अंतरजाल की चर्चित पत्रिका शब्दांकन ने 30 जुलाई को साहित्य अकादमी सभागार नई दिल्ली में ‘शब्दांकन संज्ञान’ की शुरुआत ‘पावस 2014’ आयोजन से की। इस कार्यक्रम में वरिष्ठ कथाकार कृष्ण बिहारी के कहानी संग्रह ‘उसका चेहरा’ का लोकार्पण होने के पश्चात उनकी कहानियों पर कई वरिष्ठ वक्ताओं ने प्रकाश डाला। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार रवीन्द्र कालिया ने कहा कि आज बदलते हुए समाज की जो स्थितियां हैं उनसे कृष्णबिहारी जी जूझ रहे हैं, इनकी कहानियों को पढ़कर लग रहा है कि कोई समाज के साथ कदम मिलाकर चलने की कोशिश तो कर रहा है। कृष्णबिहारी जी ज्यों-ज्यों बूढ़े हो रहे हैं इनकी कहानियों के पात्र जवान होते जा रहे हैं। इनकी कहानियों में ज्यादातर यह होता है कि नायक नायिका से अनछुए ही रह जाते हैं।
समारोह के मुख्य अतिथि साहित्यकार राजेन्द्र राव ने कहा कि जीवन में प्रताड़ना, लांछन, बेरोजगारी व अकेलापन आदि हो तभी लेखक बनना संभव है। कृष्णबिहारी अपने जीवन में यह सब कुछ सहते हुए आज इस इतने अच्छे कथाकार बन सके हैं। इनके दिल में अपने देश के प्रति पीड़ा है इसलिए ये आबूधाबी से बार-बार भारत आते हैं। अपने देश से संबंधों को जोड़े रखने के लिए ही इन्होंने ‘निकट’ पत्रिका निकालनी शुरू की है। इस कथाकार में अनंत संभावनाएं हैं। मुख्य वक्ता वरिष्ठ कथाकार ममता कालिया ने कहा कि एक प्रवासी लेखक तो टूरिस्ट की तरह अपना लेखन परोसता है, जबकि कृष्णबिहारी जी की कहानियां हमारे गांव, घर व संस्कृति की कहानियां हैं, जो सवाल पैदा करती हैं, बेचैनी पैदा करती हैं।
वरिष्ठ कथाकार अमरीक सिंह दीप ने कहा कि कृष्णबिहारी की कहानियों में एक अलग बात यह है कि इनमें बच्चों की दुनिया की अंतर्सतह की कहानियां हैं, जो श्रेष्ठ जीवन का संदेश देती हैं। कथाकार प्रज्ञा पाण्डे ने कहा कि कृष्णबिहारी जी की कहानियों के पात्र हाशिए पर खड़े लोग हैं, जिनमें मजदूरों के साथ-साथ निम्न तबके के बच्चे हैं तो दूसरे देशों से लाई गई स्त्रियां भी हैं, जो देह व्यापार में धकेली जाती हैं। इनकी कहानियां मानवीय संवेदना को बहुत ही करीब से छूती हैं। ये कहानियां घोर आशक्ति में डुबाने के बाद हमें विरक्ति की ओर ले जाती हैं। कथाकार रूपसिंह चंदेल ने कहा कि कृष्णबिहारी जी की कहानियों में जीवंतता है तो ताजगी भी है, भाषा में सहजता है तो बोधगम्यता भी है, नदी जैसा प्रवाह भी है। छोटे वाक्य विन्यास इनकी कहानियों की विशेषता है।
पत्रकार, कथाकार व बिंदिया पत्रिका की संपादक गीताश्री ने कृष्णबिहारी जी की कहानियों पर बीज वक्तव्य देते हुए कहा कि कृष्णबिहारी अपनी डुगडुगी नहीं बजाते हैं। अगर वो भारत में होते और साहित्य की राजनीति करते तो क्या तब भी उनकी चर्चा होती। ये एक ऐसे कथाकार हैं जो साहित्यिक क्षेत्र में कम्प्लीट पैकेज हैं, इनकी कहानियों पर चर्चा बेहद जरूरी है। स्वयं कृष्णबिहारी जी ने सभी वक्ताओं व उपस्थित लोगों को इस अच्छे कार्यक्रम के लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि मेरी कहानियों के पात्र जीवित हैं। अपनी कहानियों में प्रेम के बारे में उन्होंने कहा कि जिस वक्त आप प्रेम कर रहे होते हैं सिर्फ प्रेम ही करना चाहिए। मैं कभी कंफर्ट जोन में नहीं रहा, जीवन से पीड़ा खत्म हो जाए तो लोखक भला क्या लिखे। मैं ऐसे किसी विमर्श के साथ कभी नहीं रहा जो सिर्फ एक पक्ष को लेकर चलता है। मैं वहां प्रवासी मजदूर हूं, प्रवासी कथाकार नहीं, कथाकार तो मैं भारत का हूं। कार्यक्रम का संचालन रूपा सिंह ने किया। उन्होंने इस अवसर पर कहा कि हिंदी कथा साहित्य में वर्जनाओं को लेकर दोहरी मानसिकता है। जब कविता व फिल्म आदि में अश्लीलता स्वीकार है तो कथा साहित्य में इसे नकारे जाने की आवाज आखिर क्यों उठती है।
खचाखच भरे सभागार में दो घंटे चले इस आयोजन का प्रो. रूपा सिंह ने सफल संचालन करते हुए बीच बीच में बहुत महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात की।
शब्दांकन के संपादक भरत तिवारी ने कृष्णबिहारी जी के बारे में बताया और सवाल किया “क्या आप में से कोई बता सकता है कि कृष्ण बिहारी जी के कितने कहानी संकलन प्रकाशित हो चुके हैं”? जवाब भी उन्हें ही देना पड़ा, कि ‘उसका चेहरा’ उनका दसवां संकलन है। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापित करते हुए उन्होंने बताया कि ऐसे साहित्यकार जो चर्चाओं से दूर रहते हैं उन्हें आगे भी इस प्रकार के आयोजन से चर्चा में लाने की हम शुरूआत कर रहे हैं।
साहित्य अकादमी का सभागार कुछ इस तरह से भरा हुआ था कि लोग खड़े हो कर भी अपने प्रिय साहित्यकारों को सुन रहे थे। कार्यक्रम में विशेष रूप से वरिष्ठ कवि उपेन्द्र कुमार, कहानीकार इला कुमार, विवेक मिश्र, सुभाष नीरव, पंखुरी सिन्हा, जयंती रंगनाथन, महेश भारद्वाज, अर्चना वर्मा, आकांक्षा पारे, रचना यादव, अमृता ठाकुर, सगीर किरमानी, कमलेश पाण्डेय पुष्प, स्वतंत्र मिश्र, अजय नावरिया, अमृता बेरा, रविन्द्र त्रिपाठी आदि अनेको हस्तियां उपस्थित रहीं।