आजकल थप्पड़ वाला फैशन चल रहा है| पहले जूते फेंकने का था| पर अब वो आउटडेटेड हो गया है| जूता वाला फैशन सक्सेसफुल नहीं था| कई पेंच थे उसमे सबसे बड़ा झंझट था निशाना लगाने का| अब हर कोई अभिनव बिंद्रा तो है नहीं जो 4 करोड़ खर्च कर निशाने बाजी सीखे| अपने यहाँ लोग या तो गुलेल से कबूतर उड़ा के निशाना लगाना सीखते हैं या देशी तमंचे से लोगो को उड़ा कर| अब कबूतर तो साइबेरिया चले गए और तमंचे सारे सपाइयो ने हथिया लिए| ऐसे में आम आदमी निशाना लगाना सीखे भी तो भला कैसे?
दूसरा दम चाहिए भाई जूता फेंकने के लिए| पुरे 271.05 ग्राम का जूता उठाना और उसे ठीक 15 मीटर तक फेंकना कोई बच्चो का खेल नहीं| पर ताकत आये भी तो आये कहाँ से? “मंहगाई के ज़माने में आम आदमी को 3 रूपये के गुटखे खाने से पहले हफ्ते भर का बजट बनाना पड़ता है| 30 रुपये का अमूल दूध मेंगो मैन घंटा पिएगा? कुपोषण की हालत तो ये है कि फिंका हुआ जूता पाकिस्तान के 2000 किलोमीटर वाली मिसाइल की तरह 14 किलोमीटर पर ही गिर जाता है।”
तीसरा जूता फेंकने की योग्यता आपके भौतिक विज्ञान(फिजिक्स), और गति विज्ञान(डायनामिक्स) के सटीक ज्ञान पर भी निर्भर करती है| अब भौतिक और गति विज्ञान जैसे तुर्क शब्दों की बात छोड़िये हम लोगो को सामान्य विज्ञान क्या होता है यही नहीं पता। होता क्या है कि विज्ञान पढ़ाने वाली मैडम को इस वाली मेरिज एनिवर्सरी पर अपने पतिदेव को हाथ से बुना रैबिट छपा स्वेटर गिफ्ट करना है। “पिछली 23 सालो से मैडम स्वेटर में रैबिट के कान की जगह पूंछ बनाती आ रही हैं| इस बार ठान के बैठी है कि खरगोश में कान ही लगाएंगी पूछ नहीं| इसीलिए सारा ध्यान उत्तोलको की जगह सलाइयो पर है| भविष्य के सर आइजैक न्यूटन बनने में यही सबसे बड़ी बाधा है।” यही कारण है कि अपने यहाँ के बड़े से बड़े बुद्धिजीवी 2+2 = “2002” बताते हैं|
इन सब के साथ साथ जूता फेंकना अपनी अर्थव्यवस्था के लिए भी ठीक नहीं है| अब देखिये न एडिडास का वेंटिलेशन वाला जूता 30+20% डिस्काउंट के बाद भी पुरे 2611 का पड़ा था| इतना महंगा जूता अगर आप किसी 2 कौड़ी के आदमी पर फेंक दे तो भले ही आप खुद को रजनीकांत फील करें पर मेरी नजर में तो आप कमाल खान ही साबित होंगे|
इन सबसे उलट थप्पड़ मारने के लिए इन सब की जरूरत नहीं पड़ती| न दम ख़म की जरूरत न फिजिक्स के ज्ञान की और एकदम से बजट में याने के इकोनोमिकल| बस कंटाप के बाद चटाक, इतिश्री और परम सुख की प्राप्ति| ऊपर से नेम फेम के साथ-साथ फेसबुक पर आपके घटिया से घटिया पोस्ट पर 300 लाइक 62 शेयर फ्री| यकीन न हो तो कभी ट्राई करके देखिये|
लेखक अनुज अग्रवाल वर्तमान में अध्ययनरत हैं और समाचार पत्रों में पत्र लेखन का शौक रखते हैं|
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