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ओम थानवी के अवदानों को भुलाया नहीं जा सकता

जनसत्ता के प्रधान संपादक ओम थानवी ढाई दशकों के बाद सेवानिवृत्त हुए. मेरा मानना है कि उनका अनुभव नवांकुर पत्रकारों के लिए एक प्रेरक किस्सा होगा, अगर आप चाहे तो ? नई पीढ़ी के पत्रकारों को उनके अनुभवों का लाभ मिलना चाहिए। 

<p>जनसत्ता के प्रधान संपादक ओम थानवी ढाई दशकों के बाद सेवानिवृत्त हुए. मेरा मानना है कि उनका अनुभव नवांकुर पत्रकारों के लिए एक प्रेरक किस्सा होगा, अगर आप चाहे तो ? नई पीढ़ी के पत्रकारों को उनके अनुभवों का लाभ मिलना चाहिए। </p>

जनसत्ता के प्रधान संपादक ओम थानवी ढाई दशकों के बाद सेवानिवृत्त हुए. मेरा मानना है कि उनका अनुभव नवांकुर पत्रकारों के लिए एक प्रेरक किस्सा होगा, अगर आप चाहे तो ? नई पीढ़ी के पत्रकारों को उनके अनुभवों का लाभ मिलना चाहिए। 

हालांकि, एक बात आपसे ज़रूर कहना चाहूंगा, जो सिर्फ मेरा नहीं, बल्कि कई लोगों की आम शिकायतें हैं कि ओम थानवी जी फोन पर बातें कम किया करते हैं या आपसी संवाद में यकीन नहीं रखते. अगर कोई शख्स थानवी जी को अपनी ज़रूरत या जिज्ञासावश फोन करता है तो, फोन करने वाले उस शख्स से थानवी जी पहले यह पूछना मुनासिब और आवश्यक समझते हैं- “आपको मेरा नंबर किसने दिया?

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गुजिस्ता 7 साल पहले मैं भी ओम थानवी जी के इस प्रश्न से दो-चार हो चुका हूं. हिंदी के एक वरिष्ठ पत्रकार और चिंतक से मैंने ओम थानवी जी का फोन नंबर मांगा. नंबर देते समय उन्होंने मुझे सख्त ताकीद की कि ओम थानवी नंबर देने वाले शख्स का नाम पूछेंगे, चाहे मामला कितना भी गंभीर क्यों न हो ?

मैंने उस वरिष्ठ पत्रकार को जिनका मैं सम्मान करता हूं, उनसे कहा कि ओम थानवी जी शायद आज के बाद, यह प्रश्न नहीं पूछेंगे. बहरहाल, मैंने थानवी जी को फोन किया और थानवी जी ने वही सवाल किया, जिस विषय में उक्त वरिष्ठ पत्रकार ने मुझे बताया था.

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ख़ैर, थानवी जी ने मुझसे सवाल किया कि, आपको मेरा नंबर किसने दिया? मैं शुरू के 30 सेकेंड तक आना-कानी करता रहा. आख़िरकार उस शख़्स का नाम लिया ( असत्य, जो इस दुनिया में नहीं हैं और उनका नाम पत्रकारिता में ओम थानवी से कहीं अधिक है) कि, उन्होंने ही आपका नंबर दिया!!! उसके बाद थानवी जी निरुत्तर हो गए और मुझे आइंदा कभी फोन नहीं करने की सख्त ताक़ीद कर डाली!!!

थानवी जी के इस कथन के बाद मैंने आज तक उन्हें फोन नहीं किया. हालांकि, यह दीगर बात है कि मैं उनके संपादकत्व में कई आलेख/ रिपोर्ट/ रिपोर्ताज जनसत्ता में लिखता रहा.

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ओम थानवी जी, जनसत्ता से आज आप सेवानिवृत्त हुए हैं. इस मौक़े पर आपसे गुज़ारिश है कि आप अपने उन खोखले सिद्धांतों और आदतों का त्याग करें, जिसमें आप फोन करने वाले किसी अजनबी शख्स से यह पूछना लाजिमी समझते हैं कि आपको मेरा नंबर किसने दिया? वगैरह-वगैरह…

ज़ाहिर है, आपको फोन करने वाला कोई पत्रकार/ साहित्यकार/ फिल्मकार/ रंगकर्मी ही होगा; न कि कोई प्रॉपर्टी डीलर/ तस्कर/ दलाल/ मिलावटखोर/ जमाखोर/ दहशतगर्द-आदि ?

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इसलिए थानवी जी, मेरा मुतालवा है कि आपकी ज़िम्मेदारी सेवानिवृत्त के बाद और बढ़ गई हैं, क्योंकि आपको नई पीढी के पत्रकारों को नई दिशा देनी है, इसलिए आपसे आग्रह है कि आप अपना फोन, अपना ईमेल और संवाद के अन्य माध्यमों को सर्वसुलभ बनाएं, ताकि नई पीढ़ी के पत्रकारों को प्रेरणा भी मिले और आप दशकों तक उनके हृदय में मौजूद भी रहें. जनसत्ता में आपके सकारात्मक/ नकारात्मक अनुभवों को भुलाया नहीं जा सकता.

अभिषेक रंजन सिंह ई-मेलः- [email protected] मो. 9313174426

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