फारवर्ड प्रेस का प्रिंट संस्‍करण का प्रकाशन जून, 2016 से स्‍थगित

प्रिय महोदय

हम फारवर्ड प्रेस का प्रिंट संस्‍करण का प्रकाशन अपरिहार्य कारणों से जून, 2016 से स्‍थगित कर रहे हैं। मई, 2016 में पत्रिका के नियमित प्रकाशन्‍ के आठ वर्ष पूरे हो रहे हैं। हम उम्‍मीद करते हैं कि इस बीच फारवर्ड प्रेस टीम द्वारा किये गये कामों का उचित मूल्‍यांकन भविष्‍य में किया जाएगा।

‘पांचजन्य’ को ‘बहुजन’ अवधारणा से चिढ़ है… बहुजन विमर्श के कारण निशाने पर है जेएनयू…

-प्रमोद रंजन-

यह जानना जरूरी है कि 1966 में भारत सरकार के एक विशेष एक्ट के तहत बना यह उच्च अध्ययन संस्थान वामपंथ का गढ़ क्यों बन सका। इसका उत्तर इसकी विशेष आरक्षण प्रणाली में है। इस विश्वविद्यालय में आरंभ से ही पिछड़े जिलों से आने वाले उम्मीदवारों, महिलाओं तथा अन्य कमजोर तबकों को नामांकन में प्राथमिकता दी जाती रही है। कश्मीरी विस्थापितों और युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के बच्चों और विधवाओं को भी वरीयता मिलती है। (देखें: बॉक्स) यहां की प्रवेश परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्न भी इस प्रकार के होते हैं कि उम्मीदवार के लिए सिर्फ  विषय का वस्तुनिष्ठ ज्ञान पर्याप्त नहीं होता। जिसमें पर्याप्त विषयनिष्ठ ज्ञान, विश्लेषण क्षमता और तर्कशीलता हो, वही इस संस्थान में प्रवेश पा सकता है। विभिन्न विदेशी भाषाओं के स्नातक स्तरीय कोर्स इसके अपवाद जरूर हैं, लेकिन इन कोर्सों में आने वाले वे ही छात्र आगे चल कर एम. ए., एमफिल आदि में प्रवेश ले पाते हैं, जिनमें उपरोक्त क्षमता हो। इस प्रकार, वर्षों से जेएनयू आर्थिक व सामाजिक रूप से वंचित तबकों के सबसे जहीन, उर्वर मस्तिष्क के विद्यार्थियों का गढ़ रहा है। यहां के छात्रों की कमतर आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि और इसे लेकर उनकी प्रश्नाकुलता, उन्हें वामपंथ के करीब ले आती है।

महिषासुर प्रसंग में ‘फारवर्ड प्रेस’ मैग्जीन की ओर से प्रेस बयान

नई दिल्‍ली। नई दिल्‍ली से प्रकाशित ‘फारवर्ड प्रेस’ भारत की प्रथम द्विभाषी (अंग्रेजी-हिंदी) मासिक ​है, जो अप्रैल, 2009 से निरंतर प्रकाशित हो रही है। फूले-आम्‍बेडकरवाद की वैचारिकी पर आधारित यह पत्रिका समाज के बहुजन तबकों में  लो‍कप्रिय है। अभी इसके लगभग 80 हजार पाठक हैं तथा यह मुख्‍य रूप से उत्‍त्‍र भारत में पढी जाती है। दक्षिण भारत के द्रविड आंदोलनों तथा देश अन्‍य हिस्‍सों में सामाजिक न्‍याय से जुडे आंदोलनों, लेखकों से बुद्धिजीवियों से भी पत्रिका का गहरा जुडाव है। इस पत्रिका का एक महत्‍वपूर्ण अवदान यह भी माना जाता कि इसने  भारत की विभिन्‍न भाषाओं के सामाजिक न्‍याय के पक्षधर बुद्धिजीवियों को एक सांझा मंच प्रदान किया है, जिससे विचारों का आदान-प्रदान तेज हुआ है। 

एक सांस्कृतिक आंदोलन के चार साल

दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में मुट्ठी भर अन्य पिछड़ा वर्ग और दलित छात्रों ने जब 25 अक्टूबर, 2011 को पहली बार ‘महिषासुर शहादत दिवस’ मनाया था, तब शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि यह दावानल की आग सिद्ध होगा। महज चार सालों में ही ये इन आयोजनों न सिर्फ देशव्यापी सामाजिक आलोड़न पैदा कर दिया है, बल्कि ये आदिवासियों, अन्य पिछडा वर्ग व दलितों के बीच सांस्कृतिक एकता का एक साझा आधार भी प्रदान कर रहे हैं।

फारवर्ड प्रेस के क्रिश्चियन मालिक आयवन कोस्का को मिल गई जमानत

फारवर्ड प्रेस के मालिक और मुख्‍य संपादक आयवन कोस्‍का को नई दिल्‍ली के पटियाला हाऊस कोर्ट ने गुरुवार को अग्रिम जमानत दे दी। इस मैग्जीन के सलाहकार संपादक प्रमोद रंजन को भी जमानत मिली। आदालत में मैग्जीन के मालिक और संपादक का पक्ष रखते हुए ख्‍यात नारीवादी लेखक व अधिवक्‍ता अरविंद जैन, साइमन बैंजामिन तथा अमरेश आनंद ने कहा कि फारवर्ड प्रेस पर  पुलिस की कार्रवाई अभिव्‍यक्ति की आजादी पर हमला है। यहां तक कि संपादकों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 153 (अ) , 295 (अ) आज की तारीख में निरर्थक हो गये हैं तथा इसका उपयोग राजनीतिक कारणों से किया जा रहा है।

फारवर्ड प्रेस का मुख्‍य संपादक आयवन कोस्‍का वाकई क्रिश्चियन है भाइयों…

Yashwant Singh : फारवर्ड प्रेस का मुख्‍य संपादक आयवन कोस्‍का वाकई क्रिश्चियन है भाइयों… तभी तो ये हिंदू धर्म के पीछे पड़ा है… मेरा हिंदू या किसी धर्म से रत्ती भर लगाव नहीं है लेकिन इतना जानता हूं कि जो घर फूंके आपने चले हमारे साथ… यानि पहले अपने घर को सुधारो… पहले अपने घर से शुरुआत करो… तो हरे आयवनवा कोस्कवा.. पहले तो क्रिश्चियन धर्म यानि इसाई धर्म के खिलाफ एक विशेषांक निकाल कर दिखा फारवर्ड प्रेस में … उसके बाद हिंदू और इस्लाम धर्म के भीतर की बुराइयों को बताना…

पुलिस विरोध के बावजूद कोर्ट ने फारवर्ड प्रेस के संपादक प्रमोद रंजन को जमानत दी

Pramod Ranjan : अंतत: आज कोर्ट से मुझे भी अग्रिम जमानत मिल गयी। ख्‍याल नारीवादी लेखक अरविंद जैन इस मामले में मेरे वकील हैं। उन्‍होंने बताया कि पुलिस के पक्ष ने जमानत का घनघोर विरोध किया। अरविंद जैन जी कोर्ट में ‘फारवर्ड प्रेस’ का पक्ष तो रखा ही, साथ ही भारतीय दंड संहिता की धारा 153 A (जिसके तहत मुकदमा दर्ज किया गया है) की वैधता पर भी सवाल उठाए। यही वह धारा है, जो अभिव्‍यक्ति की आजादी पर पुलिस का पहरा बिठाती है।

कुछ ईसाइयों ने कुछ कुत्सित हिंदुओं के साथ मिल कर दुर्गा को ‘वेश्या’ साबित करने की कोशिश की है

( File Photo Samarendra Singh )

Samarendra Singh : इन दिनों मेरे पास कुछ ई-मेल आ रहे हैं महिसासुर के बलिदान को लेकर। यह किसी दंगाई की सोच रही होगी जिसे लगता होगा कि वह इतिहास दुरुस्त कर देगा। ठीक वैसे ही जैसे कुछ लोग अयोध्या में इतिहास दुरुस्त करना चाहते हैं। अरे भई अब तक कोई ऐसा क्रांतिकारी पैदा ही नहीं हुआ जो अतीत को करेक्ट कर सके। फिर यह तो अतीत भी नहीं … अतीत का एक धार्मिक मिथक है। मैं इस दंगाई सोच का विरोध करता हूं और उन तमाम क्रांतिकारियों से अपील करता हूं कि मुझे ई-मेल नहीं भेजा करें। मुझे शांति से जीने दें। इस ई-मेल में संविधान का हवाला दिया गया है। तो क्या संविधान यह इजाजत देता है कि कोई मूर्ख किसी के भगवान या खुदा का अपमान करे? क्या यह अधिकार मुझे है कि किसी दिन मैं किसी भी धर्म के नायक को अपराधी करार देते हुए उसके विरोधियों को खुदा घोषित कर दूं?

फॉरवर्ड प्रेस एक व्यावसायिक पत्रिका है और अभी तक इसी दक्षिणपंथी सरकार में राजनीतिक स्पेस खोज रही थी

आज से कोई साढ़े आठ साल पहले यानी 2006 के फरवरी में ”सीनियर इंडिया” नाम की व्‍यावसायिक पाक्षिक पत्रिका पर छापा पड़ा था। विवादास्‍पद अंक ज़ब्‍त कर लिया गया था। संपादक आलोक तोमर समेत प्रकाशक को जेल हुई थी। आरोप था कि पत्रिका ने डेनमार्क के कार्टूनिस्‍ट का बनाया मोहम्‍मद साहब का कथित विवादित कार्टून छापा है जिससे कुछ लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं। सच्‍चाई यह थी कि उस वक्‍त दुनिया भर में चर्चित इस कार्टून पर पत्रिका ने एक कोने में करीब दो सौ शब्‍द की अनिवार्य टिप्‍पणी की थी जिसके साथ कार्टून का एक थम्‍बनेल प्रकाशित था, जिसे आधार बनाकर दिल्‍ली पुलिस कमिश्‍नर ने अपने ही सिपाही से पत्रिका के खिलाफ एक एफआइआर इसलिए करवा दी क्‍योंकि दो अंकों से पत्रिका की आवरण कथा कमिश्‍नर के खिलाफ़ छप रही थी जिसे मैंने और अवतंस चित्रांश ने संयुक्‍त रूप से अपने नाम से लिखा था। स्‍पष्‍टत: यह दिल्‍ली पुलिस द्वारा बदले की कार्रवाई थी, लिहाज़ा प्रभाष जोशी से लेकर राहुल देव तक पूरी पत्रकार बिरादरी का आलोकजी के समर्थन में उतर आना बिल्‍कुल न्‍यायसंगत था।

सांस्‍कृतिक बहुलता के पक्ष में उतरे चार सौ से ज्यादा लेखक और प्रकाशक

नई दिल्ली । 400 से अधिक लेखकों, पत्रकारों,  प्रकाशकों  व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने फॉरवर्ड प्रेस पर पुलिस द्वारा की गयी दमनात्माक कार्रवाई की कडी निंदा की है। निंदा करने वालों में उदय प्रकाश, अरुन्धति राय, शमशुल इस्लाम, शरण कुमार लिंबाले,  गिरिराज किशोर, आनंद तेल्तुम्बडे, कँवल भारती, मंगलेश डबराल, अनिल चमडिया, अपूर्वानंद, वीरभारत तलवार, राम पुनियानी, एस.आनंद, आदि अनेक अंग्रेजी, हिंदी और मराठी के प्रतिष्ठित लेखक शामिल हैं। उन्‍होंने यहां मंगलवार को गृह मंत्री ने नाम जारी अपील में कहा कि –  ‘यह देश विचार, मत और आस्थाओं के साथ अनेक बहुलताओं का देश है और यही इसकी मूल ताकत है. लोकतंत्र ने भारत की बहुलताओं को और भी मजबूत किया है।  आजादी के बाद स्वतंत्र राज्य के रूप में भारत ने अपने संविधान के माध्यम से इस बहुलता का आदर किया और उसे मजबूत करने की दिशा में प्रावधान सुनिश्चित किये.

फॉरवर्ड प्रेस पर दिल्ली पुलिस का छापा मोदी सरकार का फासीवादी कदम: जेयूसीएस

लखनऊ। जर्नलिस्टस् यूनियन फॉर सिविल सोसाईटी (जेयूसीएस) ने फॅारवर्ड प्रेस के दिल्ली कार्यालय पर दिल्ली की बसंतनगर थाना पुलिस द्वारा 8 अक्टूबर को छापा मारने तथा उसके चार कर्मचारियों को अवैध रूप से हिरासत में लिए जाने की घटना की कठोर निंदा की है। जेयूसीएस ने दिल्ली पुलिस की इस कारवाई को फॉसीवादी हिन्दुत्व के दबाव में आकर उठाया गया कदम बताते हुए इसके लिए नरेन्द्र मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। इसके साथ ही फॉरवर्ड प्रेस की मासिक पत्रिका के अक्टूबर-2014 के अंक ’बहुजन श्रमण परंपरा विशेषांक’ को भी पुलिस द्वारा जब्त करने को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताते हुए इसे मुल्क में फासीवाद के आगमन की आहट कहा है।

उनकी सालों की मनुस्मृति पर ‘फॉरवर्ड प्रेस’ का मात्र एक अंक भारी पड़ गया….

Vineet Kumar : उनकी सालों की मनुस्मृति पर फॉरवर्ड प्रेस का मात्र एक अंक भारी पड़ गया…. और आप कहते हैं- हिंदी में कुछ भी लिख दो, फर्क और असर तो सिर्फ अंग्रेजी से ही पड़ना है… नहीं तो जिसे लेखक, संपादक की हैसियत से छापा गया, उसे पाठक की हैसियत से लेने के बजाय गुंडई पर उतर आने की ज़रूरत क्यों पड़ जाती..

‘फारवर्ड प्रेस’ के आफिस पर छापा और चार मीडियाकर्मियों की गिरफ्तारी भाजपा में शामिल ब्राह्मणवादी ताकतों के इशारे पर हुई!

फारवर्ड प्रेस के सलाहकार संपादक प्रमोद रंजन ने गुरुवार को जारी प्रेस बयान में कहा कि ”हम फारवर्ड प्रेस के दिल्‍ली कार्यालय में वसंत कुंज थाना, दिल्‍ली पुलिस के स्‍पेशल ब्रांच के अधिकारियों द्वारा की गयी तोड़-फोड़ व हमारे चार कर्मचारियों की अवैध गिरफ्तारी की निंदा करते हैं। फारवर्ड प्रेस का अक्‍टूबर, 2014 अंक ‘बहुजन-श्रमण परंपरा’ विशेषांक के रूप में प्रकाशित है तथा इसमें विभिन्‍न प्रतिष्ठित विश्‍वविद्यलयों के प्राध्‍यापकों व नामचीन लेखकों के शोधपूर्ण लेख प्रकाशित हैं। विशेषांक में ‘महिषासुर और दुर्गा’ की कथा का बहुजन पाठ चित्रों व लेखों के माध्‍यम से प्रस्‍तुत  किया गया है। लेकिन अंक में कोई भी ऐसी सामग्री नहीं है, जिसे भारतीय संविधान के अनुसार आपत्तिजनक ठहराया जा सके।”

‘फारवर्ड प्रेस’ कार्यालय पर पुलिस का छापा, ‘बहुजन-श्रमण परंपरा विशेषांक’ के अंक जब्‍त

फारवर्ड प्रेस कार्यालय में आज सुबह पुलिस ने छापा मारा तथा हमारा ‘बहुजन-श्रमण परंपरा विशेषांक’ (अक्‍टूबर, 2014) के अंक जब्‍त करके ले गयी। हमारे ऑफिस के ड्राइवर प्रकाश व मार्केटिंग एक्‍सक्‍यूटिव हाशिम हुसैन को भी अवैध रूप से उठा लिया गया है। मुझे भूमिगत होना पड़ा है। मैं जहा हूं, वहां मेरे होने की आशंका पुलिस को है। इस जगह के सभी गेटों पर गिरफ्तारी के लिए पुलिस तैनात कर दी गयी है। शायाद वे जितेंद्र यादव को भी गिरफ्तार करना चाहते हैं ताकि आज (9 अक्‍टूबर) रात जेएनयू में आयोजित महिषासुर दिवस को रोका जा सके। हमें अभी तक किसी भी प्रकार के एफआइअार की कॉपी भी नहीं मिल पायी है। लेकिन जाहिर है कि यह कार्रवाई ‘महिषासुर’ के संबंध में फारवर्ड प्रेस द्वारा लिये गये स्‍टैंड के कारण कार्रवाई की गयी है।