डॉ राजीव मिश्रा-
इस बार पल्लवी लंदन से अपने साथ एक भारी भरकम ड्रेस लेकर आई जिसे फिटिंग की जरूरत थी. पहले तो डिमना में घर के सामने एक टेलर को दिखाया. टेलर बंगाली था, तो जैसा कि अक्सर होता है, कारीगर के बजाय कानूनची निकला. वह हमें समझाने लगा कि क्यों जो अल्टरेशन आप कराना चाहते हैं, वह नहीं कराना चाहिए, क्यों वह नहीं किया जा सकता, कैसे उससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ जाएगी और ट्यूनीशिया में अकाल पड़ जाएगा.
मैंने ड्रेस समेटी और दुकान से निकल गया. मैंने याद दिलाया, बारीडीह मार्केट में तुम्हारी एक फेवरेट टेलर हुआ करती थी, जो किसी भी ड्रेस की कोई भी डिजाइन बनाने को तैयार हो जाती थी… इधर उधर बहस करने और कानून पढ़ने से अच्छा है कि बारीडीह चलते हैं.
बारीडीह मार्केट में ज्यादा कुछ नहीं बदला है, पर उस टेलर के पास कई साल बाद जा रहे थे. उसका फोन भी नहीं लग रहा था. मन में ख्याल आया कि पता नहीं अब भी उसकी दुकान है या नहीं. लोकेशन सही गली में खोज रहे हैं या एकाध गली आगे पीछे. जो जगह याद थी वहां पहुंचे तो एक दुकान थी जो बदली बदली लग रही थी. वहां दो लड़कियां काम कर रही थी पर वह टेलर नहीं थी.
मैंने पूछा, यहां एक गीता टेलर की दुकान हुआ करती थी...
एक कस्टमर मेरी ओर मुड़ी और पूछा – हां, यही दुकान है. आप क्या बहुत समय के बाद आ रहे हैं?
मैंने कहा – हां! कॉरोना के बाद पहली बार आ रहे हैं.
उसने बताया – गीता की मृत्यु हो गई. एक्सीडेंट में. उसकी लड़कियां हैं, यही दुकान चलाती हैं.
मैं सन्न रह गया. गीता हमसे कम उम्र की ही महिला थी. बेहद मिलनसार. मैं कहता था, टेलर नहीं वह आर्टिस्ट है. अगर उसको ऑपर्च्युनिटी मिली होती तो वह फैशन डिजाइनर होती. बेहद शार्प और इंटेलिजेंट. छोटी सी दुकान चलाती थी, खुद अपने तीन बच्चों को अकेले पालती पढ़ाती लिखाती थी. जब मैंने देखा था तो ये बच्चियां बिल्कुल छोटी थीं. बच्ची ने पता नहीं कैसे मुझे पहचान लिया… आप मर्सी हॉस्पिटल में डॉक्टर थे ना? अब लंदन चले गए हैं? मां आपको बहुत याद करती थी…
दुकान पहले से दोगुनी बड़ी दिख रही थी. वह अब छोटी मोटी रेडीमेड कपड़ों, चूड़ी वगैरह की दुकान में बदल गई थी. एक किनारे में एक सिलाई मशीन भी लगी थी, टेलरिंग का काम अब भी हो रहा था. बच्ची ने पूछा, कोई टेलरिंग का काम था क्या?
उसने वह ड्रेस ली…देखा और कहा… हां, हो जायेगा!
बिल्कुल अपनी मां की तरह, पॉजिटिव और कॉन्फिडेंट.
गीता ने अपने बच्चों को किसी बड़े फैंसी स्कूल में नहीं पढ़ाया, कोई बड़ी टेक्निकल डिग्रियां नहीं दिलाईं,कोई बहुत बड़ी संपत्ति नहीं छोड़ी है…जरा सी एक टेलर की दुकान और छोटी सी क्लाइंटेल की गुडविल. पर उससे बड़ी जो एक चीज उसने दी है वह है संस्कार और नैतिकता. उसके बच्चों ने किसी के सामने दीनता और हीनता की मुद्रा नहीं रखी. उसी लगन से काम करना जारी रखा जो उन्होंने अपनी मां में देखा था. नतीजा दिखाई दे रहा था, उनकी दुकान ने पहले से तरक्की ही की है. पहले से समृद्धि ही आई है. और मुझे कोई शंका नहीं है कि उसके तीन बच्चे बिना किसी की अनुकम्पा के, बिना किसी से कोई फेवर लिए हुए और अधिक प्रगति करेंगे, और समृद्धि अर्जित करेंगे.
नैतिकता का समृद्धि से सीधा संबंध है. यह संबंध जो समाज स्वीकार करता है, वह पूरा समाज समृद्ध होता है. यह अर्थशास्त्र का वह नियम है जो अक्सर नहीं बताया जाता है.