सेबी ने अखबारों में विज्ञापन निकालकर आम जन को आगाह किया है कि वे पी7न्यूज चैनल चलाने वाली कंपनी / समूह ‘पीएसीएल’ नामक कंपनी में एक भी पैसा न लगाएं क्योंकि इस कंपनी के पास किसी तरह का कोई लाइसेंस या मान्यता नहीं है. सेबी का कहना है कि जो कोई भी इस कंपनी में पैसा लगाएगा या लगाए हुए है, वह खुद जिम्मेदार होगा और इसका जोखिम वह खुद झेलेगा. जनहित में जारी विज्ञापन की कटिंग इस प्रकार है…
उधर, पीएसीएल समेत शारदा, सहारा जैसी चिटफंड कंपनियों में संकट आ जाने के बाद इनके एजेंट बेहद परेशान हैं. आंकड़े कहते हैं कि ये घोटाला उजागर होने से अब तक शारदा से जुड़े ३० एजेंट भी आत्महत्या कर चुके हैं और कई के सामने मरने के अलावा कोई और चारा नहीं बचा है. ऐसा ही सहारा काण्ड उजागर होने के बाद सामने आ रहा है जहां उसके कई एजेंट आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. ये वो लोग हैं जिन्होंने सहारा, शारदा, रोजवैली और पर्ल्स जैसी कम्पनियों के झांसे में आकर मोटी रकमें जनता से उगा कर दीं और अब परेशान -हलकान हैं. पहले चिटफंड काण्ड में फंसे असम के एक्स डीजीपी बरुआ ने ख़ुदकुशी कर ली और अब सांसद कुणाल घोष ने कोशिश की जान देने की.
आखिर कौन हैं इस सबकी हत्याओं के लिए जिम्मेदार लोग? जो जेल में बंद है और चैन की रोटी खा रहे हैं वो या ममता बनर्जी जैसे लोग, जिन्होंने सत्ता के साथ ऐसे लोगों का कॉकटेल बनाया और आगे बढ़ने के बाद इन कम्पनियों और जनता दोनो को मरने को छोड़ दिया। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के अलावा उड़ीसा में भी अब ऐसी कम्पनियों पर कार्यवाई चल रही है लेकिन बड़ा सवाल ये उठता है कि ऐसी कंपनियां किन कानूनों के लचीलेपन का लाभ उठा कर इतना लंबा रास्ता तय कर लेतीं हैं कि लाखों क-करोड़ों लोग इनके जाल में फंस जाएँ और अपनी जमा पूंजी गवां बैठें।
आज देश के बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र ऐसी कम्पनियों के संजाल में हैं, पच्छिम बंगाल में शारदा और रोजवैली जैसी कम्पनियों का भंवरजाल सामने आ ही गया है, मध्य प्रदेश में लगभग ५० कंपनियां शिकंजे में हैं और हाल ही में छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में बड़ी संख्या में इन कम्पनियों पर कार्यवाई जारी है, लेकिन फिर भी ये सवाल अपनी जगह खड़ा है कि कौन है इन कम्पनियों को बढ़ावा देने वाली वे ताक़तें जो इन्हें अभयदान देतीं है कि वे जनता का आर्थिक शोषण कर सकें? सवाल का जवाब शायद हमारे राजनेता, प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों का वर्ग दे सके जो इन्हें अपनी नाक के नीचे पलने का मौक़ा देता है लचीले कानूनों की आड़ का बहाना बना कर, क्योंकि इनके लिए ये धन की अमरबेल बन जातीं है.
हरिमोहन विश्वकर्मा की रिपोर्ट.
mini
November 16, 2014 at 11:54 pm
Aam log jaldi Dhanwan ban ne ke chakkar mai in compniyo ke agento ke jhanse mai aa jate hain…. per sawal yeh hai kee akhir in per rok lagayeg kaun???
santosh singh
December 19, 2014 at 1:52 pm
BAHUT THAG BESH BADAL KAE DUSRA-DUSRA DHANDHA PHIR SE KHOL KAR LOGO TAK PAHUCH RAHE HAI.THAGO SE DUR RAHIA