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सुख-दुख

रामेश्वर पांडेय की आखिरी तस्वीर

लखनऊ के बैकुंठ धाम पर हुआ दाह संस्कार, सोशल मीडिया पर याद करने का सिलसिला जारी

Prabhat Mishra-

आपके स्नेह को भूलना असंभव है सर, नहीं रहे रामेश्वर पांडेय… अमर उजाला, दैनिक जागरण सहित कई अखबारों के संपादक रहे वरिष्ठ पत्रकार आदरणीय रामेश्वर पांडेय जी ‘काका’ के निधन सूचना मेरे लिए अत्यंत ही चोट पहुंचाने वाली है। बहुत ही मर्माहत करने वाली। वे मेरे अभिन्न मित्र राममिलन शुक्ला के जीजा जी थे। राममिलन ने ही अपने गांव पिपरी में मुझे उनसे अप्रैल 2000 में मिलवाया था। यही मुलाकात मेरे अमर उजाला से जुड़ने की कड़ी बनी थी। पांडेय जी ने टेस्ट देने के लिए जालंधर बुलाया। टेस्ट में सफल होने के बाद मैं एक जून को अमर उजाला का हिस्सा बना। राममिलन से अभी बात हुई तो इस पीड़ादायक खबर की पुष्टि हुई। सर के बड़े बेटे राजन से बात करने के बाद उसे सांत्वना देने के लिए मेरे पास शब्द नहीं थे। उसने बताया कि सर रात में ठीक थे पर सुबह उनकी तबीयत बिगड़ी और पांच बजे उन्होंने आखिरी सांस ली।

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मैं आपके साले का मित्र था तो आपने उसी तरह का स्नेह मुझे दिया। आप मेरे संपादक थे तो मुझे गढ़ने का भी काम किया। गलती होने पर समझाया भी। जालंधर डेस्क के सेकेंड इंचार्ज, अमृतसर डेस्क के इंचार्ज, जनरल डेस्क के सेकेंड इंचार्ज के साथ राष्ट्रीय खेल के दौरान खेल डेस्क की भी जिम्मेदारी दी। मेरे जिले पलामू के प्रति आपके दिल में काफी जगह थी। यही कारण था कि आपने न सिर्फ मुझे बल्कि राज आलोक सिन्हा, राजीव मिश्रा, राकेश मिश्रा, सत्येंद्र गुप्ता, रविशंकर जैसे युवाओं को अपनी टीम का हिस्सा बनाया। जब आप अमर उजाला नोएडा आए तो उसके बाद मैं भी दैनिक जागरण नोएडा आ गया। यहां काफी दिनों तक हमलोग वार्तालोक सोसाइटी में रहे।

आपको मैं सर कहता था पर मेरी पत्नी के आप जीजाजी और बच्चों के फूफा जी थे। आपसे न तो रक्त संबंध था न ही कोई रिश्तेदारी पर आपसे मेरी इससे भी ज्यादा नजदीकी थी। आज झटके से यह नजदीकी टूट गई। सर, आप सदा दिल में रहेंगे। आपको और आपसे मिले स्नेह को भूलना असंभव है। प्रभु दीदी, वंदना, राजन, मनीष और सोनल को इस असह्य पीड़ा को सहने की क्षमता दें। प्रभु आपको अपने श्रीचरणों में स्थान दें। सादर नमन, विनम्र श्रद्धांजलि।

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Dr-Akhannd Pratap Singh Manav-

अलविदा रामेश्वर काका! पत्रकारिता जगत में “काका” के नाम से मशहूर वरिष्ठ पत्रकार रामेश्वर पांडेय का आज निधन हो गया. वह अमर उजाला, दैनिक जागरण सहित कई अन्य अखबारों में संपादक रह चुके थे.

स्व.रामेश्वर पांडेय हमारे गांव के पास के ही रहने वाले थे. मैं उनसे पहली बार 1987 में गोरखपुर में मिला था. तब मैं गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम.एससी. कर रहा था और अखबारों में लिखने का कीड़ा जबरदस्त था. उस समय गोरखपुर में आज, दैनिक जागरण और स्वतंत्र चेतना, ये तीन ही प्रमुख अखबार हुआ करते थे.

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एक दिन मैंने पंजाब में चल रहे आतंकवाद पर एक बड़ा लेख लिखा और “आज” अखबार में छापने के लिए ले गया पर वहां बताया गया कि इस तरह के लेख हेड ऑफिस से आते हैं. फिर मैं उसी लेख को लेकर स्वतंत्र चेतना अखबार पहुंच गया, ये सोचकर कि इनका हेड ऑफिस तो यहीं है. उस समय स्वतंत्र चेतना अखबार के संपादक हुआ करते थे तड़ित कुमार. पता करने पर मालूम चला कि आज तड़ित दादा नहीं हैं तो आप रामेश्वर पांडेय जी से मिल लीजिए. मैने उनको संदेश भिजवाया कि विश्वविद्यालय से मैं आया हूं. तब तक मैं ये नहीं जानता था कि वो मेरे गांव के पास के ही हैं. थोड़ी देर में काका मुझसे मिलने बाहर वेटिंग एरिया में ही आ गए. बड़े शांत स्वभाव से मेरा मंतव्य पूछा तो मैंने उन्हें अपना लेख पकड़ा दिया और बोला कि इसे आप छाप दीजिए. मेरी राइटिंग काफी अच्छी हुआ करती थी तो उन्होंने मेरी राइटिंग और कॉन्फिडेंस दोनों की तारीफ की और बोले देखता हूं. मैने बोला आप देख लीजिएगा और न छापने लायक हो तो मुझे वापस कर दीजिएगा. फिर उन्होंने अपना लैंडलाइन नंबर दिया और बोला दो दिन के बाद मैं उन्हें फोन कर लूं.

दो दिन के बाद मैंने सोचा फोन क्या लगाऊं, जाकर मिल ही लेता हूं क्योंकि छापेंगे तो है नहीं कम से कम अपना लेख ही वापस ले आऊंगा. तो मैं मिलने ही चला गया. उस दिन वो काफी व्यस्त थे तो बस इतना संदेश भिजवाया कि वो इस लेख को जल्द ही छापेंगे. मैंने 2-3 दिन अखबार में ढूंढा पर मेरा लेख नहीं दिखा. रविवार के दिन बड़े अनमने भाव से फिर स्वतंत्र चेतना अखबार देखा पर मेरा लेख नहीं दिखा. अचानक मेरी नजर स्वतंत्र चेतना के संडे सप्लीमेंट पर गई जिसमें प्रथम पृष्ठ पर लगभग पूरे पेज पर पांच बड़े फोटो के साथ मेरा लेख छपा था. काका ने मुझे हीरो बना दिया था. दूसरे दिन विश्वविद्यालय में मेरे लेख की खूब चर्चा रही. वो पेज मैंने आजतक संभाल कर रखा है. उसके बाद तो काका ने मेरे कई लेख छापे.

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काका यंग टैलेंट्स को ऐसे ही प्रोत्साहित करते थे. उन्होंने अपने कार्यकाल में बहुतों को नौकरी दी और बहुतों पर अपनी सकारात्मक छाप छोड़ी. आज उनके निधन की सूचना सुनकर बहुत आत्मिक कष्ट हुआ. वैसे जाना तो एक दिन सबको है. पर काका लोगों को अपनी अच्छी यादें देकर गए.

काका को अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि…

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Raghavendra Pathak-

रामेश्वर पांडेय एक श्रद्धांजलि : एक संवेदनशील और मानवता से भरे ओजस्वी संपादक का जाना..! अमर उजाला और दैनिक जागरण जैसे अखबारों में बड़े संपादकीय पदों पर रहे हम सबके प्रिय रामेश्वर पांडेय काका अब हमारे बीच नहीं हैं। उनका जाना पत्रकारिता जगत के लिए अपूर्णीय क्षति है।

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ख़बरों के दोहराव या अन्य किसी त्रुटि पर वे कहते थे- “पाठक जी, दुर्घटना तब होती है जब हम असावधान होते हैं। सड़क पर गाड़ी से चलने के दौरान हम यदि अपनी तरफ से गलती न करें और साथ ही आगे चल रहे गाड़ीवान की गलतियों के प्रति भी Keep distance और रफ्तार पर नियंत्रण रखकर सावधान रहें तो दुर्घटना से काफी हद तक बचा जा सकता है।

यही सावधानियां अखबार में होने वाली संभावित गड़बड़ियों को भी रोक सकतीं हैं।” यानी दोतरफा सावधानी.! उनका व्यवहार मधुर था और चेहरा मानवीय। कटु से कटु बातों को भी सरलता से ट्रांसफर कर देते थे मगर जिसे संदेश देना चाहते थे, उस तक सख्त संदेश पहुंच जाता था।

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मैंने देश की हिंदी पट्टी में कुछ बहुत बड़े नामवर संपादकों के साथ काम किया है। मेरी नजरों में रामेश्वर पांडेय जी सर्वोपरी हैं। उन्होंने हमेशा मेरा सम्मान बनाए रखा। वे कहा भी करते थे- “एक पत्रकार के लिए उसका आत्मसम्मान बना रहे, उसकी हमें सदैव रक्षा करना चाहिए।”

वो पैंतरेवाज भी नहीं थे, साथियों के साथ राजनीति भी नहीं करते थे, झूठ भी नहीं बोलते थे और न ही अपनी बातों से पलटते थे। उन्हें साथियों पर कभी दादागीरी करते नहीं देखा। यही कारण है कि सभी सहयोगी उनका दिल से सम्मान करते थे।

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उनका बिहार से भी नाता रहा। वे मुजफ्फरपुर में दैनिक जागरण अखबार के पहले संपादक बने। पंजाब, उत्तर प्रदेश आदि अन्य राज्यों में उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।
दुख की इस घड़ी में हम सब उनके परिजनों के साथ हैं। भगवान् उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें और परिवारीजनों को इस दुखद घटना से उबरने की शक्ति। हरि ॐ।।

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1 Comment

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  1. रवि राय

    June 9, 2023 at 2:50 pm

    रामेश्वर पांडेय के साथ 1978 से 1981 तक जागरण गोरखपुर में रहा। उनका हमेशा का मजाकिया, हल्का- फुल्का व्यवहार , हर किसी से आत्मीयता, हर समय सभी की मदद के लिए तत्पर रहना – हर नवोदित और मेरे जैसे नौसिखुआ के लिए काफी बड़ा सहारा था। बातचीत में मुझे उनसे बहुत लिबर्टी मिलती थी। मैं उन्हें रामेश्वर पांडेय की जगह पामेश्वर रांडे कहता। वे हंसते और कहते ‘तुम बहुत परम हो।’

      पालेकर अवार्ड की संस्तुतियों को लागू करने के लिए जागरण गोरखपुर में हड़ताल हुई। रामेश्वर पांडेय के साथ कई पत्रकार, गैर पत्रकार अखबार की नौकरी से रातोरात निकाल दिए गए।कानपुर, लखनऊ, पटना की यूनिट्स से अतिरिक्त स्टाफ गोरखपुर लाए गए।स्वतंत्र भारत के तपे तपाए पत्रकार अखिलेश  मिश्र को लखनऊ से ला कर  गोरखपुर जागरण का सम्पादकीय प्रभारी बनाया गया।

    हड़ताल टूट गई, कई के सर पर आफत का पहाड़ टूटा और मेरा दिल के साथ मनोबल भी।  अपनी अखबार की लगी लगाई नौकरी पर लात मार कर बैंक की बाबूगिरी करने चला गया। तड़ित दादा, उमेश मिश्र, जगदीश दुबे, रामेश्वर पांडेय, तरुण, श्रीकृष्ण लाल, युवराज सिंह, विनय श्रीकर, रवि राय का बना बनाया कुनबा ही बिखर गया।कोई यहां गया कोई वहां गया।न जाने कौन कहां गया।कुछ खबर नहीं।

    बहुत दिनों बाद पता चला कि तरुण गोंडा के ग्रामीण बैंक में, कुछ साथी गोरखपुर के आज अखबार में तो कुछ लखनऊ ,दिल्ली के अन्य अखबारों में चले गए। चतुर्थ श्रेणी के कई कर्मी रिक्शा ठेला खींचते मिले।

    इस बीच रामेश्वर पांडेय कब कानपुर, रांची, पटना  आदि के आज, जागरण, राष्ट्रीय सहारा अखबारों से  होते हुए लखनऊ के जागरण में अवतरित हुए।वे कैसे और कब काका कहलाने लगे,पता नहीं।

    लखनऊ मेरा ननिहाल है। पारिवारिक समारोह, बैंक की ट्रेनिंग या अन्य विभागीय काम से मैं अक्सर लखनऊ जाता।हर बार कोशिश यही रहती कि पुराने साथियों से मिलूं।अखिलेश जी, जय प्रकाश शाही,हर्षवर्धन शाही,दयानंद पांडेय, रामेश्वर पांडेय, नवनीत मिश्र ,सरवत जमाल जैसे मित्रों से मिल भी लेता।

    रामेश्वर पांडेय से इंदिरानगर में मुंशीपुलिया के निकट उनके निवास पर कई बार मिला। आखिरी बार अभी विगत फरवरी माह में गया था।बातचीत में सामान्य थे पर काफी कुछ बदल चुका था।डायलिसिस चल रही थी।तमाम व्याधियों से ग्रस्त थे। उसी समय लगा था कि अब यह अपनी उत्कट जिजीविषा के बल पर हैं। अंतरांगों से शिथिल हो रहे थे । पर , दुर्धर्ष योद्धा की भांति अपनी सरल हंसी और जीने की अभिलाषा के साथ मैदान में डटे हुए थे।
    अंततः वे समय से हारे पर लड़ते हुए।
    सलाम कामरेड !

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