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साहित्य

नीलाभ ने कात्यायनी से कहा था- निश्चिंत रहो, इतनी जल्दी हार नहीं मानूंगा, सेहत ठीक कर लूंगा…

Alok Paradkar : कल ही तो बात हुई थी नीलाभ जी से! नाटककार राजेश कुमार ने सूचना दी कि नीलाभ जी नहीं रहे तो यकीन ही नहीं हुआ। मैंने कल ही उनसे बातचीत की थी। इधर कई बार उनसे बातचीत हुई। वह ‘रंग प्रसंग’ के अपने आखिरी अंक को लेकर थोड़े हड़बड़ी में थे और मुझसे वरिष्ठ रंगकर्मी राज बिसारिया जी पर कुछ सामग्री चाहते थे। बात हुई कि एक आलेख और साक्षात्कार करना है। कल मैंने ये पूछने के लिए फोन किया था कि कब तक भेज सकता हूं तो बोले बस एक-दो दिन में भेज दीजिए। मैं इस जल्दबाजी को समझ नहीं सका।

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Alok Paradkar : कल ही तो बात हुई थी नीलाभ जी से! नाटककार राजेश कुमार ने सूचना दी कि नीलाभ जी नहीं रहे तो यकीन ही नहीं हुआ। मैंने कल ही उनसे बातचीत की थी। इधर कई बार उनसे बातचीत हुई। वह ‘रंग प्रसंग’ के अपने आखिरी अंक को लेकर थोड़े हड़बड़ी में थे और मुझसे वरिष्ठ रंगकर्मी राज बिसारिया जी पर कुछ सामग्री चाहते थे। बात हुई कि एक आलेख और साक्षात्कार करना है। कल मैंने ये पूछने के लिए फोन किया था कि कब तक भेज सकता हूं तो बोले बस एक-दो दिन में भेज दीजिए। मैं इस जल्दबाजी को समझ नहीं सका।

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आज लग रहा है कि उन्हें कुछ आभास हो चला था। सबसे माफी मांगने की उनकी पोस्ट भी हाल में पढ़ी थी। बातचीत में थके हुए लग रहे थे। बताया कई दिनों से आफिस नहीं जा पा रहा हूं। ऐसा लग रहा था जैसे बातचीत करने में भी उन्हें दिक्कत हो रही थी। शायद मोबाइल में नाम दर्ज न होता तो वे फोन उठाते भी नहीं। मैंने उनकी अस्वस्थता के बारे में पूछा तो बोले कि इलाज की कुछ व्यवस्था हो रही है। इधर पिछले दिनों उनसे कई बार बातें हुईं। वास्तव में उनका संदेश राजेश कुमार जी के माध्यम से ही मुझे मिला था कि वे बात करना चाहते हैं। मैंने उन्हें भारतेन्दु नाट्य अकादमी में हुए उनके कृष्णनारायण कक्कड़ व्याख्यान की याद दिलाई तो बोले आपने पुरानी बातें याद रखी हैं। सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ जैसे कुछ मित्रों के बुलावे पर अकादमी गया था, नहीं तो लखनऊ में मुझे कौन याद करता है। कल की बातचीत बहुत लम्बी नहीं चल सकी। बोले-सोमवार को आफिस पहुंचकर बात करुंगा। यह सोमवार अब कभी नहीं आएगा! श्रद्धांजलि

Katyayani : अभी-अभी ये अवसन्‍न कर देने वाली ख़बर मिली कि नीलाभ नहीं रहे। एक पल के लिए भी विश्‍वास ही नहीं हो रहा है। अभी 4-5 दिन पहले ही उनसे फ़ोन पर लम्‍बी बात हुई थी। तब उन्‍होंने बताया था कि पेट में थोड़ी परेशानी है और उन्‍हें अगले दिन जांच कराने जाना है। ये भी बताया कि वे कोशिश कर रहे हैं एनएसडी में हिन्‍दी प्रकाशन से अंग्रेज़ी में तबादला करा लें। लिखने-पढ़ने के बहुत से अधूरे प्रोजेक्‍ट हैं और वे योजना बना रहे हैं कि अब उन्‍हें पूरा करने में जुटेंगे। उन्‍होंने यह भी भरोसा दिलाया था कि निश्चिन्‍त रहो, मैं इतनी जल्‍दी नहीं हारूंगा, मैं सेहत ठीक कर लूंगा। फिर अचानक यह ख़बर… कुछ समझ नहीं आ रहा है कि क्‍या लिखूं। अचानक एक-एक करके हमारे प्रिय और वरिष्‍ठ साथी विदा लेते जा रहे हैं। कुछ ही दिन पहले वीरेन डंगवाल फिर पंकज सिंह के यूं चले जाने के दुख से उबर भी नहीं पाये थे और अब ये स्‍तब्‍ध कर देने वाली ख़बर। साहित्यिक जीवन की शुरुआत से ही उम्र और लेखन में वरिष्‍ठ होने के बावजूद नीलाभ के साथ गहरी आत्‍मीयता पूर्ण दोस्‍ताना रिश्‍ते थे। तमाम चीज़ों पर अलग राय और उन पर बहस होने के बावजूद उस आत्‍मीयता और दोस्‍ती पर कोई फ़र्क नहीं पड़ा। वे कई मौक़ों पर हमारे कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से शामिल हुए। लखनऊ में जनचेतना पर परिवार के साथ आये और हमारे साथ 3-4 दिन रुकने के दौरान विभिन्‍न विषयों पर गर्मागर्म बातचीत और दिलचस्‍प संस्‍मरणों, किस्‍से-कहानियों से उन्‍होंने उन 3-4 दिनों को हमारे लिए यादगार बना दिया। नीलाभ, आप हमारी स्‍मृतियों में हमेशा बने रहेंगे। लेकिन आपको भी यूं नहीं जाना था। आपने वादा किया था कि आप हारेंगे नहीं और जल्‍दी ही ठीक होकर पूरे ज़ोर-शोर से अपने अधूरे कामों को पूरा करने में जुट जायेंगे। आपने अपना वायदा तोड़ा ये अच्‍छा नहीं किया। मैं भरे दिल से और नम आँखों से आपको अलविदा कह रही हूँ। अलविदा नीलाभ…

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Jaishankar Gupta : दुखद सूचना। कवि, लेखक, पत्रकार और इस सबसे ऊपर एक जिंदादिल इन्सान नीलाभ (अश्क) नहीं रहे। लंबी बीमारी ने आज उन्हें हम सबसे छीन लिया। अपना भी उनके साथ इलाहाबाद के दिनों में और बाद में भी आत्मीय एवं जीवंत संबंध सरोकार था। उनसे जुड़ी स्मृतियों को सलाम। नीलाभ, उपेंद्रनाथ अश्क के पुत्र थे। खुद भी लेखक, कवि, साहित्यकार थे। वह बीबीसी लंदन के लिए लंदन में प्रसारक और उद्घोषक रहे। विनम्र श्रद्धांजलि।

Akashdeep : नीलाभ जी नहीं रहे… स्तब्ध हूँ… निर्वाक्। कई मुलाकातें थीं उनसे.. बेबाक और जिंदादिल इंसान रहे हैं.. जो कहते थे मुँह पर कहते थे। एक ही इंसान मैंने देखा जो साफगोई और निश्छलता से अपनी बात कहते थे। सहमति असहमति एकदम खुलकर बयाँ कर देते थे… मेरे लिए तो अब भी कल्पना करना मुश्किल सा हो रहा है कि नीलाभ जी से अब नहीं मिल पाऊँगा.. भावभीनी श्रद्धांजलि। दुखद…

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Sanjeev Chandan : कवि नीलाभ नहीं रहे। उनसे अंतिम मुलाकात और नोक-झोंक एनएसडी के उनके दफ्तर में। मैंने उनसे कहा था कि वे ‘उन्हें’ बहुत मुहब्बत करते हैं। दरअसल वे लगातार ‘उनकी’ ही बात करते रहे। कुछ संवाद दिखाया, कुछ मुझे भी भेजे। जल्द ही वे साथ आ गये- नीलाभ का एक विवाद खत्म, दूसरा शुरू हो गया था तब शायद- अब वे चले गये, सारी मुहब्बत, सारे विवाद समेटकर। नमन दादा !!

Reyazul haq : आख़िरी बार उनको वसंत के उन दहकते हुए दिनों में देखा था! सोचा था, उनको एक मज़ेदार बात सुनायेंगे अगली मुलाक़ात में। आप बिना सुने ही चल दिए Neelabh! याद आएँगे बहुत।

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अमित वागर्थ : नीलाभ जी की एक कविता उनको याद करते हुए… शीर्षक है :  ”जहां मैं सांस ले रहा हूं अभी”

जहाँ मैं सांस ले रहा हूँ अभी
वहां से बहुत कुछ ओझल है

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ओझल है हत्यारों की मांद
ओझल है संसद के नीचे जमा होते
किसानों के ख़ून के तालाब
ओझल है देश के सबसे बड़े व्यापारी की टकसाल
ओझल हैं ख़बरें
और तस्वीरें
और शब्द
जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
वहाँ से ओझल हैं
सम्राट के आगे हाथ बाँधे खड़े फ़नकार
ओझल हैं उनके झुके हुए सिर,
सिले हुए होंठ,
मुँह पर ताले,
दिमाग़ के जाले

जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
वहाँ एक आदमी लटक रहा है
छत की धन्नी से बँधी रस्सी के फन्दे को गले में डाले
बिलख रहे हैं कुछ औरतें और बच्चे
भावहीन आँखों से ताक रहे हैं पड़ोसी
अब भी बाक़ी है
लेनदार बैंकों और सरकारी एजेन्सियों की धमकियों की धमक

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जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
वहाँ दूर से सुनाई रही हैं
हाँका लगाने वालों की आवाज़ें
धीरे-धीरे नज़दीक आती हुईं
पिट रही है डुगडुगी, भौंक रहे हैं कुत्ते,
जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
भगदड़ मची हुई है आदिवासियों में,
कौंध रही हैं संगीनें वर्दियों में सजे हुए जल्लादों की
जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
चारों तरफ़ फैली हुई है रात
ख़ौफ़ की तरह —
चीख़ते-चिंघाड़ते निशाचरी दानव हैं
शिकारी कुत्तों की गश्त है
बिच्छुओं का पहरा है
कोबरा ताक लगाए बैठे हैं

जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ
वहाँ एक सुगबुगाहट है
आग का राग गुनगुना रहा है कोई
बन्दूक को साफ़ करते हुए,
जूते के तस्मे कसते हुए,
पीठ पर बाँधने से पहले
पिट्ठू में चीज़ें हिफ़ाज़त से रखते हुए
लम्बे सफ़र पर जाने से पहले
उस सब को देखते हुए
जो नहीं रह जाने वाला है ज्यों-का-त्यों
उसके लौटने तक या न लौटने तक
इसी के लिए तो वह जा रहा है
अनिश्चित भविष्य को भरे अपनी मैगज़ीन में
पूरे निश्चय के साथ

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जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
जल उठा है एक आदिवासी का अलाव
अँधेरे के ख़िलाफ़
जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
ऐसी ही उम्मीदों पर टिका हुआ है जीवन
—- नीलाभ

सौजन्य : फेसबुक

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xxx

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