Connect with us

Hi, what are you looking for?

पंजाब

अब ‘ट्रिब्यून’ ग्रुप पंजाब सरकार के निशाने पर!

अमरीक-

सूरत-ए-हाल पंजाब प्रेस: 2

पंजाब में इन दिनों आम आदमी पार्टी (आप) सरकार को मीडिया के तीखे, तार्किक एवं विरोधी तेवर इतने नागवार लग रहे हैं कि एक-एक करके प्रेस को दबाने की साजिश की जा रही है। पहले विज्ञापन बंद करके सूबे के सबसे ज्यादा प्रसार संख्या वाले पंजाबी दैनिक ‘अजीत’ पर दबाव बनाने का काम भगवंत मान सरकार ने किया। अब ठीक यही हथकंडा प्रसिद्ध पंजाबी दैनिक ‘पंजाबी ट्रिब्यून’ के खिलाफ इस्तेमाल किया जा रहा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

‘अजीत’ का प्रकाशन अजीत समूह करता है तो ‘पंजाबी ट्रिब्यून’ का देशव्यापी ख्याति रखने वाला ट्रिब्यून ग्रुप। पंजाब में ‘पंजाबी ट्रिब्यून’ और ‘अजीत’ की खास साख है। दोनों ने जब मौजूदा आप सरकार के खिलाफ तार्किक सामग्री का प्रकाशन शुरू किया और पेड न्यूज़ न छापने का निर्णय लिया तो आनन-फानन में दोनों अखबारों के विज्ञापन क्रमशः रोक लिए गए। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी विरोध में तथ्यात्मक खबरें चलाने के लिए ‘सबक’ सिखाते हुए एक चैनल ‘ऑन एयर’ के मालिक और संपादक के खिलाफ ‘पोस्का’ सरीखा सख्त एक्ट लगाकर पुलिसिया रौब से खौफजदा करने की कवायद की गई। इस पूरे प्रकरण पर राज्य के प्रभावशाली लोक संपर्क मंत्री अमन अरोड़ा कमोबेश खामोश हैं और फिलवक्त यही कह रहे हैं कि अधिकारियों से बैठक करके जानकारी लेंगे कि ऐसा क्यों और कैसे किया गया! अरोड़ा का कहना है कि जब यह सब कुछ किया गया तो वह देश से बाहर विदेश में थे।

साफ जाहिर है कि पंजाब सरकार को अजीत समूह और ‘ट्रिब्यून’ ग्रुप की बेबाक, निष्पक्ष और जनपक्षीय पत्रकारिता रत्ती भर भी रास नहीं आ रही। राज्य सरकार इनसे इसलिए भी खफा है कि सत्ता में आते ही विज्ञापनों पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए। स्थानीय ही नहीं बल्कि सुदूर दूसरे प्रदेशों में भी (पंजाब सरकार के बजट से) अखबारों को पूरे-पूरे पेज के विज्ञापन रेवड़ियों की तरह बांटे गए। पहले की किसी राज्य सरकार ने ऐसा नहीं किया। गुजरात और हिमाचल प्रदेश को फोकस में रखकर भी अलिखित विज्ञापन नीति लागू की गई जिसका खुला विरोध विपक्ष ने किया लेकिन पंजाब में ‘अजीत’ ग्रुप और ‘ट्रिब्यून ग्रुप’ के अलावा किसी मीडिया हाउस ने इस पर कुछ नहीं कहा–कुछ नहीं पूछा। लिखने या प्रकाशित करने का तो सवाल ही नहीं था। बल्कि पंजाब में धड़ाधड़ रोज दिए जाने वाले राज्य सरकार के विज्ञापनों का असर यह हुआ कि मीडिया का ज्यादातर हिस्सा सरकार के पक्ष में गुणगान करने लगा और उसकी खामियों पर पर्देदारी! बेशक विज्ञापन ‘अजीत’ और ‘ट्रिब्यून समूह’ को भी मिले लेकिन उनके अखबारों ने सरकारी विसंगतियां पूरे सबूतों के साथ जगजाहिर की। कह सकते हैं कि बखूबी पेशेगत इमानदारी का निर्वाह किया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अब तो राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब सरगोशियां है कि पंजाब सरकार दरअसल, आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल और उनके भेजे गए (उन्हीं के इशारे पर राज्यसभा के सदस्य बनाए गए) राघव चड्ढा चला रहे हैं। स्थानीय लोगों ने भी खुलकर कहना बोलना शुरू कर दिया है कि भगवंत मान को कमोबेश निष्क्रिय कर दिया गया है। वह महज मोहरा भर हैं। बड़ी अथवा अति गोपनीय फाइलें अरविंद केजरीवाल और राघव चड्ढा के इशारों से पास होती हैं। अफसरशाही भी उन्हीं को ज्यादा तरजीह दे रही है। कहा जा रहा है कि चंद पुलिस अफसरों से कनिष्ठ गौरव यादव को कार्यकारी पुलिस महानिदेशक का पद सिर्फ इसलिए दिया गया कि ट्रेनिंग के दौरान वह केजरीवाल के मित्र बने थे और उनके दोस्ताना संबंध कायम हैं। यही वजह है कि राज्य में उनसे वरिष्ठ एकाधिक आईपीएस अधिकारियों ने उनके अधीन काम करने की बजाय राज्य छोड़कर डेपुटेशन पर केंद्र में जाना मुनासिब समझा।

अरविंद केजरीवाल और राघव चड्ढा (तथा उनकी टीम) व मुख्यमंत्री भगवंत मान के बीच स्थानीय पुलिस पिस रही है। नतीजतन सूबे में पुलिस का इकबाल तार-तार है। राज्य अराजकता के हवाले है। नशे का कारोबार पहले की मानिंद जारी है, बस पैटर्न बदला है। कानून व्यवस्था के निकले जनाजे का अंदाजा यहीं से लगाया जा सकता है कि हथियारबद सुरक्षाकर्मियों से घिरे लोगों को भी सरेआम भूना जा रहा है। ‘अजीत’ और ‘ट्रिब्यून ग्रुप’ के अखबारों ने बड़ी सुर्खियों के साथ ऐसी कई खबरें भी प्रकाशित कीं, जो बताती थीं कि आम आदमी पार्टी सरकार कानून व्यवस्था के मोर्चे पर बेतहाशा नाकाम है। इन्हीं अखबारों ने पहले-पहल लिखा कि बदनाम वीवीआइपी कल्चर के मामले में भगवंत मान सरकार पूर्ववर्ती सरकारों से भी दो कदम आगे है। जबकि चुनावों से पहले दावे थे कि वीवीआइपी कल्चर पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उल्टा मुख्यमंत्री और उनके परिवार की सुरक्षा नफरी में उल्लेखनीय इजाफा कर दिया गया और दिल्ली के मुख्यमंत्री आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल सहित कतिपय नेताओं को लंबे चौड़े सुरक्षा काफिले, नियम कायदों को धत्ता बताकर दिए गए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

निष्पक्ष मीडिया ने इस पर भी गंभीर सवाल उठाए लेकिन इन दिनों प्रेस से खास परहेज रखने वाले, खासतौर से ऐसे सवाल पूछने वाले मीडिया से, मुख्यमंत्री भगवंत मान ने लगभग दूरी बना ली। अरविंद केजरीवाल की तरह उन्होंने अपने ‘सुरक्षित दफ्तर’ से ही मीडिया को मुखातिब होना शुरू कर दिया। एकतरफा। सिर्फ सरकार की उपलब्धियां बताने तथा विपक्ष को गरियाने के लिए!

पंजाबी ‘अजीत’ और ‘पंजाबी ट्रिब्यून’ ने बंद कमरों में बखान की गईं मुख्यमंत्री की उपलब्धियों से भरी और एक विशेष टीम द्वारा तैयार की गईं खबरों को ज्यादा तरजीह नहीं दी। बल्कि सच का आईना दिखाया। मीडिया नीति की बाबत भाजपा की लाइन पकड़ने वाली आम आदमी पार्टी ने ‘सबक नीति’ अख्तियार कर ली। प्रेस की आजादी का गला घोंटने के लिए पहले ‘अजीत’ और अब ‘पंजाबी ट्रिब्यून’ के विज्ञापन बंद कर दिए गए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

पंजाब के शेष मीडिया संस्थान सरकार की इस दमनकारी और मीडिया को बाकायदा ‘पालतू’ बनाने की नीति पर पूरी तरह खामोश हैं। एक अखबार समूह का हाल तो यह है कि वह सरकारी विज्ञापन बटोरने के लिए पंजाब में आप सरकार के आगे रेंग रहा है और दूसरे कई प्रदेशों में भाजपा का साथ देते हुए आम आदमी पार्टी की बखियां उधेड़ रहा है!

प्रसंगवश, आम आदमी पार्टी को प्रदेश में सत्ता के शिखर पर लाने में ‘पंजाबी ट्रिब्यून’ की अहम भूमिका रही है। किसान आंदोलन पर उसकी जमीनी रिपोर्टिंग, आलेखों और इसके संपादक के व्यवस्था विरोधी बेहद तीखे तेवरों ने भी आप के पक्ष में माहौल बनाया। ‘पंजाबी ट्रिब्यून’ के संपादक ने सत्ता बदलाव के बाद भी अपनी बेबाक लेखनी को लगातार तार्किक एवं निष्पक्ष रूप से धारदार बनाए रखा। जालंधर की एक कॉलोनी लतीफपुरा पर बेहद बेरहमी से बुलडोजर चलाकर लोगों को बेघर किया गया तो ‘पंजाबी ट्रिब्यून’ के संपादक स्वराजबीर ने संपादकीय पृष्ठ पर लीड आर्टिकल लिखा। यह सरकार को बेतहाशा शर्मिंदा करने वाला था। सरकार किस कदर बौखलाई, यह इसी से जाहिर है कि ठीक अगले दिन से ‘पंजाबी ट्रिब्यून’ के सरकारी विज्ञापन स्थगित कर दिए गए। इस तथ्य को हाशिए पर डाल दिया गया कि अतीत में किसी भी सरकार ने ‘ट्रिब्यून’ समूह के साथ ऐसा सलूक नहीं किया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

प्रसंगवश, प्रगतिशील लेखक संघ ने ‘पंजाबी ट्रिब्यून’ और ‘अजीत’ के खिलाफ सरकार की कार्रवाई की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि यह अवाम की आवाज दबाने के लिए शर्मनाक सरकारी ‘साजिश’ है। इसे पंजाब का बुद्धिजीवी तबका और आम लोग हरगिज़ बर्दाश्त नहीं करेंगे। प्रगतिशील लेखक संघ का कहना है कि जरूरत पड़ने पर प्रेस की आवाज दबाने की सरकारी कोशिशों के खिलाफ राष्ट्रव्यापी अभियान छेड़ा जाएगा। संघर्ष के साथ अन्य जत्थेबंदियों को भी जोड़ा जाएगा। यहां बता दें कि ‘पंजाबी ट्रिब्यून’ पंजाब के बुद्धिजीवी तबके, लेखकों, कर्मचारी संगठनों और वैचारिक मंचों का प्रिय अखबार है। राष्ट्रीय प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव सुखदेव सिंह सिरसा ने इस पत्रकार से कहा कि प्रेस की आजादी का हनन बेहद गंभीर मामला और सरासर अलोकतांत्रिक है। इसके खिलाफ सड़कों पर आकर संघर्ष किया जाएगा। आम आदमी पार्टी की सरकार इस मामले में भाजपा जैसा रुख अपना रही है।

उधर, भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक पंजाब के दोनों प्रमुख मीडिया संस्थानों के विज्ञापन रोकने के प्रकरण पर खुद आम आदमी पार्टी के कई विधायक भीतर ही भीतर अपनी सरकार से बेहद खफा हैं। बताया तो यहां तक जा रहा है कि लोक संपर्क मंत्री अमन अरोड़ा भी इस सब के खिलाफ हैं लेकिन बेबस हैं। इसलिए भी कि पंजाब की बाबत कोई भी अंतिम फैसला आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल और उनके खासमखास राघव चड्ढा करते हैं। अब तो ‘चंदे के नाम पर खेल’ के किस्से भी सियासी गलियारों में फैल रहे हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बताने वाले बताते हैं कि मुख्यमंत्री भगवंत मान तो अपनी पसंद के मंत्री भी अपने मंत्रिमंडल में नहीं ले पाए। इसलिए कि सारा कुछ दिल्ली से तय होना है। विवादों से घिरे एक मंत्री को मुख्यमंत्री इसलिए बर्दाश्त कर रहे हैं कि वह केजरीवाल दरबार के एक दरबारी का खास है। भगवंत मान अमृतसर से विधायक और पूर्व आईपीएस/पंजाब पुलिस के बहुचर्चित आईजी रहे कुंवर विजय प्रताप सिंह और मानसा जिले के बुढलाडा क्षेत्र से दूसरी बार एमएलए बने (बुद्धिजीवियों में खासे लोकप्रिय) प्रिंसिपल बुधराम को मंत्रिमंडल में अहम मंत्रालयों के साथ शामिल करना चाहते थे लेकिन केजरीवाल एंड पार्टी की ओर से हरी झंडी नहीं मिली। राज्य मंत्रिमंडल का विस्तार अभी भी लंबित है इसी वजह से! प्रेस की जुबान खामोश करने की जो कवायद पंजाब में हो रही है, उसके असली कर्ता-धर्ता भी ‘दिल्ली वाले’ बताए जा रहे हैं। राजनीति में आने से पहले भगवंत मान कॉमेडियन ही नहीं अच्छे कलाकार भी थे। अच्छे से अच्छे कलाकार को निर्देशक की जरूरत होती ही है और उन्हें भी है तो अचरज कैसा?

बहरहाल, फिलहाल देखना यह है कि ‘अजीत’ और ‘पंजाबी ट्रिब्यून’ के बाद निशाने पर कौन आता है! क्या आपको आश्चर्य नहीं कि पंजाब प्रेस के साथ जो सुलूक सरकार कर या करवा रही है, उसकी चर्चा कहीं नहीं हो रही? सिर्फ चंद पत्रकार लिख-बोल रहे हैं। ऐसा क्यों है? खुद समझिए…!

Advertisement. Scroll to continue reading.

पंजाब से वरिष्ठ पत्रकार अमरीक की विशेष रिपोर्ट.

पार्ट वन भी पढ़ें-

Advertisement. Scroll to continue reading.

पंजाब में मीडिया को ‘पालतू’ बनाने की कवायद में ‘आप’ सरकार!

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement