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सियासत

‘अर्थशास्त्री पीएम’ और ‘हार्डवर्क’ करने वाले पीएम का अंतर…

Peri Maheshwer : ‘अर्थशास्त्री पीएम’ और ‘हार्डवर्क’ करने वाले पीएम का अंतर… प्रधानमंत्री ने कहा है कि ‘अर्थशास्त्री पीएम’ ने अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया। यहाँ हमारे वर्तमान पीएम के तहत तिरुपुर की कहानी पेश है जो एक समय फलता-फूलता औद्योगिक केंद्र था।

1. तमिलनाडु के हैंडलूम और कपड़ा मंत्री ओएस मनियन ने तमिलनाडु विधानसभा में कहा था, “तिरुपुर में लगभग 6500 निटवीयर और सिले-सिलाए परिधानों की कंपनियां हैं जो साल में 50,000 करोड़ रुपए का निर्यात करती हैं। यहां छह लाख श्रमिकों को रोजगार मिला हुआ है। लेकिन जीएसटी, नोटबंदी और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के कारण, कपड़ा निर्यात का कारोबार कम होकर पिछले साल 34,000 करोड़ रुपए तक गिर गया।”

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2. टैक्स : भारत ने निर्यात पर 11.4 टैक्स लगाया जबकि अन्य प्रमुख वस्त्र निर्यातक देशों – श्रीलंका और बांग्लादेश में सीमा शुल्क नहीं लगता है। इसलिए ये 10 % सस्ते हैं।

3. ड्यूटी ड्रॉबैक: इतना ही नहीं, ड्यूटी ड्रॉबैक की दर भी 7.5 से कम करके 2.5 प्रतिशत तक कर दी गई है।

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4. जीएसटी रिटर्न (धन वापसी): यही नहीं, जीएसटी के तहत धन वापसी लंबित रही और इस समय तक अप्रैल 2017 के ही क्लियर हुए हैं।

5. इनपुट लागत बढ़ गई। सूती धागे की कीमत 20 रुपये किलो तक बढ गई है। इस महीने यह 240 रुपये प्रति किलो है।

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6. 2017-18 की दूसरी छमाही में निर्यात 21% कम हुआ है को अप्रैल / मई 2018 में इसमें 34% की और कमी आई है।

7. नौकरी का नुकसान: काम कम होने से एक निर्यातक के यहां काम करने वाले दर्जी कबीर अहमद की आय 15,000 रुपए से 7,000 रुपए प्रति माह तक कम हुई है। उसने कहा, “पहले, हमें पांच से छह दिन काम मिलता था। अब, हमें सप्ताह भर में सिर्फ दो दिन के लिए काम मिलता है।”

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8. एक आम निर्यातक जिसका कारोबार 10 करोड़ रुपए का हो उसका कम से कम 50 लाख रुपया सरकार के पास फंसा होता है। एफआईईओ का दावा है कि कम से एफआईईओ का दावा है कि जीएसटी के कारण कम से कम 20,000 करोड़ रुपए अभी निर्यातको को वापस किए जाने हैं।

9. इस तकलीफ को बैंक और बढ़ा दे रहे हैं। बैंकों ने जीएसटी के लंबित रीफंड के बदले भी कर्ज देना बंद रखा है। उन्हें हमारी सरकार पर भी भरोसा नहीं है कि जो बकाया है वह आ जाएगा।

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10. प्रीमियर एक्सपोर्ट कॉरपोरेशन के सीईओ आर सेंथिल कुमार ने कहा, “जीएसटी और नोटबंदी के बाद, हमारी हालत बेहद खराब हो गई है और हम आईसीयू में पहुंच गए हैं।”

विकास उन्मुख हमारे प्रधानमंत्री की अंतिम उपलब्धि: हमारा गैर तेल, गैर स्वर्ण घाटा, जो 2013-14 में 0.4 अरब अमेरिकी डॉलर था, अब 2017-18. में 53.2 अरब अमेरिकी डॉलर है। ऐसे में भारत अब प्रतिस्पर्धी नहीं रहा। हम अपने आप को कम प्रतिस्पर्धी बना सके जिससे निर्यात कम हुआ है, उद्योग बीमार हुए हैं और रोजगार की संख्या कम हुई है।

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हमारे ताबूत की आखिरी कील: यूपीएस सरकार में एक समृद्ध और फलते-फूलते उद्योग के लिए जो अच्छा कर्ज था वह अब बीमार जोखिम भरा है और जल्द ही एनपीए हो जाएगा। इसका दोष यूपीए पर मढ़ा जाएगा और यह एनडीए के लिए चुनावी लाभ होगा। हम जल्द ही इन बैंकों को नए सिरे से पूंजी देने के लिए भुगतान करेंगे।

बधाई हो सर। यह सब आप ही कर सकते थे।

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मीडिया उद्यमी Peri Maheshwer की यह एफबी पोस्ट मूलत: अंग्रेजी में है जिसका हिंदी अनुवाद वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह ने किया है.

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