उत्तर प्रदेश में वायु की गुणवत्ता – एक परिचय… उत्तर प्रदेश जनसंख्या के लिहाज से भारत का सबसे बड़ा राज्य है। गंगा के मैदानों में स्थित यह राज्य करीब 20 करोड़ लोगों का घर है और यहां देश का सबसे पवित्र आध्यात्मिक शहर वाराणसी भी स्थित है। दुनिया की सबसे खूबसूरत इमारतों में गिना जाने वाला ताजमहल भी इसी राज्य का गौरव है। इस ऐतिहासिक महत्ता के साथ-साथ यह राज्य अत्यन्त सघन औद्योगिक बनावट के लिये भी जाना जाता है। राज्य के विभिन्न हिस्सों में उद्योगों के समूह फैले हुए हैं। ऊपरी दोआब से लेकर दक्षिण-पूर्व में पूर्वांचल तक मध्यम तथा भारी उद्योगों की पूरी श्रंखला इन क्षेत्रों के शहरी तथा ग्रामीण इलाकों में छितरी हुई है। यह ध्यान देने योग्य है कि दिल्ली से सटे गाजियाबाद शहर से लेकर मध्य प्रदेश की सीमा से लगे सोनभद्र तक राज्य के सम्बन्धित प्रमुख औद्योगिक केन्द्रों में भारत में उत्पादित तापीय बिजली के करीब 10 प्रतिशत हिस्से का उत्पादन होता है। ये सभी औद्योगिक केन्द्र गंगा के प्रमुख नदी बेसिन में स्थित हैं।
वाराणसी शहर तो अपने तटों पर सभ्यताओं को पोसने वाली गंगा नदी के किनारे स्थित है, लेकिन अप्रिय पहलू यह है कि इसी क्षेत्र में यह पवित्र नदी सबसे ज्यादा प्रदूषित है। गंगा नदी में प्रदूषण का पता तो दशकों पहले लग गया था और तभी से यह हितों का मुद्दा भी बन गया। राजनीतिक दलों ने गंगा के निर्मलीकरण के लिये अरबों डॉलर खर्च करने की कसमें खायीं और धीरे-धीरे यह एक ऐसे प्रमुख भावनात्मक मुद्दे में तब्दील हो गया, जिससे वोटों की खेती हो सके। वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद गंगा एक्शन प्लान के लिये अब तक की सबसे ज्यादा धनराशि निर्धारित की गयी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अगले पांच वर्षों में गंगा के निर्मलीकरण पर तीन अरब डॉलर खर्च करने के वादे के साथ सत्ता में आये। गंगा में बड़े पैमाने पर गंदा पानी और औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला कचरा बहाये जाने को इस नदी के प्रदूषित होने के प्रमुख कारणों में गिना जाता है। गंगा नदी के किनारे 400 से ज्यादा टेनरी और औद्योगिक इकाइयां संचालित की जा रही हैं और उनमें से ज्यादातर इकाइयां अपना कचरा सीधे गंगा में डालती हैं।
वर्ष 2009 में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने देश भर में चिंताजनक रूप से प्रदूषित नदी क्षेत्रों की पहचान में मदद के लिये एक राष्ट्रव्यापी क्रम सूची जारी की थी। द कॉम्प्रिहेन्सिव एनवॉयरमेंटल पॉल्यूशन इंडेक्स (सीईपीआई) में वायु, जल तथा मृदा प्रदूषण के स्तरों का आंकलन करके 43 सबसे प्रदूषित जोन की पहचान की गयी थी। इनमें से छह जोन सिंगरौली, गाजियाबाद, नोएडा, कानपुर, आगरा और वाराणसी उत्तर प्रदेश का हिस्सा हैं और इनमें पानी और हवा की गुणवत्ता पूरे देश में सबसे खराब है। कानपुर और वाराणसी में जल प्रदूषण का मुद्दा तो राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया की सुर्खियों में आया लेकिन सिंगरौली को तवज्जो नहीं मिली। सोनभद्र के भूगर्भीय जल तंत्र में पारे और फ्लूराइड के प्रदूषण के मुद्दे की मीडिया रिपोर्ट लगभग नगण्य ही रही। औद्योगिक क्षेत्रों में समस्या का स्तर तभी बड़ा महसूस होता है, जब उसके बारे में कोई नयी मीडिया रिपोर्ट आती है। प्रदेश के सामने समानान्तर रूप से एक और संकट सिर उठा रहा है। वह समस्या है जहरीली हवा की, जो क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में वायु की गुणवत्ता को खराब कर रही है।
वर्ष 2012 में आईआईटी दिल्ली ने वायु में घुलने वाले कणों को लेकर जारी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि समूची गांगीय पट्टी पर नाइट्रोजन एवं सल्फर ऑक्साइड्स के स्तरों के उच्च स्तर पर पहुंचने का गहरा खतरा है, जो वायु में पार्टिकुलेट मैटर के स्तरों में बढ़ोत्तरी के लिये जिम्मेदार है। पार्टिकुलेट मैटर की वजह से वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है और यह दमा, फेफड़ों की बीमारी और यहां तक कि दिल का दौरा पड़ने के लिये भी जिम्मेदार होता है। इसका असर आबादी के सबसे नाजुक लोगों यानि बच्चों और बुजुर्गों पर महसूस किया जाता है। वायु प्रदूषण को लेकर सबसे महत्वपूर्ण और ध्यान देने योग्य पहलू यह है कि ज्यादातर लोग कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को वायु की गुणवत्ता को बदतर करने के लिये जिम्मेदार मानने से इनकार करते हुए दिखते हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की संख्या करीब 7 है, जिनमें करीब 12000 मेगावॉट बिजली का उत्पादन होता है। दिल्ली के एक समूह ‘अरबन एमिशंस’ ने इस तथ्य को पहचाना है कि सर्दियों के मौसम में खासकर गांगीय क्षेत्र वायु के प्रवाह के रुख में बदलाव के कारण सैकड़ों किलोमीटर दूर स्थित बिजली संयंत्रों से प्रदूषणकारी तत्व उड़कर इस क्षेत्र में आ जाते हैं। इनके द्वारा तय की जाने वाली दूरी हवा के प्रवाह की तेजी पर निर्भर करती है, जो क्षेत्र के प्रदूषण स्तरों में खासी बढ़ोत्तरी लाती हैं। दुनिया भर में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को भारी मात्रा में वायु तथा जल प्रदूषण के लिये जिम्मेदार कारक के रूप में चिह्नित किया गया है। यह प्रदूषण लाखों मौतों का कारण बनता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की वर्ष 2016 की रिपोर्ट में दुनिया के जिन 20 सबसे प्रदूषित शहरों का जिक्र किया गया है उनमें से चार तो उत्तर प्रदेश के हैं। इलाहाबाद, कानपुर, फिरोजाबाद और राजधानी लखनऊ को दुनिया में सबसे खराब वायु गुणवत्ता वाले शहरों के तौर पर आंका गया है। दम घुटने की स्थिति में वाराणसी… केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का वर्ष 2015 का डेटा इस साल जून में जारी किया गया है, जिसमें वाराणसी की हवा को देश में सर्वाधिक प्रदूषित माना गया है। जल प्रदूषण को लेकर अपनी प्रतिष्ठा के इतर राज्य के प्रदूषण वॉचडॉग ने खुलासा किया है कि पिछले साल जिन 227 दिनों में वायु प्रदूषण का मापन किया गया, उनमें से एक भी दिन हवा की गुणवत्ता अच्छी नहीं रही। यही वजह है कि वाराणसी देश के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल किया जा रहा है।
देश में सबसे चिंताजनक रूप से प्रदूषित शहर के रूप में चिह्नित किये जाने के बावजूद वाराणसी में वायु की गुणवत्ता पर निगरानी अब भी लापरवाहीपूर्ण और अनेक प्रथम श्रेणी के शहरों के मानकों से काफी निचले स्तर की है। वाराणसी के लंका में कार्यरत श्वास रोग विशेषज्ञ तथा फिजीशियन, सिगरा क्षेत्र में प्रैक्टिस करने वाले बाल रोग विशेषज्ञ डाक्टर प्रदीप जिंदल तथा अन्य चिकित्सकों ने इस बात की पुष्टि की है कि वाराणसी में वायु प्रदूषण की वजह से व्यस्कों तथा बच्चों में एलर्जिक दमा, कफ वाली खांसी तथा सांस की अन्य बीमारियां बढ़ रही हैं।