रामदेव की दवाएं और सामान न खरीदने के लिए तर्क दे रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा

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Rajiv Nayan Bahuguna : क्यों न खाएं रामदेव की दवा… मैं कोई रसायन शास्त्री अथवा कीमियागर नहीं हूँ, अतः अपने सामान्य बुद्धि विवेक का प्रयोग कर मित्रों को सलाह देता हूँ कि रामदेव के किसी भी उत्पाद का इस्तेमाल न करें, अपितु बहिष्कार करें।

1:- रामदेव का व्यक्तित्व संदिग्ध है। किसी संदिग्ध व्यक्ति से असन्दिग्ध और शुद्ध उत्पाद की अपेक्षा नहीं की जा सकती।

2:- भगवा बाना पहनने वाला व्यक्ति यदि राजनीति, विज्ञापन, प्रचार, विमान, अकूत धन सम्पदा के फेर में पड़े, तो वह स्वतः ही कोई ठग, मायावी अथवा बुरी नीयत वाला व्यक्ति है। साधुवेश में सीता हरण करने वाले रावण का प्रतीक ग्रहण करें।

3:- एक सन्यासी अग्नि वर्ण के चीवर पहनने से पहले स्वयं ही अपना श्राद्ध करता है। अर्थात हर प्रकार के बन्धनों से मुक्त हो जाता है। भगवा वस्त्र छोड़ कर स्वप्न में भी सन्यासी कोई अन्य वस्त्र धारण करे, तो वह स्वतः ही सन्यास च्युत हो जाता है, यह आद्य शंकराचार्य की देशणा है। सन्यासी माइनस 30 डिग्री तापमान में भी कोई अन्य वस्त्र नहीं पहनते, चाहे जान चली जाए। लेकिन व्यर्थ के प्राण भय से ग्रसित हो रामदेव ने दिल्ली के रामलीला मैदान में क्या किया था, सभी जानते हैं।

4:- झूठ बोलना कलयुग में मानव स्वभाव है। हम सभी बोलते हैं। लेकिन सन्यासी झूठ बोलने लगे तो धर्म का कौन हवाल। इन दोनों ने बाल किसन की फ़र्ज़ी डिग्री को लेकर साफ़ झूठ बोला।

5:- मेरे मित्र और टिहरी बाँध आंदोलन में साथी रहे राजीव दीक्षित दुर्योग से रामदेव के फेर में पड़ गए। बीमार हुए तो मैंने उन्हें राम देव की नीम हकीमी छोड़ उचित उपचार की सलाह दी। नहीं माने। मर गए।

6:- धर्म निरपेक्षता, लोकतन्त्र और समतावाद के मूल्यों में विश्वास करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए रामदेव की दवा ज़हर के समान है। गांधी अंग्रेजी दवा को छूते तक नहीं थे, क्योंकि अंग्रेजी सभ्यता के विरुद्ध थे।

यह पोस्ट सिर्फ विवेक शील मनुष्यों के लिए है, भक्तों के लिए नहीं। भक्त गण मज़े से रामदेव की दवा खाकर अनुलोम विलोम करें। अपने खाते में आ चुके 15 लाख रोकड़े का प्रबन्धन करें। इस पोस्ट पर मुझसे फ़ालतू हुज़्ज़त न करें।

अब बात थोड़ी पहाड़ की और गर्मियों में आने वाले मैदानी भाइयों के लिए…. जब गर्मी सताये, तो कम्प्यूटर पर बैठ बर्फ़ के चित्र देखो। बार बार पहाड़ न जाओ। जब जाओ तो वहां तमीज़ से रहो। धमाल न मचाओ। प्लास्टिक, पॉलीथिन और अपने मन की गन्दगी वहां न छोडो। गर्म कपड़े वहीं के स्थानीय अभिक्रम से निर्मित खरीदो, और भोजन भी स्थानीय करो। चाउमिन न खाओ। बिसलेरी न पीओ। पहाड़ के हर झरने का पानी मिनरल वाटर है। रामदेव के झांसे में आकर उसकी चीजें मत खरीदो। जब पहाड़ भी गर्म और कलुषित हो जाएंगे, तो कहाँ जाओगे।

जहाँ तक सम्भव हो कार की बजाय बस से जाओ। गाड़ी तेज़ न हांको। हॉर्न कम बजाओ। पहाड़ी नदी में गहरे न उतरो। सेल्फ़ी लेते वक़्त बन्दर और चिंपैंजी जैसी शक़्ल न बनाओ। वहां के लोक देवताओं का सम्मान करो। ये गैर साम्प्रदायिक और सरल होते हैं। इनका सांस्कृतिक महत्व भी है। मसूरी, नैनीताल की अपेक्षा ग्वालदम, गैरसैण, सोमेश्र्वर, जगेश्र्वर, चोपता, पंवाली जाओ। मसूरी-नैनीताल में ठग्गू का समोसा बिकता है, छोटी जगहों पर प्यार और सम्मान मिलेगा। निन्देह यहां लड़कियां छेड़ोगे और नंगा नाच करोगे, तो बुरे पिटोगे। भागने का कोई रास्ता नहीं रहता। जिस रास्ते से आये हो, उसी से जाना भी पड़ता है। हरिद्वार या देहरादून अथवा हल्द्वानी में कभी नाइट स्टे मत करो। कुछ आगे बढ़ कर ही छोटी, लेकिन सौम्य बस्तियां मिलेंगी।

और अंत में पुनः नेक सलाह। राम देव का उत्पाद कभी न खरीदना। वह विज्ञापन का मायावी है, और कुछ नहीं।

उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा के फेसबुक वॉल से.



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