चिटफंड कम्पनी टिम्बरवर्ल्ड के खिलाफ निर्णय सुनाते हुए दिल्ली की तीसहजारी कोर्ट ने सेबी के हुक्मरानों को भी खरी-खरी सुना दी. कोर्ट ने कहा है कि यदि नियामक संस्थाओं ने सुस्ती या लापरवाही न दिखाई होती और समय पर सख्त कार्यवाई की होती तो आज निवेशकों के करोड़ों रुपये डूबने से बच जाते. कोर्ट ने कम्पनी पर 25 करोड़ का जुर्माना लगाया है. इस कम्पनी ने नियमों की कमजोरी का फायदा उठाते हुए बाजार से सामूहिक निवेश के जरिये 22 करोड़ रुपये उठाये और फिर अन्य चिटफंड कम्पनियों की तरह कभी वापस नहीं किया.
इससे पहले सहारा मामले में भी सेबी उच्च अदालत की डांट खा चुका है. पिछले दिनों शारदा चिटफंड मामले में अपने दो सांसदों की गिरफ्तारी के बाद पच्छिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी कह चुकीं हैं कि जब इस तरह की चिटफंड कम्पनियां पनपती थी तो सेबी जैसी संस्थाएं कहाँ सो रही थी. सेबी पर ये उंगलियाँ अनायास नहीं उठ रहीं है. पीयरलेस के बाद सहारा तक होते हुए आज तक देश में लगभग 4000 ऐसी चिटफंड कम्पनियां अस्तित्व में हैं. ये आंकडा तो उन कम्पनियों का है जो रियल स्टेट, बकरी पालन, आलू निवेश, इलेक्ट्रिकल्स, मसाला उद्योग जैसे तमाम कार्यों में निवेश के नाम पर जमा रकम को दूना करने के मामले में सामने आईं है, गाँव देहातों में सेबी, रिजर्व बैंक और पुलिस प्रशासन से दूर काम करने वाली संस्थाएं इनमें शामिल नहीं है.
क्या करती है सेबी जैसी संस्थाएं?
सेबी का पहला काम शेयर बाजार में कारोबार कर रहीं कम्पनियों पर लगाम रखना और निवेशकों के हित सुरक्षित करना है. हालांकि भारत की पहली चिटफंड कम्पनी मानी जाने वाली पियरलेस का जन्म १९३२ में ही हो गया था और अधिकृत रूप से सेबी का जन्म १९९२ में हुआ. खेद है कि सेबी अपने काम में अभी तक खरी नहीं उतर पाई इसका सबूत भारत में इस समय मौजूद ४००० से अधिक चिटफंड कम्पनियां है जिनमे से कुछ का टर्नओवर टी इतना है कि हमारे देश के कई राज्यों के सालाना बजट भी शर्मा जाएँ. अकेले छत्तीसगढ़ में ही ४०० से अधिक कम्पनियां काम कर रहीं है, जिनमें से १ दर्जन के खिलाफ हाल ही में कार्यवाई की गई है. इसी प्रकार उड़ीसा इन चिटफंड कम्पनियों की पसंदीदा जगह है.
सहारा, शारदा, पर्ल्स, रोजवैली जैसी वर्तमान कम्पनियां सेबी की मौजूदगी के बाद भी लाखों करोड़ का टर्नओवर करतीं रहीं और सेबी संसाधनों और अधिकारों की कमी का रोना रोती रही. वो तो अगर सहारा- सेबी प्रकरण सामने न आता तो लोगो को सेबी के अस्तित्व की जानकारी भी शायद ही हो पाती.
अब तो सक्षम है सेबी
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड यानि सेबी के नीति नियंताओं का रोना देख कर केंद्र सरकार ने संसद ने एक विशेष बिल पास कर उसे न सिर्फ अधिकार सम्पन्न बना दिया बल्कि साधन सम्पन्न भी कर दिया. अब सेबी को इस बिल के जरिये ये अधिकार है कि वह किसी ऐसी कम्पनी के विरुद बलपूर्वक कार्यवाई करे जिस पर उसे निवेशकों से धोखाधड़ी करने का शक है. उसके कागजात, बैंक खाते सील कर दे, उसकी संपत्तियों की खरीद फरोख्त पर रोक लगा दे और चाहे तो पुलिस की मदद से उसके निदेशकों को तुरंत अरेस्ट भी करा दे. यही नहीं कम्पनी ने निवेशकों से जो बाजार से धन उगाया है उसकी वसूली के लिए हर संभव कार्यवाई करे, यानि सेबी ऐसी फर्जी कम्पनियों पर काल बन कर टूट पड़े और उसे इसके लिए सरकार से अनुमति लेने की जरुरत नहीं है.
क्या है हाल?
इतने अधिकार और संसाधन मिलने के बाद भी निवेशकों से रकम लुट रही है और कम्पनी सरकारी कायदे कानूनों के तहत अपना काम कर रही है. रिजर्व बैंक से भी कई बार सेबी को फटकारें पड़ चुकीं है और अदालतें तो जब तब ऐसे मामलों में सेबी की भूमिका पर सवाल उठाती रहतीं है. सहारा पर भी सेबी की नजर तब पड़ी जब वह अपनी योजनाओं के जरिये बाजार से लाखों करोड़ रुपये उठा चुकी थीं. सेबी ने तो सहारा की जिन दो कम्पनियों पर कार्यवाई की उन्होंने केवल २७ हजार करोड़ ही मार्केट से उठाया था, जबकि सहारा की कई अन्य कम्पनियां आज भी मार्केट से पूंजी उठाने में जुटीं है जिनमे सहारा क्यू शॉप भी एक है.सेबी का दावा है कि अकेले पच्छिम बंगाल में ही ६४ कम्पनियों के संजाल में १० लाख करोड़ से अधिक रु गरीब निवेशकों का फंसा है. इसके अलावा राज्य में आर्थिक हेराफ़ारी करने वाली कम्पनियां अनगिनत हैं जिनका काम आज भी जारी है. पर्ल्स, सम्रद्धि जीवन, साईं प्रकाश, रोजवेली जैसी कई कम्पनियां आज भी सेबी की नजर बचाकर बाजार से पैसा उठा रहीं हैं. ऐसी कम्पनियों के पास बाजार से उठाये गए पैसे का अगर हिसाब लगाया जाए तो ये भारत के कई बड़े प्रदेशों के बजटों से अधिक बैठेगा.
हरिमोहन विश्वकर्मा की रिपोर्ट.
Comments on “सहारा की कई कंपनियां आज भी मार्केट से पूंजी उठाने में जुटीं हैं… कहां है सेबी?”
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