हिन्दुस्तान में मंडल-कमंडल की सियासत ने कई सरकारों की आहूति ली तो कई नेताओं को बुलंदियों पर पहुंचा दिया।मंडल के सहारे वीपी सिंह ने अपनी सियासी जमीन मजूबत की।समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव,राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू यादव ने भी इस मुद्दे से खूब राजनैतिक रोटियां सेंकीं।राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के विवाद में मुलायम ने खुल कर मुसलमानों की पैरोकारी की जिसकी सहारे लम्बे समय तक मुलायम उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज रहे आज भी अगर सपा का जनाधार मजबूत है तो इसके पीछे अयोध्या आंदोलन की जड़े ही हैं। उधर कमंडल(राम मंदिर आंदोलन) के सहारे भाजपा भी लगातार बढ़ती गई।कमंडल के सहारे ही लाल कृष्ण आडवाणी,कल्याण सिंह,उमा भारती,विनय कटियार, जैसे नेता उभर कर सामने आये।1992 में जब तक विवादित ढांचा गिरा नहीं दिया गया तब तक यह नेता लगातार चमकते रहे,लेकिन विवादित ढांचा गिरते ही इन नेताओं की सियासत पर भी ग्रहण लग गया।विवादित ढ़ांचा गिरते ही इन नेताओं के ही नहीं भारतीय जनता पार्टी के भी बुरे दिन आ गये।
खैर,भाजपा में एक तरफ गरमपंथी नेताओं का गुट था जिसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का भी आशीर्वाद मिला था तो दूसरी तरफ नरमपंथी कहलाये जाने वाले नेता अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी में अपनी जड़े मजबूती से जमाये हुए थे,यहां तक की आरएसएस भी अटल के प्रति श्रद्धा का भाव रखता था।आडवाणी और अटल दोनों के तेवरों में काफी फर्क था,फिर भी दोनों की नजदीकियां काफी थीं।कहा तो यहां तक जाता है कि अटल जी प्रधानमंत्री बने तो इसमें लाल कृष्ण आडवाणी का सबसे बड़ा योगदान था।अटल जी की पार्टी के भीतर तो चलती ही थी अन्य दलों के नेता भी उनका आदर करते थे।
यह सब बातें अब इतिहास बन चुकी हैं।भारतीय जनता पार्टी में सियासत की नई इबारत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ‘सबका साथ-सबका विकास’ के नारे के साथ लिख रहे हैं।उनकी सबको साथ लेकर चलने की सोच को धीरे-धीरे बल भी मिल रहा है।मोदी ने विकास की खातिर राम मंदिर निर्माण और धारा 370, समान नागरिक संहिता जैसे मसलों से अपने आप को किनारे कर लिया है,जिसको लेकर संघ हमेशा से गंभीर रहा है। इतना ही नहीं राम मंदिर आंदोलन के नेताओं को भी मोदी सरकार में जगह नहीं मिल पाई,सिवाय उमा भारती के,लेकिन उन्हें भी गंगा अभियान तक ही सीमित कर दिया गया है।आडवाणी जी अब भाजपा के मार्ग दर्शक बन कर रह गये हैं।पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को राजस्थान का राज्यपाल बना कर सियासी पिच से किनारे कर दिया गया है।राम मंदिर आंदोलन में अग्रणी रहने वाले राज्यसभा सांसद विनय कटियार को भी मोदी ने कोई जिम्मेदारी नहीं दी है।यह बात कटियार शायद पचा नहीं पा रहे हैं और इसी लिये वह मंदिर मुद्दे को हवा देकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश में हैं।
कटियार अपनी ही सरकार को कटघरें में खड़ा करते हुए यहां तक कहते हैं कि कुछ समय तक अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की पहल करने में केंद्र सरकार के सामने कोई संवैधानिक अड़चन नहीं है। इस दिशा में मौजूदा केंद्र सरकार का मार्ग पूर्व की यूपीए सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल शपथ पत्र से प्रशस्त हो रहा है। इस शपथ पत्र में यूपीए सरकार ने कहा था कि यदि साबित हो जाय कि बाबरी मस्जिद का निर्माण किसी ढांचे को तोड़कर हुआ था, तो वह हिंदुओं की मांग का समर्थन करते हुए मंदिर निर्माण में सहयोग करेगी।कटियार यहीं नहीं रूकते हैं वह कहते हैं कि हाईकोर्ट के निर्णय से जब स्पष्ट हो गया है कि रामलला जिस भूमि पर विराजमान हैं, वहां पहले से मंदिर था और आर्कियालॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट से भी यह तथ्य प्रमाणित हो चुका है। ऐसे में सरकार के सामने मंदिर निर्माण की दिशा में सहयोग को लेकर कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। उन्होंने दोहराया कि मंदिर निर्माण की उपेक्षा ठीक नहीं है और इससे जन भावनाएं आहत होंगी।कटियार का मंदिर निर्माण को लेकर बयान उस समय आया है जबकि एक दिन पूर्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कुछ मुस्लिम धर्मगुरूओं से मुलाकात हुई थी। कटियार का बयान कोई खास मायने नहीं रखता है लेकिन उन्होंने विरोधियों तो हल्ला मचाने का मौका थमा ही दिया है।
सवाल यह उठता है कि जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ,साधू समाज मंदिर मसले पर शांत है और यहां तक की विश्व हिन्दू परिषद भी इस मुद्दे को ज्यादा हवा नहीं दे रहा है तब विनय कटियार की ऐसी क्या मजबूरी है जो उन्हें अलग लाइन लेकर चलना पड़ रहा है।विनय कटियार भगवान राम की नगर अयोध्या(फैजाबाद)से आते हैं।हो सकता है इस वजह से उनकी कुछ मजबूरियां हों,लेकिन देशहित में तो यही है कि राम मंदिर निर्माण या तो अदालत के फैसल से बने या आम सहमति से।आम सहमति बनना ज्यादा मुश्किल काम नहीं है।क्योंकि हिन्दुस्तान का मुसलमान जानता है कि यह देश बाबर के तौर-तरीके से नहीं चल सकता है।मगर लाठी-डंडे के बल पर यह बात किसी के दिमाग में नहीं बैठायी जा सकती है।कुछ फैसले आवेश में आकर लेने की बजाये समय पर लिये जाये तो उसके नतीजे ज्यादा सार्थक निकलते हैं।राम मंदिर हिन्दुओं की आस्था से जुड़ा है।भगवान राम हिन्दुओं के कर्ण-कर्ण में विराजमान हैं।राम मंदिर से अच्छा हैं भगवान राम के दिखाये रास्ते पर चलना, जिससे देश में राम राज्य आ सकता है।जहां सभी सुखी रहेंगे।आज की तारीख में राम मंदिर नहीं राम राज्य की बात होनी चाहिए।बात कटियार की कि जाये तो भले ही उन्हें इस बात का मलाल हो कि अयोध्या में राम लला का मंदिर नहीं बन पा रहा है,लेकिन फैजाबाद और अयोध्या की जनता को राम लाल के मंदिर निर्माण से अधिक इस बात का मलाल है कि भगवान राम के प्रति गहरी आस्था रखने वाले विनय कटियार ने अपनी संासदी और विधायिकी के दौरान अयोध्या के विकास की ओर जरा भी ध्यान नहीं दिया।अगर वह चाहते तो अयोध्या बड़ा धार्मिक पर्यटन स्थल बन सकता था।
कटियार को समझना चाहिए कि अब माहौल बदल गया है।देश की नई पीढ़ी का इस तरह की बातों से कोई सरोकार नहीं रह गया है।जब अटल बिहारी वाजपेयी ने केन्द्र में सरकार बनाई थी तब ही यह बात कह दी जाती की वह तब ही सरकार बनायेंगे जब राम मंदिर निर्माण के लिये 370 सीटें उन्हें मिल जायेंगी। तब संभवताःइतनी सीटें दिलाने के लिये हिन्दू समाज जातिपात भूल कर एकजुट हो भी जाता,लेकिन तब तो भाजपा सरकार बनाने और चलाने की हड़बड़ी में थी।
बहरहाल, बाबरी मस्जिद के बुजुर्ग मुद्दई मो. हाशिम अंसारी ने अयोध्या में भाजपा नेता विनय कटियार के अयोध्या में शीघ्र राम मंदिर बनाने संबंधी बयान को गैर-जिम्मेदाराना बताया है। उन्होंने कहा कि आज जब अलगाव-दुराव से दूर रहकर देश को एकजुट रखने की जरूरत है, तब कटियार का मंदिर राग समझ से परे है। उन्होंने याद दिलाया कि मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन रहते इस तरह का बयान कोर्ट की अवमानना भी है।
अजय कुमार से संपर्क : ajaimayanews@gmail.com