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‘न्यूज नेशन’ चैनल ने अपने संवाददाताओं को पहुंचाया भुखमरी की कगार पर

YASHWANT SIR, आज देश का एक बड़ा युवा वर्ग मीडिया की ओर आकर्षित हो रहा है और इस पेशे में वह भविष्य देख रहा है। मगर वह इस सच्चाई से कोसों दूर है कि जिस पेशे के सपने वह संजो रहा है उस पेशे से जुड़े लोगों की कितनी बुरी दशा है। आज वह किस हालत में अपनी जिंदगी बसर कर रहे हैं। उनके बच्चों की पढ़ाई का क्या हाल है और वह अपने परिवार के लिए किस मुश्किल से दाल रोटी का जुगाड़ कर पा रहे हैं। इस पेशे से जुड़े कई लोग और उनका परिवार तो आज भुखमरी की कगार पर खड़ा हो गया है।

हम बात कर रहे हैं खबर के मामले में देश के नक़्शे पर सबसे तेज़ी से उभरते हुए चैनल ‘न्यूज नेशन’ की। यह चैनल जब अस्तित्व में आया तो इसने अपने संवाददाताओं को बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाए थे। हर रिपोर्टर को जी-जान  लगा कर काम करने को कहा गया और बदले में उन्हें उनकी ख़बरों का समय से पूरा पारिश्रमिक देने का वादा किया गया था। रिपोर्टरों ने तो चैनल को आगे बढ़ाने में जी-जान तो लगा दिया मगर इस चैनल ने अपने रिपोर्टरों को आगे बढ़ाने में और उनका पारिश्रमिक देने में कोई रुचि नहीं दिखाई। इस बीच जब भी किसी रिपोर्टर ने चैनल से अपने पारिश्रमिक की बात की तो उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिला।

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कुछ समय पूर्व इस चैनल ने अपना एक न्यूज नेशन यूपी लाकर अपने रिपोर्टरों में एक आस पैदा की और उनसे और कड़ी मेहनत की बात करते हुए कहा कि उनका मुकाबला प्रदेश में ईटीवी से है और उन्हें किसी भी कीमत पर उससे आगे निकलना है। रिपोर्टरों ने जब अपने बकाया पैसे की बात कही तो उन्हें फिर आश्वासन मिला कि अब उनके लिए अच्छे दिन आने वाले हैं अब उनको हर खबर का पूरा पारिश्रमिक मिलेगा। रिपोर्टरो ने अच्छे दिन की आस में एक बार फिर चैनल को आगे बढ़ाने में अपनी जी -जान लगा दी। न्यूज नेशन का यह चैनल भी अपने मेहनती रिपोर्टरों की बदौलत पूरे प्रदेश में अचानक से ही चर्चा में आ गया ।

चैनल को चर्चा में आये अब काफी समय हो गया है और अब भी यह चैनल अपने रिपोर्टरों को उनके पारिश्रमिक के नाम पर सिर्फ तारीख पे तारीख ही दे रहा है। लेकिन अब शायद इस चैनल के रिपोर्टरों के सब्र का बांध टूट चुका अब उनके पास दो ही रास्ते है कि या तो चैनल की खबरों के काम को छोड़ कर अपने भुखमरी की कगार पर आये परिवार की रोज़ी रोटी के लिए दैनिक मजदूरी करें या फिर चैनल की साख को नज़र अंदाज कर उनसे अपने पारिश्रमिक के लिए कानूनी लड़ाई लड़े। आज आलम यह कि प्रदेश के कई रिपोर्टरों ने इस चैनल को खबर देना बन्द कर रोजगार के और कोई विकल्प तलाशने शुरू कर दिए हैं।

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यशवंत जी आपसे करबद्ध प्रार्थना है कि इस लेख में मेरा नाम प्रकाशित न करें क्योंकि मेरा उद्देश्य चैनल की साख को नुकसान पहुँचाना नहीं है बल्कि उन युवाओं को आगाह करना है जो इसकी चकाचौंध में अंधे होकर इसके पीछे अपना भविष्य बरबाद करने की दिशा में निकल पड़े है। मेरा उद्देश्य उन हज़ारों रिपोर्टरों की पीड़ा को सार्वजनिक करना है जो ऐसे चैनलों के बुने गए जाल में फंस कर अपना भविष्य बरबाद कर चुके हैं। मेरा उद्देश्य सिर्फ ऐसे चैनलों की मानसिकता को बदलने की है जो अपने रिपोर्टरों के साथ चौबीस घण्टे एक बंधुवा मजदूरो की भाँति व्यवहार करते हैं और पारिश्रमिक माँगने पर उसी निष्ठावान रिपोर्टर पर अनर्गल आरोप लगा कर उसे बाहर का रास्ता दिखा देते है।

एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.

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0 Comments

  1. ARUN

    November 10, 2014 at 6:52 am

    सही कहा भाई आपने। …इस मीडिया के पीछे न जाने कितने बर्बाद हो गए है हज़ारों छोड़ गए हज़ारों गुरवत में रह गए

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