S.a. Naqvi : सीएनएन-आइबीएन नेटवर्क 18 के प्रेसिडेंट उमेश उपाध्याय तो शायद दिल्ली भजपा के प्रदेश अद्यक्ष सतीश उपाध्याय के भाई और मुकेश अम्बानी के मुलाज़िम हैं. कभी खबरदार करने वाले आईबीएन की चाल ही अब बदल गई है. उमेश कल तक पर्दे के पीछे से अपना किरदार अदा कर रहे थे, आज सामने आये तो चौंकने वाली बात नहीं. वंदना शिवा का इस मंच पर पहुंचना भी नहीं चौंकाता. एक पुरानी देसी कहावत है “कुछ लोगों के फितरत होती है जहाँ देखा तवा-परात वहीं गुज़ारी सारी रात” यानी सेल्फ स्टाइल्ड स्वम्भू मौका परस्त कभी भी और कहीं भी दिख सकते हैं. उनकी उपस्थति कभी चौंकाती नहीं.
वंदना शिवा जी कल तक कहाँ थी और आज कहाँ, यह कोई मायने नही रखता. भारत के इंटेलीजेंस ब्योरो (आईबी) ने देश को जिन कुछ “स्वयं सेवी संगठनों” की सूची सरकार को दी है जिन्होंने “एफसीआरए” के द्वारा विदेशों से धन इकट्ठा कर लूटा है उस काली सूची में वंदना शिवा का नाम भी है. पीएमओ ने मंत्रालयों को चिट्ठी लिख कर इनके खिलाफ कार्यवाही की सिफारिश की है. अगर “बबम-बम बोल” कहने पर मुसीबत का भार कुछ कम हो जाए और आगे रोटिया भी करारी सिंक जाए तब यह सब करने से फर्क क्या पड़ता है. वैसे भी यह कौन सा धर्मार्थ का काम कर रहे थे. गरीब – मासूम – भोले भाले एक्टिविस्टों के जज्बात से खेल कर अपनी कैपसिटी बिल्डिंग का ही तो काम कर रहे थे. अकूत चल-अचल सम्पतियों के मालिक मौसम के हिसाब से कपड़ों की तरह जहाँ देखा “फंड” वैसा ही मुद्रा बदला. अब तो किसी को रिझाने के लिए सिर्फ “हिन्दू” मात्र कहने या फिर तिलक-टीका या भगवा पहनने या फिर माला धारण कर ही कायनात को खुश किया जा सकता तो ऐसा करने में बुरा भी क्या है. जनाब भी तो इसी रास्ते चल रहे हैं. हम तो यही कहेंगे भाइयों, जरा जागते रहो, यह रात बहुत ही काली है.
एस. ए. नकवी ने उपरोक्त टिप्पणी फेसबुक पर प्रकाशित की है.
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