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सुख-दुख

ट्रेन के आरक्षित डिब्बे में सफ़र करने वाले हैं तो ये नया नियम जान लें वरना बेटिकट मान लिए जाएँगे!

जेब काटने की एक और तरकीब! ये एक बकवास कानून है। छोटे स्टेशनों पर एक तो गाड़ी एक मिनट ठहरती है।जल्दबाजी में यात्री किसी भी बोगी में चढ़ जाता है। उसको अपने सीट तक पहुंचने में कभी कभी आधा घंटा तक लग जाता है। नये नये प्रयोग किया जाता है ।यात्रियों की सुविधाओं से कोई लेना-देना नहीं।

S 1 से S 15 तक कैसे कोई पहुंचेगा दस मिनट में

या

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B 1 से B 12 तक कैसे कोई पहुंचेगा?

कौन लोग बैठे हैं सत्ता में?

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नियम बनाने का क्या है कुछ भी बना दो, 10 minute में TTE चेक भी करने आ भी पाएगा, सारे सरकारी उपक्रम understaff है. मूर्खता है यह.

ट्रेन में चड़ते ही किसी को टाइलेट जाना पड़ जाए और वह दस मिनट तक सीट पर नहीं जा पाया तो बेटिकट हो गया, मोदी जी तो गज़ब ही कर दिए।

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अधिकांश रेलवे स्टेशनों पर कोच डिस्प्ले बोर्ड भी नहीं है तो दस मिनट में कोई भी यात्री अपने सीट पर कैसे पहुंचेगा। बुजुर्ग, बीमार, अशक्त यात्रियों का क्या होगा।

इस निर्णय से रेलों में झगड़े होंगे। यह गलत निर्णय है। इन्हें रेलों में तोड़ फोड़, आगजनी करवानी है ताकि ये पुराने डिब्बे खत्म हों और आधुनिक वंदे मातरम ट्रेन जैसी ट्रेनें ही चलें ताकि वे ही लोग चढ़ सकें जो महंगी टिकिट खरीद सकते हों जिससे अडानी को फायदा ही फायदा हो.

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