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सियासत

सरकार ने अपने ही देश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है

अखबार के पहले पन्ने पर सरकारी कर्मचारियों के कामचोर होने वाला इंटरव्यू यूँ ही नहीं छप गया है। जिस अखबार में छपा है, उसकी उस चैनल से दोस्ती है जो सरकार का सबसे बड़ा भोंपू है। फिलहाल लक्ष्य दो चीजों पर है। तालियों पर मुग्ध हो जाने वाला राजा सौ फीसदी एफडीआई का बाजा बजा आया है। रेलवे से लेकर रक्षा क्षेत्र में सौ फीसदी एफडीआई का मतलब निजीकरण का खूब चौड़ा रास्ता निकालना है।

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अखबार के पहले पन्ने पर सरकारी कर्मचारियों के कामचोर होने वाला इंटरव्यू यूँ ही नहीं छप गया है। जिस अखबार में छपा है, उसकी उस चैनल से दोस्ती है जो सरकार का सबसे बड़ा भोंपू है। फिलहाल लक्ष्य दो चीजों पर है। तालियों पर मुग्ध हो जाने वाला राजा सौ फीसदी एफडीआई का बाजा बजा आया है। रेलवे से लेकर रक्षा क्षेत्र में सौ फीसदी एफडीआई का मतलब निजीकरण का खूब चौड़ा रास्ता निकालना है।

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इस सांकरी प्रेम गली को अब 6 लेन में बदलना है। तो इसके लिए जरूरी है कि सरकारी सेवाओं को बदनाम किया जाए। जिन्होंने कूरियर सर्विस की मनमानी भुगती है, वे जानते हैं कि इंडिया पोस्ट आज भी डाक की सबसे भरोसेमंद सेवा है। रेल का उदाहरण भी सामने हैं। जस्टिस माथुर बहुत भोले हैं। उन्हें नहीं पता कि रेल में उन्हें जो गन्दी चादर दे जाता है वह सरकार का नहीं ठेकेदार का आदमी है। उसी ठेकेदार का जो निजीकरण की अवैध संतान है। ब्रिटेन की रेल का उदाहरण सामने है, जिसका थैचर ने निजीकरण कर दिया था। लोग त्रस्त हो गए थे। पर अपनी सरकार को इससे मतलब नहीं है। वह तो देश को बेचने की राह में निकल पड़ी है तो अपने ही मुलाजिमों को हरामखोर बता रही है।

दूसरा लक्ष्य तात्कालिक है। कर्मचारी हड़ताल पर जाने वाले हैं। हड़ताल के समय भोंपू मीडिया किस तरह विक्षिप्तों की तरह व्यवहार करता है, यह हमें पता है। इसलिए जस्टिस माथुर का यह बयान जरुरी था कि सरकारी कर्मचारी निकम्मे हैं। ‘ देखो तो, निकम्मे होने के बाद भी इतनी तनख्वाह बढ़ा दी, फिर भी नालायकों को सबर नहीं है और उल्टे हड़ताल पर उतर आये हैं।’ यह प्रचार जरुरी है और इस प्रचार की शुरुआत शातिर जेटली ने इस झूठ के साथ की कि आयोग ने ऐतिहासिक अनुशंसा की है।

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जस्टिस अशोक कुमार माथुर ने यह नहीं बताया कि उच्च पदों के वेतन में इतनी बढ़ोत्तरी क्यों है। नहीं बताएँगे क्योंकि वे उसी श्रेणी में आते हैं। अखबार में छपा उनका इंटरव्यू यह बताता है कि पूंजीवादी व्यवस्था में किस तरह कॉर्पोरेट सत्ता के साथ मीडिया को अपना टूल बनाते हैं। इस सरकार ने अपने ही देश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कर्मचारी निकम्मे हैं, आदिवासी नक्सली हैं, छात्र देशद्रोही हैं, छोटे व्यापारी चोर हैं, किसान कायर और नपुंसक हैं, कवि-लेखक छवि-विध्वंसक हैं और सैनिक देश की अर्थ-व्यवस्था पर बोझ हैं। देश सिर्फ अडानी-अम्बानी और उनके बापों का हैं। आप इनसे सहमत न हों तो कोई और देश चुन लें।

Dinesh Choudhary
[email protected]

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0 Comments

  1. Rakesh Yadav

    July 5, 2016 at 9:39 am

    Satta ke hath ki kathputali ban gayi hai Des ka Chautha Isthamb. deswasiyo ko jagne wali media aaj mahaj chand puji patiyo ke hatho bik kar apna wajod kho di hai.

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