं जो दस बारह करोड़ से चालीस पचास करोड़ प्रत्येक की है।
इसमें साहेब की सुरक्षा और यात्रा व्यय का उल्लेख नहीं है। संबंधित राज्य के सुरक्षा बलों की तैनाती पर किया गया खर्च भी शामिल नहीं है। बहुत कंजूसी से भी जोड़ा जाय तो साहेब का घर से बाहर निकाला हर कदम केजरीवाल के बंगले के रंगरोगन के पैंतालिस करोड़ के दावे से कम तो नहीं ही हो सकता ।
साहेब साल के तीन सौ पैंसठ दिनों में से कम से कम तीन सौ दिन तो दौरे पर निकलते ही हैं क्योंकि अब तो म्युनिसिपल चुनाव तक उन्हीं को लड़ना लड़ाना पड़ता है। शौचालय से देवालय तक और वायुमंडल से पाताल लोक तक हर वस्तु का उद्घाटन उन्हीं के जिम्मे है! वे करें भी तो क्या करें?
तो इस तरह प्रतिदिन के गगन विहार पर अनुमानित ख़र्च यदि पचास करोड़ रुपए भी रख लें और साल के तीन सौ दिनों से इसका गुणा कर दें तो पूरे पंद्रह हज़ार करोड़ का बजट तो सिर्फ़ साहेब के वार्षिक गगन विहार का है! शायद ही दुनिया का कोई राष्ट्राध्यक्ष इसका मुकाबला कर सके!
क्योंकि………. हैं तो मुमकिन है।
अशोक कुमार शर्मा
May 1, 2023 at 11:17 pm
अगर हम भारत के सभी प्रधानमंत्रियों पर हुए खर्च और उनके द्वारा किए गए कार्यों तथा देश की स्थिरता आर्थिक समृद्धि और विश्व पटल पर उसकी हैसियत का मूल्यांकन भी करते चलें तो पता चलेगा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के ऊपर होने वाला व्यय, उनके पहले हुए किसी भी प्रधानमंत्री या संवैधानिक राष्ट्र प्रमुख की विभिन्न देशों में होने वाली यात्राओं और देश में होने वाले दौरों पर सामान्यतः किए जाने वाला व्यय की तुलना में कुछ भी नहीं है।
लोकसभा क्षेत्र फूलपुर में जब नेहरू के खिलाफ समाजवादी पुरोधा डॉ. राममनोहर लोहिया चुनाव मैदान मे उतरे थे, तब उनकी करारी हार हुई थी। नेहरू को कुल एक लाख 18 हजार 931 वोट मिले। जबकि डॉ. लोहिया को मात्र 54 हजार 360 वोट ही हासिल हुए थे। इस चुनाव से ठीक पहले लोहिया ने कहा, ” .. कहीं जाएं, ना जाएं, तब भी प्रधानमंत्री नेहरू पर रोजाना 25 हजार रुपये खर्च होते हैं जबकि देश की तीन चौथाई आबादी को प्रतिदिन दो आने भी नहीं मिलते हैं! आम मतदाता को नेहरू का सालाना रुपए 91,25,000 खर्चा झेलना पड़ता है।”
खुद नेहरू जी के दामाद फिरोज गांधी ने संसद में 1957-58 जब मूंदड़ा कांड उछाला था, तब अखबारों में नेहरू जी की हवाई यात्राओं और उस विफल विदेशनीति की भी चर्चा हुई थी जिसके चलते भारत से चीन ने 36 हजार वर्ग मील सीमांत क्षेत्र छीन लिया और बाद में काश्मीर का भी बड़ा भाग भारत के हाथ से निकल गया। इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में उठाने की बुद्धिमानी किसकी थी?
विदेश यात्राएं और भारत में भ्रमण नेहरू जी के बाद लाल बहादुर शास्त्री जी ने भी किए, लेकिन उन पर कोई आरोप नहीं लगा। मुझे अच्छी तरह से याद है कि जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी तब उन्होंने अपने बेटे राजीव गांधी की मित्र सोनिया स्टीफेनो माइनो से मिलने के लिए तमाम कार्यक्रमों को रद्द किया और देर रात तक उसके साथ में बातचीत की। इस पर एक डॉक्यूमेंट्री भी बनी है।
मुझे मालूम है कि मैं यह सब तर्क देकर कोई अच्छा कार्य नहीं कर पा रहा हूं क्योंकि असहमति का स्तर बना ही रहेगा।
असल बात नरेंद्र मोदी से असहमति की नहीं घृणा की है। इसलिए अगर मैं यह कहूंगा कि नेहरू जी के 17 वर्ष के प्रधानमंत्री कार्यकाल में, इंदिरा जी के 15 वर्ष, राजीव गांधी के 5 वर्ष, नरसिंह राव के 5 वर्ष, अटल बिहारी वाजपई के पांच वर्ष और मनमोहन सिंह के दस वर्ष के कार्यकाल में सबसे मंहगे लेकिन देश के लिए कुछ भी ना कर पानेवाले प्रधानमंत्री कौन थे, तो बहुतों को बुरा भी लगेगा।
आप जान लीजिए कि आम चुनावों से पहले इस बारे में जल्दी ही केंद्र सरकार पूर्व प्रधानमंत्रियों के खर्चों का श्वेत पत्र भी जारी करेगी। उसमें एक कांग्रेसी सुपर प्रधानमंत्री के किसी खास रोग पर सरकारी इलाज का खर्च का ब्यौरा भी सबको मज़ा देगा।