दयानंद पांडेय-
कौन कहां का मुख्यमंत्री बनेगा, यह कहना अभी कठिन है। पर शिवराज सिंह चौहान, रमन सिंह और वसुंधरा राजे सिंधिया 2024 में मोदी के आगामी मंत्रिमंडल का हिस्सा ज़रुर होंगे , यह मेरा स्पष्ट आकलन है। राजनीति और रणनीति अपनी जगह है पर सवाल है कि चुनाव हार कर भी धामी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बन सकते हैं तो मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को भी मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाना चाहिए ?
लेकिन समय रहते शिवराज मोदी के मन की बात को समझ गए। सो बड़ी विनम्रता से लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश के 29 कमल मोदी के गले में डालने का मंत्र पढ़ने लगे हैं। यह वही शिवराज सिंह चौहान हैं जिन्हें कभी लालकृष्ण आडवाणी ने 2014 में नरेंद्र मोदी के समांनांतर रखा था बतौर प्रस्तावित प्रधानमंत्री। शिवराज भी आडवाणी के इस कहे में ज़रा फिसले तो लेकिन तब भी बहुत जल्दी ही अपने को संभाल ले गए थे।
फ्रस्ट्रेटेड रवीश कुमार के विश्लेषण में भी इस बार वह नहीं फंसे कि मध्य प्रदेश में मोदी नहीं , शिवराज सिंह चौहान की लहर थी। लाडली बहना की लहर थी। शिवराज जानते हैं 17 साल लगातार कम नहीं होते किसी मुख्यमंत्री के लिए। वह भी मोदी राज में। वहीं वसुंधरा राजे सिंधिया मोदी के मन की बात पढ़ने में चूक गईं। भूल गईं पुराना नारा : मोदी तुझ से बैर नहीं , रानी तेरी ख़ैर नहीं। विधायक बटोरने लगीं। विधायकों की बाड़ेबंदी करने लगीं। पर जल्दी ही भाग कर दिल्ली आ गईं , मोदी शरणम गच्छामि के लिए !
राजनीति और रणनीति से भी ऊपर भाजपा ही नहीं , भारत में इन दिनों मोदी नीति का जलवा है। मोदी नीति कोई लिखित नीति नहीं , मन की बात वाली नीति है। जो जीता वही मोदी है , वाली बात है। फ़िलहाल तो चुनाव में , ख़ास कर मध्य प्रदेश के चुनाव में मुस्लिम वोटों का रुझान बताता है कि 2024 में लोकसभा चुनाव एकतरफा होने जा रहा है। मध्य प्रदेश से मिले आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस को मुस्लिम वोट एकमुश्त मिले हैं। बंटे नहीं हैं।
मुस्लिम वोट का ध्रुवीकरण जब होता है , बंटता नहीं है , स्वाभाविक रुप से हिंदू वोट का भी ध्रुवीकरण हो जाता है। मोदी और भाजपा के पक्ष में हो जाता है। बिना किसी प्रचार के। बिना कुछ कहे। बिना किसी ऐलान के। मुस्लिम वोटर बीच में अपनी रणनीति के तहत जो भाजपा को जहां हराता दिखे , उसे वोट दे रहा था। लेकिन अब उसे कांग्रेस यह समझा देने में सफल हो गई है कि भाजपा को सिर्फ कांग्रेस ही हरा सकती है। मुसलमानों की इसी समझ के चक्कर में कांग्रेस की जातीय जनगणना वाली रणनीति फुस्स हो गई। और वह खेत रही।
मोदी और अमित शाह ने बहुत मेहनत कर के मंडल और कमंडल के वोटर को एक साथ खड़ा किया है। एकजुट किया है। कांग्रेस और उस के साथी दल इसी लिए जातीय जनगणना के मार्फ़त मंडल और कमंडल वोट अलग-अलग करने की नीति पर चले। लेकिन मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ और राजस्थान में यह चाल नहीं चल पाई। मुंह की खा गई कांग्रेस। और जो सिलसिला इसी तरह चला तो तय मानिए कि उत्तर प्रदेश में आगामी लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा पूरी तरह साफ़ हो जाएंगे।
क्यों कि भाजपा के पास मंडल , कमंडल दोनों वोट होंगे। जब कि मुट्ठी भर यादव वोट सपा के साथ और मुट्ठी भर ही दलित वोट बसपा के साथ होंगे। जेनरल वोट के साथ सारे के सारे मुस्लिम वोट कांग्रेस के साथ। ऐसे में भाजपा और मोदी को तो वाकओवर मिलना ही है। कैसे और कौन रोक सकता है भला भाजपा और मोदी को। ई वी एम का तराना ? हरगिज नहीं। अगर कोई राजनीतिक पंडित कुछ और बता सकता हो तो ज़रुर बताए।
हालां कि भाजपा जिस तरह मोदी नाम केवलम के जाल में फंसी है , भाजपा ही नहीं देश के लोकतंत्र के लिए भी बहुत शुभ नहीं है। यह ठीक है कि देश के अस्सी करोड़ लोगों को मुफ़्त राशन , मुफ़्त चिकित्सा बड़ी बात है। देश में चौतरफा तरक़्क़ी मन मोहती है। सड़कों का संजाल , एयरपोर्ट की बहार , बढ़िया रेलवे स्टेशन। कश्मीर में शांति। दुनिया में मोदी और भारत का डंका। विदेश नीति की चमक। सब कुछ सुंदर-सुंदर। चकाचक। यह भी तय है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में 350 से ज़्यादा सीटें भी आएंगी। मोदी की लोकप्रियता के सुरुर में कोई कमी नहीं है। वामपंथियों और कांग्रेसियों को पागल बना कर कुर्ता फाड़ कर सड़क पर घूमने के लिए विवश कर देना भी दीखता है।
पर मोदी राजनीति की जिस राह पर चले पड़े हैं , यह वामपंथियों की राह है। स्टालिन , और माओ की राह है। तानाशाह और फासिस्ट की राह है। कि उन के आगे कोई नहीं। कांग्रेस की राह है। कि कोई गांधी परिवार के ख़िलाफ़ खड़ा नहीं हो सकता। तो भाजपा में भी कोई खुल कर अब मुख्यमंत्री पद की दावेदारी भी करने में लोग भयभीत है। सवाल यह भी है कि अभी तो नरेंद्र मोदी के सहारे भाजपा के दिन , सोने के दिन हैं , चांदी के दिन हैं। कोई दो मत नहीं।
पर नरेंद्र मोदी के बाद भाजपा का क्या ? भाजपा में क्या ? जो उस एक गाने के बोल में पूछूं तो भाजपा में मोदी के बाद का बा ?
कोई कह सकता है कि योगी। पर जानने वाले जानते हैं कि किसी बया की तरह योगी ने कांटों में अपना घोसला बना रखा है। आधा समय वह इन कांटों को अपने लिए सुगम बनाने में व्यस्त रहते हैं , आधा समय प्रशासन को साधने में। अपनी पसंद का एक मुख्य सचिव तक नहीं बना सके हैं योगी। कभी पी एम ओ में रहे सेवा विस्तार पाए नौकरशाह को , मुख्य सचिव बना रखा है , मोदी ने। योगी पर नकेल के लिए।
उत्तर प्रदेश में एक समय का मुलायम राज याद आता है। मुलायम जब बसपा के समर्थन से उत्तर प्रदेश के दूसरी बार मुख्य मंत्री बने तो मुलायम के सचिव बने पी एल पुनिया। पुनिया मुलायम के सचिव ज़रूर थे पर कांशीराम के प्रतिनिधि पहले थे। कांशीराम ने मुलायम पर अंकुश रखने के लिए पुनिया को सचिव बनवाया था। अलग बात है यह पुनिया फिर मायावती के भी सचिव बने और फिर मायावती के गले की फांस भी। अंबेडकर पार्क सहित तमाम घोटाले में फंसा कर मायावती को ध्वस्त कर दिया। अब यही पुनिया , कांग्रेस में हैं।
खैर , सवाल फिर-फिर वही तो भाजपा में मोदी के बाद का बा ?