Shambhunath Shukla : टीवी न्यूज चैनलों में Ravish Kumar एक शानदार एंकर ही नहीं है या वे महज न्यूज चयन में सतर्कता बरतने वाले बेहतर टीवी संपादक ही नहीं अथवा आम आदमी के सरोकारों के प्रति आस्था जताने वाले पत्रकार ही नहीं है वरन उनकी असल खूबी है उनकी सामाजिक सरोकारों के प्रति आस्था। एक ही उदाहरण काफी होगा जब कल उन्होंने एक वृद्घ से बात करते हुए कहा कि बेटियां न होतीं तो क्या होता! इस एक वाक्य ने हम पति-पत्नी को भिगो दिया। मुझे खुशी हुई यह सुनकर।
मेरी तीन बेटियां हैं और दो बहनें भी। सब रोज फोन करती हैं कैसे हो भैया और कैसे हो पापा। न कोई बेटा न कोई भाई। मगर बेटियां या बहनें कोई बेटे या भाई से कमतर तो नहीं। यह अलग बात है कि हर कोई कहता रहता है कि एक बेटा होता तो अच्छा होता। खाक अच्छा होता! मुझे अपने मरने के बाद कोई धार्मिक कर्मकांड नहीं कराना और जिनके घर बेटे होते हैं तो आमतौर पर देखता हूं कि बेटे की नौकरी के बाद वे भी अलग-थलग रह जाते हैं। अथवा बेटे की शादी होती है तो बहू से पटी न पटी तब फिर क्या! इससे तो बेटियां-बहनें अच्छी माँ-बाप व भाई की पीड़ा को समझती हैं और हर कष्ट या पीड़ा में सहायक होती हैं।
कुनबा बेटियों से बढ़ता है बेटे तो अलग रहते व बसते हैं। बेटियों के प्रति संवेदनशील हो समाज। बेटियों को सम्मान दोगे तो तय मानिए कि बहू भी खुद को सम्मानित महसूस करेगी। वाकई रवीश की यही समझ उन्हें बड़ा बनाती है। मैं तो चाहूंगा कि रवीश सदैव ऐसे ही सामाजिक सरोकारों के प्रति जागरूक बने रहें।
वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ला के फेसबुक वॉल से.
Comments on “रवीश की यही समझ उन्हें बड़ा बनाती है”
काफी दिनों से भाई रवीश कुमार के प्राइम टाइम में नज़र नहीं आए हैं, शंभुनाथ शुक्ला जी। सोमवार को लगता है होगी मुलाकात।