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सुख-दुख

हाड़ कंपाती ठंड में सहारा के मेन गेट पर बैठे ये बर्खास्त 25 कर्मी किसी को नहीं दिख रहे!

किसी को नहीं दिखाया दे रहा सहारा का यह अन्याय… नोएडा में बड़ी संख्या में राजनीतिक व सामाजिक संगठन हैं। ट्रेड यूनियनें भी हैं। देश व समाज की लड़ाई लड़ने का दंभ भरने वाले पत्रकार भी हैं। पर किसी को इस हाड़ कंपाती ठंड में गेट पर बैठे बर्खास्त 25 कर्मचारी नहीं दिखाई दे रहे हैं। 17 महीने का बकाया वेतन दिए बिना सहारा प्रबंधन ने इन असहाय कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया पर इनकी पीड़ा समझने को कोई तैयार नहीं।

किसी को नहीं दिखाया दे रहा सहारा का यह अन्याय… नोएडा में बड़ी संख्या में राजनीतिक व सामाजिक संगठन हैं। ट्रेड यूनियनें भी हैं। देश व समाज की लड़ाई लड़ने का दंभ भरने वाले पत्रकार भी हैं। पर किसी को इस हाड़ कंपाती ठंड में गेट पर बैठे बर्खास्त 25 कर्मचारी नहीं दिखाई दे रहे हैं। 17 महीने का बकाया वेतन दिए बिना सहारा प्रबंधन ने इन असहाय कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया पर इनकी पीड़ा समझने को कोई तैयार नहीं।

नोएडा में श्रम मंत्रालय से लेकर जिला प्रशासन की पूरी व्यवस्था है पर कोई भी व्यक्ति इन कर्मचारियों को इनका हक नहीं दिलवा पा रहा है। किसान-मजदूरों की लड़ाई लड़ने की बात करने वाले दलों को क्या मेन गेट पर बैठे ये कर्मचारी दिखाई नहीं दे रहे हैं ? मजदूरों की लड़ाई लड़ने की बात करने वाली सीटू भी क्या इस अन्याय से अंजान है। बड़ी-बड़ी बातें लिखने वाले लेखकों को ये पीड़ित मीडियाकर्मी नहीं दिखाई दे रहे हैं? कौन बनेगा इन कर्मचारियों की आवाज? कौन समझगेगा इन कर्मचारियों के बीवी-बच्चों की पीड़ा। बच्चों को साक्षर और स्वस्थ बनाने की बात करने वाली सरकारें बताएं कि जिन कर्मचारियों का 17 महीने का बकाया वेतन न दिया गया हो और उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया हो। वे अपने बच्चों को कहां से पढ़ाएं? कहां से खिलाएं? कहां से बीमारी का इलाज कराएं?

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विज्ञापनों पर करोड़ों खर्च करने वाले सहारा प्रबंधन के पास इन कर्मचारियों को पैसा देने के लिए नहीं। सहारा मालिकान और अधिकारियों के किसी खर्चे में कोई कमी नहीं है। जमकर अय्याशी हो रहे ही है पर पीड़ित कर्मचारियों के लिए पैसा नहीं है। ऐसा नहीं है कि अंदर काम कर रहे कर्मचारी बहुत खुश हों। उनका भी 10-12 महीने का बकाया वेतन संस्था ने नहीं दिया है। स्थानांतरण के नाम पर इन्हें भी डराया हुआ है। देश को आदर्श बनाने और भारत को महान बनाने की बात करने वाला संस्था का चेयरमैन जिंदगी के 20-25 वर्ष संस्था को देने वाले कर्मचारियों की नौकरी ले लेता है पर इनके पक्ष में कोई आवाज नहीं उठती, इससे शर्मनाक बात और नहीं हो सकती है।

इस नपुंसक समाज में हर कोई ताकतवर व्यक्ति के साथ खड़ा हुआ दिखाई दे रहा है। गरीबों को सताकर नायक बन रहे हैं। मुझसे भी काफी लोग कह रहे हैं आप क्यों बिना वजह के इतनी बड़ी संस्था से दुश्मनी मोल ले रहे हो। मेरा कहना है कि मरा तो जन्म ही अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए हुआ है। दूसरों के लिए लड़ने के लिए हुआ है। अपने बच्चों की परवरिश तो मैं मजदूरी करके भी कर लूंगा पर किसी दमन के सामने नहीं झुकूंगा। जब हम अपनी ही लड़ाई नहीं लड़ सकते तो दूसरों की क्या खाक लड़ेंगे। जानवरों की खाल भी जूते बन जाते हैं पर आदमी की खाल के तो जूते भी नहीं बनते। क्या करेंगे हम इस शरीर का? कहां ले जाएंगे इन पैसों को? जितना हम दूसरों के काम आ जाएंगे वह ही हमारा असली पुरुषार्थ है। अपने लिए तो सब जीते हैं जरा दूसरों के लिए भी जी कर देखो।

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मैंने तो सहारा के अन्याय के खिलाफ 2006 में ही मोर्चा खोल दिया था। हम लोग एक-एक पैसा सहारा से लेकर रहेंगे और एक बार ससम्मान अंदर भी जाकर दिखाएंगे। हमारे हौंसलों को कोई गेट कोई ताकत नहीं रोक सकती है। कानूनी रूप से हम सहारा को मुंह तोड़ जवाब देते रहेंगे।

चरण सिंह राजपूत
[email protected]

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0 Comments

  1. sumnesh kr. Chaturvedi

    January 23, 2017 at 12:13 pm

    हमारे डिज़ाइनर पत्रकार जो छोटी छोटी घटनाओं पर अनर्गल विधवा बिलाप करते है, उन्हें ये सच नहि दिखेगा। दलाली के दलदल में आकंठ डुबने के बाद इनकी हालत” मुदहु आँखि कतहु कछु नहि” वाली हो जाती है, फिर यह सारी समस्या एक दिन में नहि बनी है। विश्व का विशालतम परिवार के कुकर्म का यह नमूना है, अयासि पर करोड़ों लुटाने वाला अपने लोगों को बेसहरा बना कर पता नहि कोन सी देशभक्ति का सन्देश दे रहा है राम जाने, लेकिन इतना तो सच है कि “जासु राज प्रिय प्रजा दुखारि, सोइ निरिप अवस नरक अधिकारी”( मानस) इति शुभम।

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