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सुख-दुख

मोहम्मद रफी आज होते तो 96 साल का सफ़र पूरा कर रहे होते!

वीर विनोद छाबड़ा-

रफ़ी – तेरी गलियों में रखेंगे न क़दम…दो राय नहीं हो सकती कि पुरुष गायकों में सबसे ज्यादा फैन क्लब सिर्फ और सिर्फ मोहम्मद रफ़ी के नाम हैं. उनका जन्म अमृतसर के पास एक गांव कोटला सुल्तानपुर में 24 दिसंबर 1924 को हुआ था. अगर आज वो होते तो 96 साल का सफ़र पूरा कर रहे होते.

रफ़ी की गायकी की बारीकियों के बारे में बात करना सूरज को दिया दिखाने के समान है. वो बेमिसाल थे. हर तरह के गाने गा सकते थे, चाहे क्लासिकल हो या वेस्टर्न, गंभीर हो या कॉमेडी, उनकी आवाज़ का फ़लक़ बेहिसाब रहा. अगर उन्हें मालूम होता था कि उनका गाना फलां कलाकार पर फिल्माया जाना है तो फिर कहने ही क्या. वो खुद उस कलाकार विशेष के सांचे में ढल जाते. धीर-गंभीर दिलीप कुमार हों या चुलबुले जानी वॉकर या फिर विद्रोही स्टार शम्मी कपूर. वो उनकी आवाज़ बन जाते. प्रदीप कुमार, राजेंद्र कुमार और देवानंद की भी रफ़ी बरसों स्थायी आवाज़ रहे. अभिनय की निचली पायदान पर माने जाने वाले बिस्वाजीत (पुकारता चला हूँ मैं.…) और जॉय मुखर्जी (आँचल में छुपा लेना कलियां…) सरीखे अभिनेताओं के बारे में कहा जाता था कि वो अगर फिल्म में खड़े हो पाये तो उन पर फिल्माए रफ़ी के गानों की वज़ह से.

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रफ़ी जितने बेहतरीन गायक थे उतने ही बेहतरीन इंसान भी. किसी भी नए कलाकार को अपनी आवाज़ देने में कोई संकोच नहीं था उनमें. कॉमेडियन को भी आवाज़ को आवाज़ देकर इज़्ज़त बख़्शने वाले रफ़ी साहब पहले थे. इस श्रंखला में जॉनी वॉकर का नाम टॉप पर रहा. सर जो तेरा चकराए या दिल डूबा जाए… , ग़रीब जान कर तुम न भुला देना तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना…मैं बम्बई का बाबू नाम मेरा अनजाना…

मुफ़लिसी के दौर से गुज़र रहे संगीतकार निसार बज़मी की ‘खोज’ के लिए रफ़ी ने एक रूपये में गया. उन दिनों बज़्मी साब को कोई घास नहीं डालता था. बाद में बज़्मी पाकिस्तान चले गए और बहुत बड़े संगीतकार बन गए. लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल को भी शुरुआती दौर में पैर ज़माने में रफ़ी साहब ने बहुत मदद की. उनकी पहली फिल्म ‘छैला बाबू’ के लिए पहला गाना मुफ़्त में गाया. उन्हें नई फिल्मे भी दिलायीं. ‘दोस्ती’ में ‘चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे…से लक्ष्मी-प्यारे कहां से कहां पहुंच गए. इसके लिए रफ़ी साब को बेस्ट सिंगर का फिल्मफेयर पुरुस्कार भी मिला. राकेश रोशन की पहली फिल्म ‘आपके दीवाने’ के लिए रफ़ी साहब ने सिर्फ एक रुपए मेहनताना लिया था. दुनिया जानती है कि बतौर निर्माता-निर्देशक राकेश रोशन आज किस बुलंदी पर हैं.

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बाद के कैरियर में कुछ विवाद उठने के कारण रफ़ी साब कुछ अलोकप्रिय भी हुए. लता जी से उनके मनमुटाव की कई कहानियां अफ़वाह फ़ैक्टरी में बनायीं गयीं. लेकिन रिकॉर्ड में यह है कि उनका झगड़ा फिल्मों में गाने की रॉयल्टी को लेकर हुआ. लता जी गाने के लिए मेहनताने के साथ-साथ रॉयल्टी भी चाहती थीं. प्रोड्यूसर इसके विरुद्ध थे और रफ़ी भी उनके साथ खड़े दिख रहे थे. इस मुद्दे पर बात इतनी गर्म हुई कि रफ़ी साहब ने ऐलान किया कि वो लता जी के साथ नहीं गाएंगे। यही स्टैंड लता जी ने भी लिया. अब यह भी एक डिस्प्यूट है कि पहले किसने गाने से मना किया. कुछ लोग बताते हैं कि ‘माया’ फिल्म में एक गाने (तस्वीर तेरी दिल में जिस दिन से उतारी है.…) की चंद पंक्तियों के कारण संबंध ख़राब हुए थे. संगीतकार सलिल चौधरी ने लता का साथ दिया. एक इंटरव्यू में गायिका उषा तिमोती ने बताया था कि ये सब तो बहाने थे. असल वज़ह थी कि रफ़ी जी अपनी आदत के अनुसार हर नए गायक को प्रमोट करते थे. इसी कड़ी में उन्होंने सुमन कल्याणपुर को प्रमोट किया. लता जी को ये बात पसंद नहीं आई. यों लता जी संगीतकार शंकर-जयकिशन के शंकर के साथ भी गायिका शारदा को प्रमोट करने के मुद्दे को लेकर भी नाराज़ हुई थीं.

उस ज़माने में लोगों को हैरानी होती थी कि आख़िर रिश्तों में इतनी खटास क्योंकर आ गयी कि एक-दूसरे को भाई-बहन मानने वाले रफ़ी और लता एक-दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं गंवाते दिखे. गिनीज़ बुक ऑफ़ रिकॉर्ड ने बताया कि लता ने रिकॉर्ड पच्चीस हज़ार गाने गाये हैं तो रफ़ी साहब ने इसे चुनौती दे डाली. रफ़ी साब की 1980 में मृत्यु के बाद 1991 में गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स के मैनेजमेंट ने आशा भोंसले को 7875 गानों के साथ सबसे ऊपर रखा. रफ़ी साब के नाम 4844 रिकार्डेड गाने बताये गए. बाद में संगीतकार जयकिशन ने 1967 में रफ़ी और लता की सुलह करा दी. अच्छी गायकी के चाहने वालों ने दिल खोल कर स्वागत किया. इसके बाद दोनों के कई गाने रिकॉर्ड हुए.
कुछ साल पहले फिर विवाद खड़ा हो गया. लता जी ने एक समारोह में बताया कि रफ़ी साहब ने उनसे लिखित माफ़ी मांगी थी. जबकि रफ़ी साहब के बेटे शाहिद रफ़ी का कहना है कि माफ़ी नहीं मांगी गयी थी और अगर ऐसा था तो लता जी माफ़ीनामा दिखाएँ. वो माफ़ीनामा अभी तक पेश नहीं हो सका है. बहरहाल इन तमाम विवादों के बावजूद रफ़ी साब कद कम नही हुआ. दुनिया उन्हें एक ऐसे गायक के रूप में याद रखती है जिसका कोई सानी नहीं है. रफ़ी साहब एक सच्चे मददगार होने के अलावा बेहद भावुक भी थे. मन तड़पत हरी दर्शन को आज.… और बाबुल की दुआएं लेती जा.…बताते हैं वो इन गानों की रिकॉर्डिंग पर फूट फूट कर रोये थे. सर्वश्रेष्ठ गायन के लिए फिल्मफेयर में रफ़ी साब 21 बार नॉमिनेट हुए और 6 बार उन्होंने इस ख़िताब पर कब्ज़ा जमाया. एक बार राष्ट्रीय पुरुस्कार भी मिला…क्या हुआ तेरा वादा…
सत्तर के सालों में रफ़ी साहब के गले में इन्फेक्शन हो गया. कुछ वक़्त के लिए वो आवाज़ की दुनिया से गायब रहे. इससे पहले ‘आराधना’ के संगीतकार सचिन बर्मन बीमार पड़ गए. संगीत देने की ज़िम्मेदारी बेटे राहुल देव बर्मन पर आ पड़ी. उनका फोकस किशोर कुमार हो गए. इधर ओपी नय्यर ने भी रफ़ी साहब से किनारा कर महेंदर कपूर को प्रमोट करना शुरू कर दिया. शम्मी कपूर, राजेंद्र कुमार. प्रदीप कुमार, बिस्वजीत जैसे स्टार जिनकी रफ़ी साहब आवाज़ थे, वो स्क्रीन से धीरे धीरे गायब होने लगे. ऐसे दौर में जब रफ़ी साहब बीमारी से लौटे तो उन्हें वीराना दिखा. वो गहरे डिप्रेशन में चले गए. तब नौशाद साहब से रहा नहीं गया. उन्होंने रफ़ी साहब को समझाया – आप आज भी बेस्ट सिंगर हो. याद रखें क्लासिकल सिंगिंग में आप को कोई तोड़ नहीं सकता. और रफ़ी साहब वापस लौटे और एक अवार्ड विनिंग गाना गाया – तेरी गलियों में रखेंगे न क़दम आज के बाद…म्युज़िक कंपनियों के रिकॉर्ड सेलिंग लिस्ट में ये गाना महीनों टॉप पर रहा.

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रफ़ी साहब की अमर आवाज़ आज भी कानों में गूंजती हैं – सुहानी रात ढल चुकी…ओ दुनिया के रखवाले…हम बेखुदी में तुम को पुकारे चले गए.…देखी ज़माने की यारी, बिछुड़े सभी बारी बारी…मिली ख़ाक में मोहब्बत… मधुवन में राधिका नाचे रे.…मैं ज़िंदगी में हरदम रोता ही रहा हूं.…सर जो तेरा चकराए या दिल डूबा जाए.…तुम्हीं ने दर्द दिया है, तुम्हीं दवा देना…और कर चले हम जानो तन साथियों…मेरी आवाज़ सुनो प्यार का राग सुनो…ये ज़िंदगी के मेले दुनिया में कम न होंगे, अफ़सोस हम न होंगे…

जब तक फ़िज़ा है रफ़ी रहेंगे.

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अमर आवाज़ें कभी ख़त्म नहीं होतीं.

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