मीडिया से सावधान रहने का वक्त आ गया है!

Dinesh Choudhary : कथित पत्रकारों के साथ लालू यादव की क्या झड़प हुई है, मुझे नहीं मालूम। लालू बहुत डिप्लोमेटिक हैं और प्रेस से भागते भी नहीं। भागने वाले तो 3 साल से भाग रहे हैं। लालू मुलायम की तरह ढुलमुल भी नहीं रहे और उनका स्टैंड हमेशा बहुत साफ़ रहा। पर थोड़ी बात आज की पत्रकारिता पर करनी है, जो बहुत थोड़ी बची हुई है।

‘उन्मत्त’ मस्त कवि हैं, पागल तो जमाना है

रेलवे की मजदूर बस्ती में कोई एक शाम थी। कॉमरेड लॉरेंस के आग्रह पर हम नुक्कड़ नाटक खेलने गए थे। सफ़दर हाशमी के ‘मशीन’ को हमने ‘रेल का खेल’ नाम से बदल दिया था। इम्प्रोवाइजेशन से नाटक बेहद रोचक बन पड़ा था और चूँकि नाटक सीधे उन्हीं को सम्बोधित था, जो समस्याएं झेल रहे थे, इसलिए उन्हें कहीं गहरे तक छू रहा था। नाटक के बाद देर तक तालियाँ बजती रहीं और चीकट गन्दे प्यालों में आधी-आधी कड़क-मीठी चाय पीकर हम लोग वापसी के लिए गाड़ी की प्रतीक्षा करने लगे। छोटा स्टेशन होने के कारण वोटिंग हाल नहीं था, इसलिए रेलवे गार्ड के बड़े-बड़े बक्सों को इकठ्ठा कर हम लोगों ने आसन जमा लिया। तभी कॉमरेड लॉरेंस एक कविनुमा शख़्स के साथ नमूदार हुए जो आगे चलकर सचमुच ही कवि निकला। कवि का नाम वासुकि प्रसाद ‘उन्मत’ था।

‘तितली’ के बहाने आभासी दुनिया के मित्र पंकज सोनी से वास्तविक मुलाकात हुई

तितली : फ़ायदे की उड़ान… सिवनी, मप्र। इंसान का मन तितली की तरह चंचल होता है। और यह पुरूष का हो तो कई बार तितली के पंख कुंठित यौनेच्छाओं से लिपटे होते हैं और बार-बार फ्रायड के कथन को बगैर जरूरत साबित करने पर आमादा होते हैं। पुरुष को किसी लड़की के चरित्रहीन होने में दिलचस्पी सिर्फ इस बात पर होती है कि चरित्र के सन्देह का लाभ उसके अपने खाते में जाए। इससे ज्यादा चरित्रहीनता वह अफोर्ड नहीं कर सकता और लाभांश नहीं मिलने पर वह थोपे गए आरोपों के मूलधन में किसी काईंयाँ बनिए की तरह सूद पर सूद लगाता जाता है। वैसे परिवार में वह भला-मानुस बना रहता है और मौका लग जाए तो नजर बचाकर थोड़ी-बहुत “फ्री-लान्सिंग” भी कर लेता है।

सरकार ने अपने ही देश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है

अखबार के पहले पन्ने पर सरकारी कर्मचारियों के कामचोर होने वाला इंटरव्यू यूँ ही नहीं छप गया है। जिस अखबार में छपा है, उसकी उस चैनल से दोस्ती है जो सरकार का सबसे बड़ा भोंपू है। फिलहाल लक्ष्य दो चीजों पर है। तालियों पर मुग्ध हो जाने वाला राजा सौ फीसदी एफडीआई का बाजा बजा आया है। रेलवे से लेकर रक्षा क्षेत्र में सौ फीसदी एफडीआई का मतलब निजीकरण का खूब चौड़ा रास्ता निकालना है।