Abhiranjan Kumar : एक तरफ़ कांग्रेसी थे, जिन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर, सरदार वल्लभ भाई पटेल इत्यादि को भी भारत रत्न दिये जाने लायक नहीं समझा, दूसरी तरफ़ भाजपाई हैं, जो कांग्रेस-कुल के भ्रष्ट लोगों का भी तुष्टीकरण करने में जुट गए। एक दिन वे उन्हें भ्रष्ट कहते हैं, दूसरे दिन पद्मविभूषण घोषित कर देते हैं। याद कीजिए, हालिया महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी के तमाम नेताओं ने किस तरह से एनसीपी को भ्रष्टाचार का पर्यायवाची बताया था।
साफ़ तौर पर भ्रष्टाचार के ये पर्यायवाची शरद पवार, अजीत पवार और छगन भुजबल जैसे नेतागण ही थे। स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने शरद पवार और एनसीपी के बारे में क्या-क्या कहा था, देखें-
बारामती में- “चाचा-भतीजे (शरद – अजीत) की लूट समाप्त करनी है।”
कोल्हापुर में- “ये राष्ट्रवादी नहीं, भ्रष्टाचारवादी हैं।”
पंडरपुर में- “एनसीपी मतलब नेचुरली करप्ट पार्टी।”
पंडरपुर में ही- “एनसीपी मूल रूप से भ्रष्ट है। पार्टी के गठन के बाद से कुछ भी नहीं बदला है। इसके नेता वही (शरद पवार) हैं। क्या आप जानते हैं कि उनकी घड़ी (चुनाव चिन्ह) का क्या मतलब है? उनकी घड़ी में 10 बजकर 10 मिनट दिखाया गया है, जिसका अर्थ यह है कि प्रत्येक 10 वर्ष बाद उनकी भ्रष्ट गतिविधियां 10 गुनी बढ़ जाती हैं।”
तो क्या यह समझा जाए कि मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए ही शरद पवार को पद्मविभूषण से सम्मानित करने का फ़ैसला किया है? और क्या अब काले धन और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ निर्णायक लड़ाई भ्रष्ट लोगों को सम्मानित करके लड़ी जाएगी?
फेसबुक पर पत्रकार अभिरंजन कुमार.