मेरे दो मित्र… बहुत समय से मन है कि पटना के दो पत्रकार मित्रों की अद्वितीय प्रतिभा और भयंकर जीवन संघर्ष और बारे में विस्तार से लिखूं। हिंदी में इस तरह के लेखन की समृद्ध परंपरा रही है। लेखकों के अपनी साथियों पर अनेक प्रशंसात्मक संस्मरण, रेखाचित्र आदि लिखें हैं, जिनसे आज हमें उन्हें समझने में मदद मिलती है। राजेंद्र यादव, कमलेश्वर और मोहन राकेश द्वारा एक दूसरे पर लिखे संस्मरण भी इसके बेहतरीन उदाहरण हैं। लेकिन राजेंद्र जी ने हंस के पन्नों पर बाद के बर्षों में जो संस्मरण लिखे और लिखवाये वे किसी न किसी को ध्वस्त करने के लिए थे। उनहें साबित करना था कि ‘वे देवता नहीं है’।