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सुख-दुख

हे भक्तों, पत्रकारों को समझने में 67 साल भी कम पड़ जाएंगे, पहले ढंग से जान तो लो

Sanjaya Kumar Singh : भक्तों को जब से पता चला है कि अगस्ता वेस्टलैंड ने पत्रकारों को भी पैसे दिए थे – सब पगलाए घूम रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि सरकार 15 लाख नहीं दे पाई तो क्या हुआ अगस्ता से पैसे पाने वाले पत्रकारों के नाम मालूम हों और सबों को भक्ति की लाइन में लगा लें। (मने पैसे अगस्ता ने दिए काम भक्त उनसे अपना वाला कराएंगे)। सपना है, लेकिन समस्या वो नहीं है। समस्या भक्तों के अधकचरे ज्ञान से है।

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Sanjaya Kumar Singh : भक्तों को जब से पता चला है कि अगस्ता वेस्टलैंड ने पत्रकारों को भी पैसे दिए थे – सब पगलाए घूम रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि सरकार 15 लाख नहीं दे पाई तो क्या हुआ अगस्ता से पैसे पाने वाले पत्रकारों के नाम मालूम हों और सबों को भक्ति की लाइन में लगा लें। (मने पैसे अगस्ता ने दिए काम भक्त उनसे अपना वाला कराएंगे)। सपना है, लेकिन समस्या वो नहीं है। समस्या भक्तों के अधकचरे ज्ञान से है।

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उन्हें पता नहीं है कि पैसे, नौकरी और काम के लिए तो पत्रकार जमाने से लाइन लगते रहे हैं। बहुत मामूली उपहरों के लिए भी लाइन में दिखे होंगे। लेकिन सब एक से नहीं होते हैं। इन्हीं में कोई रवीश कुमार है तो कोई सुधीर चौधरी, कोई प्रणय राय है तो रजत शर्मा, कोई विनोद दुआ तो कोई दीपक चौरसिया। एमजे अकबर हैं तो चंदन मित्रा भी और संतोष भारतीय हैं तो राम बहादुर राय भी। संजय निरुपम हैं तो राजीव शुक्ला भी। तरुण तेजपाल हैं तो अनिरुद्ध बहल भी हैं। सभी पत्रकार भक्तों की तरह एक ही गुण या अवगुण वाले नहीं होते हैं। कोई क्रिकेट पर लिखता है कोई कबड्डी पर। पत्रकारों को नहीं संभाल पाओगे। पहले ढंग से जान तो लो। पत्रकारों को समझने में 67 साल भी कम पड़ जाएंगे। फिर कोशिश करना।

जनसत्ता अखबार में काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से. 

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