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सुख-दुख

यशवंत पर हमले की कहानी, उन्हीं की जुबानी ( देखें सुनें संबंधित आडियो, वीडियो और तस्वीरें )

बिना वाइपर की बस… यह तस्वीर तबकी है जब बारिश थोड़ी कम हो गई थी.

दिल्ली को अलविदा कहने के बाद आजकल भ्रमण पर ज्यादा रहता हूं. इसी कड़ी में बनारस गया. वहां से रोडवेज बस के जरिए गाजीपुर जा रहा था. मेरे चाचाजी को हार्ट अटैक हुआ था, जिसके बाद उनकी ओपन हार्ट सर्जरी होनी है. उन्हीं को देखने के लिए गाजीपुर जा रहा था. शिवगंगा ट्रेन से बनारस उतरा और रोडवेज की बस पकड़ कर गाजीपुर जाने लगा. मौसम भीगा भीगा था. बारिश लगातार हो रही थी. बस चलने लगी. बिना वाइपर की बस धीमी गति से रेंगते हुए बढ़ रही थी. ड्राइवर कुछ ज्यादा ही सजग था क्योंकि लगातार बारिश से बस का शीशा पानीमय हुआ जा रहा था और उसे शीशे के पार सड़क पर देखने के लिए कुछ ज्यादा ही मशक्कत करनी पड़ रही थी.

गाजीपुर कोतवाली में घटनाक्रम बताने और तहरीर देने के दौरान की कुछ तस्वीरें

मैं एक जनहित के काम से गया. भ्रष्ट सिस्टम का शिकार हुआ. तो बदले की कार्रवाई में मैं वही नहीं कर सकता जो वो लोग कर गुजरे थे. मुझे अपने तरीके से लडाई लड़नी है अन्यथा मेरे में और किसी बाहुबली में कोई फर्क नहीं. मैंने मित्रों को इकट्ठा किया और कोतवाली पहुंच गया जिसके दायरे में रोडवेज बस अड्डा आता है. वहां तहरीर दी. जैसा कि होता है, अफसर के खिलाफ तहरीर लेने तक में पुलिस वालों को कष्ट हो रहा था. लखनऊ के कुछ मित्रों के सौजन्य से अगले दिन शाम को एफआईआर दर्ज हो पाई क्योंकि कोतवाल के कथनानुसार गेंद डीएम साहब के पाले में डाल दी गई थी और डीएम साहब ने एफआईआर करने से रोक रखा था. ऐसे में डीएम साहब को यह किसी से समझवाना था कि इस मामले में एफआईआर जरूरी है. खैर, लखनऊ के साथियों की मदद से चौबीस घंटे से भी ज्यादा समय बाद एफआईआर हो पाई. हां, तहरीर देने के तुरंत बाद मैंने अपना मेडिकल करा लिया ताकि चोटों के निशान भी आ जाएं.

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अपना स्वभाव है कि किसी चीज को दिल पर लेकर नहीं बैठता. आज जो हुआ, उसे कल भूल चुका होता हूं और आगे की तरफ अग्रसर होता हूं. लेकिन इस मामले में गाजीपुर के मेरे मित्र एआरएम को कोई रियायत देने के मूड में नहीं हैं. कई वकीलों के दल ने इस मामले को टेकअप कर लिया है और वे इसे कंज्यूमर फोरम भी ले जा रहे हैं. अब वो लोग जो करें, अपना काम था सिस्टम में सामने जो खराब दिख रहा था, उसके लिए लड़ना. और, जब लड़ा तो पिटा. इसलिए इसमें कोई मलाल या शर्म या दुख की बात नहीं है. यह गर्व की बात है. समाज, आम जन, देश हित के लिहाज से देखें तो यह स्वतंत्रता सेनानी जैसी बात है. क्योंकि आजादी की जंग कभी स्थगित नहीं हुआ करती. बस, उसके तौर तरीके बदल जाते हैं. बस उसके टारगेट बदल जाते हैं. बस उसका अंदाज बदल जाता है. इस देश में जब तक आखिरी एक भी शख्स ऐसा बचा है जो इस धरती पर होने के चलते अपना हक हिस्सा अधिकार खुशहाली पाने से महरूम है, वंचित है तो समझिए आपको आजादी की लड़ाई लड़नी ही है, उस एक मात्र बचे पीड़ित आखिरी शख्स के लिए ही सही.

इलाहाबाद विश्वविद्यालय और बीएचयू के छात्र राजनीति के दिनों से ही दर्जनों बार पिट-पिटाए होंगे. कई बार पीटा भी होगा, रणनीतिक फैसले पर अमल करने की प्रक्रिया के तहत. इसलिए अपन के भीतर पिट जाने को लेकर कोई नकारात्मक भाव नहीं आता क्योंकि इस भ्रष्ट सिस्टम में वैसे ही आम जनता बुरी तरह से हर ओर से पिट रही है. अगर आम जन की पत्रकारिता करेंगे और भ्रष्ट सिस्टम के सामने सीना तान कर खड़े होंगे तो आप पिटेंगे ही, जेल भी जाएंगे, प्रताड़ित भी किए जाएंगे, धमकाए भी जाएंगे, गोली भी मारी जा सकती है. इसलिए इन सारे अंजाम के बारे में जानते हुए भी अपन लोग इसकी परवाह नहीं करते क्योंकि जब हम लोग मीडिया में आए तो ये मान कर आए थे कि सच कहेंगे तो मारे जाएंगे, इसलिए अपन लोगों का पिटना तो बाई डिफाल्ड अपने पेशे का बुनियादी नियम है. एक सच्चे पत्रकार, सच्चे नेता, सच्चे समाजसेवक, सच्चे मनुष्य के बतौर अगर आप सिस्टम की मुखालफत करते हुए प्रताड़ित नहीं होते, पीटे नहीं जाते, जेल नहीं भेज जाते, फंसाए नहीं जाते तो सही मानिए आपका काम ठीक नहीं चल रहा है.

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0 Comments

  1. आनंद

    November 4, 2015 at 8:04 am

    आप भाग्यशाली है, आपके मित्र आपकी ताकत है। वर्ना हमने तो काल्पनिक यशवंत को पर्दे पर अकेले ही जूझते-झेलते देखा था।

  2. बालकिशन शर्मा

    November 4, 2015 at 8:05 am

    आपके हौसले को सलाम। वो सुबह कभी तो आएगी।

  3. Praveen Tree

    November 4, 2015 at 8:06 am

    अन्तत: विजय तो सत्य की ही होगी। सत्य की रक्षा स्वयं भगवान करेंगे। आप अपने पथ पर दृढ़ता से बढ़ते रहिए।

  4. इमरोज़ खान

    November 4, 2015 at 7:35 am

    क्या बात है आपका लेख पढ़ के नयी ऊर्जा आई

  5. maheshwari mishra

    November 4, 2015 at 8:00 am

    यशवंत जी के साथ जो हुआ वह दिल दहला देने वाला है। मुझे लगता है कि हम आज भी गुलाम हैं। अंग्रेज गए लेकिन पुलिस और कर्मचारी छोड़ गए। जिनकी तानाशाही अंग्रेजों जैसी ही हैं और शिकायत करने पर भी कुछ नहीं होता। हमलावर को जल्छ से जल्द गिरफ्तार किया जाए।

  6. Om Prakash Nagmani

    November 4, 2015 at 8:07 am

    सत्य की रक्षा स्वयं भगवान करेंगे। आप अपने पथ पर दृढ़ता से बढ़ते रहिए।

  7. रामचंदर लठवाल

    November 4, 2015 at 8:37 am

    धिक्कार है ऐसे सड़े हुए सिस्टम पर हम सब की दुआएं आपके हमेशा साथ हैं इतिहास गवाह है जो भी बदलाव के रहनुमा हुए हैं उन सभी को इन तरह के हालात से जूझना ही पड़ा है …..आपकी सकारात्मकता को सलाम

  8. रामचंदर लठवाल

    November 4, 2015 at 8:45 am

    वी आल आर गाइडेड बाइ सम वन. वी आल आर प्री प्रोग्राम्ड रोबोट्स, गाइडेड बाय समवन इल्स. और हम लोग करते वही हैं जो प्रोग्रामिंग तय की हुई होती है. जैसे किसी रोबोट को यह खुद नहीं पता होता है कि उसकी प्रोग्रामिंग कहां से लेकर कहां तक है, वह बस प्रोग्राम के गाइडेंस को फालो करता रहता है, और इसी प्रक्रिया में नष्ट हो जाता है एक रोज, उसी तरह हम लोगों को भी यह पता ही नहीं लगता कि हम कर क्या रहे हैं और किसलिए कर रहे हैं, लेकिन चूंकि अपन सब के भीतर ढेर सारे इंसटिंक्ट्स की प्रोग्रामिंग हो चुकी है इसलिए सेक्स से लेकर भूख तक, सुख से लेकर सुरक्षा तक के लिए भसड़-धसड़-रगड़ मचाए रहते हैं. सो, कभी कभी लगता है कि कीजिए हाय हाय क्यों, रोइये ज़ार ज़ार क्या… ये जो आपने लिखा है यशवंत जी इसके बाद शब्दों की दरकार ही नहीं हैं निसंधेह यह उस प्रयोजन का आगाज़ है जो अनदेखा है अनजाना है ….भगवान आपको हर तरह की शक्ति और क्षमता से नवाजे …….

  9. jagdish samandar

    November 4, 2015 at 9:40 am

    बहुत अच्छा हुआ आपके साथ यह घटना हुई । अब कम से कम उस मूर्ख एआरएम को करारा जवाब तो मिलेगा । सरकारी नौकरी मिलने के बाद ये वर्णशंकर आम आदमी को तो कीड़ा मकोड़ा समझते हैं । कोई आम व्यक्ति अगर इनसे जरा सा सवाल कर ले या जोर से पूछ ले तो सालों की नाक कट जाती है । इस लिये उग्र होकर अपना रोब झाड़ते हैं कि जेसे सबके आका यही हैं । किसी आम व्यक्ति के साथ अगर यह घटना होती तो उस बेचारे की सारी जनहित की मंशा कुंठा में बदल जाती । ना वो बदला ले पाता और ना ही उसकी घुटन शांत होती । अब छोड़ना नहीं गधे को जब तक उसकी अकड़ निकलकर आम आदमी जैसी बोली ना बोलने लगे । साला एक तो सरकार से परेशान ये उसके भी बाप हो रहे हैं ।
    बहुत छोटी घटनाऐं भी कई बार जीवन की महत्वपूर्ण घटना बन जाती है । आपके साथ घटित हुये हादसे को देखकर यह आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है । समाज में मूर्खों की तादाद इतनी बढ़ रही है कि कोई बात सुनने को तैयार नहीं होता अपनी गलती मानना तो दूर की बात है । टेंशन नौट, भगवान आपके साथ है ।

  10. संजय कुमार सिंह

    November 4, 2015 at 9:44 am

    जनहित के लिए मार खाना पुरस्कार जैसा है बशर्ते मारपीट करने वाले को औकात बता दी जाए। एक अधिकारी औकात में आता है तो उसके चमचों के साथ बहुत सारे अधिकारी और उनके चमचे भी सुधर जाएंगे। इसलिए मामले को छोड़ना नहीं है। ठीक से फॉलो करके, जो-जो धाराएं लग और साबित हो सकें – के तहत कार्रवाई कराई जानी चाहिए। भ्रष्ट सिस्टम में जिसे भी अधिकार मिलता है वह सिस्टम में शामिल हो जाता है। जनप्रतिनिधि अगर अपना काम कर रहे होते तो ऐसा क्यों होता। आम जनता यह सब कर नहीं पाती है, करना नहीं चाहती है। इसलिए अगर हम कुछ कर सकते हैं तो जरूर करना चाहिए।

  11. ashok anurag

    November 4, 2015 at 10:14 am

    उड़ान वालो उड़ानों पे वक़्त भारी है
    परों की अब के नहीं हौसलों की बारी है
    मैं क़तरा हो के तूफानों से जंग लड़ता हूँ
    मुझे बचाना समंदर की ज़िम्मेदारी है
    कोई बताये ये उसके ग़ुरूर-ए-बेजा को
    वो जंग हमने लड़ी ही नहीं जो हारी है
    दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत
    ये एक चराग़ कई आँधियों पे भारी है
    – वसीम बरेलवी

  12. Sanjeev Singh thakur

    November 4, 2015 at 1:48 pm

    Choti si galat baat ke khilaaf ladne k liye bhi kitni mehnat aur dridhta chahiye yeh uska bahut acha udaharan h. Choti ladai ladte ladte BADI Ladai ki tayari Karen, janta aapka saath degi. JAI HIND, VandevMatram.

  13. प्रवीण चन्द्र राशि

    November 4, 2015 at 2:35 pm

    लिंक पूरा पढ़ने के बाद मन कौंध गया। लेकिन आपके द्वारा जनहितार्थ किए इस प्रयास ने उत्तर प्रदेश के घमंडी नाजायज़ सिस्टम के मुंह पर करारा तमाचा जड़ा है। एक व्यक्ति सरकारी पद पाकर सिर्फ हमारा शोषण करने की कोशिश में क्यों लग जाता है, क्योंकि इनकी औकात को सांतवे आसमान पर हर ही चढ़ा देते हैं। आप जैसा कार्य अगर बाकि सभी करने लगें तो ये सरकारी बाबू टाईप हरामखोर लोग हरामखोरी की लत से मुक्त हो जायेंगे। इस सतही पत्रकारिता को मेरा सलाम व समर्थन।

  14. प्रवीण चन्द्र राशि

    November 4, 2015 at 2:37 pm

    लिंक पूरा पढ़ने के बाद मन कौंध गया। लेकिन आपके द्वारा जनहितार्थ किए इस प्रयास ने उत्तर प्रदेश के घमंडी नाजायज़ सिस्टम के मुंह पर करारा तमाचा जड़ा है। एक व्यक्ति सरकारी पद पाकर सिर्फ हमारा शोषण करने की कोशिश में क्यों लग जाता है, क्योंकि इनकी औकात को सांतवे आसमान पर हर ही चढ़ा देते हैं। आप जैसा कार्य अगर बाकि सभी करने लगें तो ये सरकारी बाबू टाईप हरामखोर लोग हरामखोरी की लत से मुक्त हो जायेंगे। सतही पत्रकारिता को सलाम।

  15. Purushottam Asnora

    November 5, 2015 at 8:18 pm

    Dukh ki bat hai ki desh, pradesh mai kai kursiyou par gunde hi gunde baithe hai. Yashwant ji k sath jo huwa sharmnak hai our kare shabdou mai nida karte hain, up sarkar se mang hai ki ARm k khilaf satht karyvahi ho.

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