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राकेश गुप्ता और मनोज बिसारिया ने ‘वणिक टाइम्स’ शुरू किया

जब कैशलेस सोसाइटी और बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल की संस्कृति की आगोश में देश समा रहा है, ऐसे समय में गली-मुहल्ला और महानगरों, शहरों और कस्बों के बाजारों के छोटे और मझोले व्यवसायियों की दिन-प्रतिदिन की समस्याएं विकराल होती जा रही है. एक प्रकार पारंपरिक व्यापार सिमटते जा रहे हैं औऱ बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठान संगठित रूप से संरचना का निर्माण कर अंसंगठित को निगल रहा है. ऐसे में इनकी आवाज बनने की कोशिश के तौर पर सामने आई है मासिक पत्रिका ‘वणिक टाइम्स’.

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जब कैशलेस सोसाइटी और बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल की संस्कृति की आगोश में देश समा रहा है, ऐसे समय में गली-मुहल्ला और महानगरों, शहरों और कस्बों के बाजारों के छोटे और मझोले व्यवसायियों की दिन-प्रतिदिन की समस्याएं विकराल होती जा रही है. एक प्रकार पारंपरिक व्यापार सिमटते जा रहे हैं औऱ बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठान संगठित रूप से संरचना का निर्माण कर अंसंगठित को निगल रहा है. ऐसे में इनकी आवाज बनने की कोशिश के तौर पर सामने आई है मासिक पत्रिका ‘वणिक टाइम्स’.

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वणिक टाइम्स छोटे और मझोले व्यापारियों की समस्याएं उठाने वाली देश की पहली प्रायोगिक पत्रिका है, जिसे पत्रकारों की एक टोली ने आरंभ किया है. इसका दफ्तर नोएडा और दिल्ली में है. पत्रिका के प्रबंध संपादक राकेश गुप्ता है एवं संपादक वरिष्ठ पत्रकार मनोज बिसारिया हैं, जब कि समाचार संपादन की जिम्मेदारी वरिष्ठ पत्रकार श्रीराजेश तथा फीचर संपादन का कार्य वरिष्ठ पत्रकार योगराज शर्मा निभा रहे हैं. पत्रिका प्रिंट संस्करण के साथ ही ऑनलाइन संस्करण के रूप में भी है, ताकि इसकी पहुंच सामान्यजन तक सुनिश्चित हो सके. दिल्ली से प्रकाशित होने वाली यह पत्रिका सुदूरवर्ती कस्बों के व्यापारियों के अधिकारों के प्रति सजग-सचेत है.

देखा गया है कि अधिकांश बिजनेस पत्र-पत्रिकाएं अंततः कारपोरेट को ही व्यापारिक – व्यावसायिक प्रतिष्ठान-प्रतिष्ठाता मान कर अर्थव्यवस्था का खाका खींचती है. लेकिन असंगठित क्षेत्र के करोड़ों व्यावसायी देश की सकल घरेलू उत्पाद को सबल बनाने से लेकर आयकर विभाग के कोष को संपन्न बनाने में महती भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं. हाल ही में सरकार द्वारा जीएसटी लागू किए जाने के बाद यह कम ही सुनने में आया कि किसी बड़े व्यापारिक घराने को इससे कोई असुविधा हो रही है लेकिन छोटे और मझोले व्यापारी इस असुविधा से कैसे दो-चार हो रहे हैं. इसकी खोज खबर लेने वाला कोई नहीं. इसी तरह की अन्य समस्याओं, उनके अधिकारों को फलक पर लाने की कोशिश के तौर पर वणिक टाइम्स का अभ्युदय हुआ है. पत्रिका का दूसरा अंक बाजार में आया है. प्रेस रिलीज

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