Connect with us

Hi, what are you looking for?

टीवी

‘रिपब-लिक टीवी’ मानें भाजपा की गुंडा वाहिनी, शेहला रशीद ने कुछ गलत नहीं किया!

Samar Anarya : अगर आपको लगता है कि रिपब-लिक टीवी वाले को भगा के शेहला रशीद डोरा ने कुछ गलत कर दिया है तो आप निहायक बेवकूफ हैं! क्या है कि नैतिकता और सिद्धांत दोनों उन पर लागू होते हैं जो खुद भी उन्हें मानते हों! और अगर आपको लगता है कि रिपब-लिक पत्रकारिता की नैतिकता मानता है, एक खबरिया चैनल है तो यह आपकी कम बुद्धि की दिक्कत है- हमारी नहीं!

<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({ google_ad_client: "ca-pub-7095147807319647", enable_page_level_ads: true }); </script> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <!-- bhadasi style responsive ad unit --> <ins class="adsbygoogle" style="display:block" data-ad-client="ca-pub-7095147807319647" data-ad-slot="8609198217" data-ad-format="auto"></ins> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); </script><p>Samar Anarya : अगर आपको लगता है कि रिपब-लिक टीवी वाले को भगा के शेहला रशीद डोरा ने कुछ गलत कर दिया है तो आप निहायक बेवकूफ हैं! क्या है कि नैतिकता और सिद्धांत दोनों उन पर लागू होते हैं जो खुद भी उन्हें मानते हों! और अगर आपको लगता है कि रिपब-लिक पत्रकारिता की नैतिकता मानता है, एक खबरिया चैनल है तो यह आपकी कम बुद्धि की दिक्कत है- हमारी नहीं!</p>

Samar Anarya : अगर आपको लगता है कि रिपब-लिक टीवी वाले को भगा के शेहला रशीद डोरा ने कुछ गलत कर दिया है तो आप निहायक बेवकूफ हैं! क्या है कि नैतिकता और सिद्धांत दोनों उन पर लागू होते हैं जो खुद भी उन्हें मानते हों! और अगर आपको लगता है कि रिपब-लिक पत्रकारिता की नैतिकता मानता है, एक खबरिया चैनल है तो यह आपकी कम बुद्धि की दिक्कत है- हमारी नहीं!

Advertisement. Scroll to continue reading.

आपको याद भी है कि कैसे रिपब-लिक ने भीड़ को उमर खालिद और कन्हैया जैसे साथियों के खिलाफ हिंसा करने को उकसाने की भरपूर कोशिश की थी? क्या लगता है आपको? जब तक रिपब-लिक एकाध साथी को सच में न मरवा दे तब तक उसे न्यूज़ चैनल मानेंगे? सो साथियों की लाशों पर गिद्ध भोज की प्रतीक्षा न करें! रिपब-लिक को वह मानें जो वह है- भाजपा की गुंडा वाहिनी! बाकी शेहला ने जो किया ठीक किया मगर कम किया! ज़्यादा दिन न लगेंगे जब जनता इन गुंडों की और बेहतर दवा करना शुरू कर देगी! तब हम निंदा भी करेंगे कि हिंसा ठीक नहीं है!

Dilip Khan : दो दिनों से कई पोस्ट पढ़ चुका हूं जिसमें Shehla Rashid की इस बात पर आलोचना की जा रही है कि उसने Republic के पत्रकार को क्यों हड़काया। कुछ बातें कहने को हैं:

Advertisement. Scroll to continue reading.

1. ये जो ताज़ा रिपब्लिक है और जिसका डॉन पहले TIMES NOW में था, उसने कैसी रिपोर्टिंग और कैसी डिबेट की JNU को लेकर? ज़्यादा नहीं, बस डेढ़ साल पहले की बात है। पूरे देश में जेएनयू की जो ख़ास तरह की छवि बनाई गई, उसमें अर्नब गोस्वामी का बड़ा रोल है।

2. टाइम्स नाऊ जब जेएनयू, शेहला, Umar, Kanhaiya, Anirban इन सबको देशद्रोही बता रहा था तो वो कौन सी Neutrality और Objectivity दिखा रहा था? Objectivity नाम के शब्द को पत्रकारिता में बार-बार रटाया जाता है। पहले मीडिया इसे फॉलो करे। शेहला एक्टिविस्ट है। उसे पक्ष-विपक्ष चुनने की आज़ादी है। उसे आज़ादी है कि वो किसी चैनल को बाइट दे और किसी की माइक सामने से हटा दे। आप ज़बर्दस्ती मुंह पे माइक टांग देंगे क्या?

Advertisement. Scroll to continue reading.

3. ये भी हो सकता है कि वो रिपोर्टर अपने चैनल की आइडियोलॉजिकल फ्रेम से अलग हो। ऐसा होता भी है। लेकिन माइक जिस संस्था की थी उसका एजेंडा बिल्कुल क्लीयर है। पहले दिन से साफ़ है। उस एजेंडे को शेहला अपने विरोध में पाती है। इसलिए उसकी मर्जी है कि वो माइक हटाने को कह दें।

4. जिस प्रोटेस्ट में शेहला ने ऐसा किया वो 3 बजे प्रेस क्लब के भीतर वाला प्रोटेस्ट नहीं था, जिसे “सिर्फ़ पत्रकारों” का कहकर प्रचारित किया जा रहा है। शेहला वाला मामला उससे पहले का है, जो पत्रकारों के अलावा एक्टिविस्टों की साझे कॉल पर हो रहे प्रोटेस्ट में घटित हुआ।

Advertisement. Scroll to continue reading.

5. मान लीजिए किसी मीडिया हाउस ने किसी संस्था के ख़िलाफ़ रिपोर्टिंग की। हफ़्ते भर बाद उस संस्था का कोई आदमी न्यूज़रूम पहुंच जाए और ज्ञान देने लगे तो चैनल वाले क्या करेंगे?

6. गौरी लंकेश की हत्या पर जो खेमा जश्न मना रहा है, रिपब्लिक उस खेमे को आइडियोलॉजिकल खुराक देता है। ऐसे में Gauri Lankesh की हत्या के ख़िलाफ़ प्रदर्शन में अगर रिपब्लिक की माइक कोई मुंह पर तान दे तो स्वाभाविक ग़ुस्सा निकलेगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

7. पत्रकारिता में या कहीं भी objectivity सबसे बेकार चीज़ है। इसपर किसी को कोई डाउट हो तो अलग से बात कर लेंगे। ऑब्जेक्टिविटी की जो वैचारिक hegemony है वो बहुत ख़तरनाक है। तराजू से तौल कर निष्पक्षता नहीं आती। आप टास्क के तौर पर मुझे कोई बढ़िया डिबेट/लेख दे दीजिए मैं बता दूंगा कि कहां कहां ऑब्जेकेटिविटी नहीं है। लेख अगर ऑब्जेक्टिविटीवादी का हो तो और बढ़िया

सोशल एक्टिविस्ट और मानवाधिकारवादी समर अनार्या और पत्रकार दिलीप खान की एफबी वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.

ये भी पढ़ें…

xxx

Advertisement. Scroll to continue reading.

xxx

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. Santy kr

    September 9, 2017 at 5:39 pm

    लेवल गिर गया है भड़ास का की किसी की भी FB से कुछ भी उठा के डाल दो.आज कुछ चैनल bjp के लगते है और 3 साल पहले तक सभी चैनल कांग्रेसी से तब सांप सूंघ गया था .शुक्रिया करो सोशल मीडिया का नही तो सभी इतने सालों से आम आदमी को बेबकूफ बना रहे थे.सबसे ज्यादा foe की बात करने बाले असल में खुद दूसरो को भगा देते है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement