नीलाभ ने कात्यायनी से कहा था- निश्चिंत रहो, इतनी जल्दी हार नहीं मानूंगा, सेहत ठीक कर लूंगा…

Alok Paradkar : कल ही तो बात हुई थी नीलाभ जी से! नाटककार राजेश कुमार ने सूचना दी कि नीलाभ जी नहीं रहे तो यकीन ही नहीं हुआ। मैंने कल ही उनसे बातचीत की थी। इधर कई बार उनसे बातचीत हुई। वह ‘रंग प्रसंग’ के अपने आखिरी अंक को लेकर थोड़े हड़बड़ी में थे और मुझसे वरिष्ठ रंगकर्मी राज बिसारिया जी पर कुछ सामग्री चाहते थे। बात हुई कि एक आलेख और साक्षात्कार करना है। कल मैंने ये पूछने के लिए फोन किया था कि कब तक भेज सकता हूं तो बोले बस एक-दो दिन में भेज दीजिए। मैं इस जल्दबाजी को समझ नहीं सका।

सबसे माफी मांगते अनंत की ओर चले गये नीलाभ जी

Hareprakash Upadhyay : सबसे माफी माँगते हुए अनंत की ओर चले गये नीलाभ जी। बेहद प्रतिभावान-बेचैन, सहृदय लेखक, कवि- अनुवादक! मुझसे तो बहुत नोक-झोक होती थी, मैं उन्हें अंकल कहता था और वे मुझे भतीजा! अंकल! अभी तो कुछ और दौर चलने थे। कुछ और बातें होनी थी। आप तो सबका दिल तोड़ चले गये। पर शिकायतें भी अब किससे और शिकायतों के अब मानी भी क्या! अंकल, हो सके तो हम सबको माफ कर देना। नमन अंकल! श्रद्धांजलि!

जाने-माने पत्रकार और ‘रंग प्रसंग’ के संपादक नीलाभ अश्क का निधन

नीलाभ नहीं रहे. नीलाभ यानि नीलाभ अश्क. आज सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली. पिछले कुछ दिनों से वे बीमार चल रहे थे. नीलाभ ‘रंग प्रसंग’ के संपादक थे. फेसबुक पर नीलाभ के कई जानने वालों ने उनके निधन की खबर पोस्ट की है. पत्रकार और समालोचक संगम पांडेय ने लिखा है- ”अभी-अभी ‘रंग प्रसंग’ के संपादक नीलाभ जी के अंतरंग रूपकृष्ण आहूजा ने बताया कि नीलाभ जी नहीं रहे।”

आजकल माफी मांगने में जुटे हैं नीलाभ अश्क, पढ़िए कुछ प्रायश्चित पोस्ट्स

Neelabh Ashk : एक बिना-शर्त माफ़ीनामा…. अपने जीवन में मुझसे अपने आवेगशील स्वभाव के कारण अनेक ऐसी घटनाएं और प्रसंग हो बैठे हैं, जिन पर मुझे बेहद खेद और शर्मिन्दगी महसूस हुई है. मैंने अपने अविवेक में बहुत-से लोगों को चोट पहुंचायी है. मेरी कोशिश रही है कि जहां तक सम्भव हो, इन ग़लतियों का परिमार्जन हो सके. अपनी भूल को स्वीकार करके माफ़ी मांग लेने में मेरा अहम कभी आड़े नहीं आया, क्योंकि जो भी किया, वह मैंने किया था, सो माफ़ी मांगना मेरा ही कर्तव्य बनता था.

गीता श्री, अचला शर्मा और रमा पाण्डे के मिज़ाज का क़िस्सा सुना रहे हैं नीलाभ अश्क

साहबो, जब-जब हम फ़ेसबुक पर आते हैं, हमें अपनी अज़ीज़ा गीताश्री का ख़याल हो आता है. ये क़िस्सा उन्हीं के मुतल्लिक़ है. और उनके हवाले से हमारी दो और दोस्तों से. जिन क़द्रदानों ने हमारे क़िस्सों पर नज़रसानी की है, वे इस बात से बख़ूबी वाक़िफ़ हो गये होंगे कि हमें बात चाहे ज़री-सी कहनी हो, मगर हमारी कोशिश यही रहती है कि वह मुन्नी-सी बात भी एक अदा से कही जाये जिससे हमारे सामयीन का दिल भी बहले और हमें भी कुछ तस्कीन हो कि हमने वक़्त ज़ाया नहीं किया.

उम्रदराजी की छूट अगर नीलाभ को मिली तो वागीश सिंह को क्यों नहीं?

Amitesh Kumar : हिंदी का लेखक रचना में सवाल पूछता है, क्रांति करता है, प्रतिरोध करता है..वगैरह वगैरह..रचना के बाहर इस तरह की हर पहल की उम्मीद वह दूसरे से करता है. लेखक यदि एक जटिल कीमिया वाला जीव है तो उसका एक विस्तृत और प्रश्नवाचक आत्म भी होगा. होता होगा, लेकिन हिंदी के लेखक की नहीं इसलिये वह अपनी पर चुप्पी लगा जाता है. लेकिन सवाल फिर भी मौजूद रहते हैं.

ये यही राजकमल चौधरी थे जिनके बारे में बदचलनी की अफ़वाहें प्रचलित थीं…

: शीशों की मीनाकारी से बनी तस्वीर : आज अगर राजकमल चौधरी जिन्दा होते, तो वे सत्तर-बहत्तर साल के होते। सहज ही ख़याल होता है कि ‘मछली मरी हुई’, और ‘मुक्ति प्रसंग’ का लेखक सत्तर साल के बुजुर्ग के रूप में कैसा दिख रहा होता और इर्द-गिर्द की दुनिया से किस तरह पेश आ रहा होता? जबकि न तो ‘शहर था शहर नहीं था’ का पटना वैसा रह गया है, न ‘एक अनार एक बीमार’ का कलकत्ता. अपनी अकाल मृत्यु के समय 36 वर्ष की आयु में ही एक किम्वदन्ती बन जाने वाला साहित्यकार ख़ुद को कितना बूढ़ा या जवान महसूस कर रहा होता? उसके अन्तस्तल में बैचैनी और आक्रोश में जो उबलते हुए सोते थे, वे क्या सूख गये होते या शान्त नीली नदियों में तब्दील हो गये होते। अपने समय, समाज और साहित्यिक समुदाय में उसका रिश्ता कैसा होता? सवालों का हुजूम है, जो राजकमल की याद आते ही मन में घुमड़ने लगता है। स्मृतियों की एक कतार है, जो फूल बाबू उर्फ़ मणीन्द्र चौधरी उर्फ़ राजकमल चौधरी से जुड़ी हुई है और सरसों के फूलों की कतार की तरह लहराती है। बहुत-से किस्से हैं, जिन्होंने राजकमल चौधरी को इस तरह ढँका हुआ है, जैसे मेकप और मैनिरिज़्म किसी अभिनेता को ढँके होते हैं।

नीलाभ से विवाद के बाद भूमिका ने लिखी एक कविता- ”रहम कर मुझ पर मालिक, किसी कमसिन, किसी भोली से मिला दे”

पचहत्तर बरस के साहित्यकार नीलाभ अश्क और 25 वर्ष की उनकी पत्नी भूमिका द्विवेदी के बीच विवाद होने के बाद भूमिका ने अपने फेसबुक वॉल पर एक कविता पोस्ट की है. इस कविता में कहीं भी नीलाभ अश्क का नाम नहीं है लेकिन पढ़ने वाला हर कोई समझ रहा है कि यह कविता किसको लक्षित कर लिखी गई है. इस कविता को फेसबुक पर खूब लाइक और कमेंट्स मिल रहे हैं. आप भी पढ़िए…