Pramod Ranjan : अंतत: आज कोर्ट से मुझे भी अग्रिम जमानत मिल गयी। ख्याल नारीवादी लेखक अरविंद जैन इस मामले में मेरे वकील हैं। उन्होंने बताया कि पुलिस के पक्ष ने जमानत का घनघोर विरोध किया। अरविंद जैन जी कोर्ट में ‘फारवर्ड प्रेस’ का पक्ष तो रखा ही, साथ ही भारतीय दंड संहिता की धारा 153 A (जिसके तहत मुकदमा दर्ज किया गया है) की वैधता पर भी सवाल उठाए। यही वह धारा है, जो अभिव्यक्ति की आजादी पर पुलिस का पहरा बिठाती है।
हालांकि यह अंत नहीं है। लडाई तो अब शुरू हुई है। यह लडाई न सिर्फ मेरी है, न सिर्फ श्री आयवन कोस्का की, न ही सिर्फ फारवर्ड प्रेस की। यह अभिव्यक्ति, विमर्श और तर्क करने की आजादी की लडाई है। हम सभी को इसे इसी रूप में लडाना चाहिए। एक संघर्ष वस्तुत: आधुनिक समाज के निर्माण के लिए है। उन सभी का हार्दिक शुक्रिया जो विभिन्न मतांतरों के बावजूद विमर्श और अभिव्यक्ति की आजादी की लडाई में बराबर के भागीदार हैं।
फारवर्ड प्रेस के संपादक प्रमोद रंजन के फेसबुक वॉल से.