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उत्तराखंड

यशवंत ने यशवंत को दिया उद्यमिता का ज्ञान!

यशवंत सिंह-

ये भी यशवंत हैं। यशवंत सिंह भंडारी। उत्तराखण्ड के चम्पावत के निवासी। ज़िला मुख्यालय से चार सौ मीटर की दूरी पर इनका गाँव हैं। गाँव में इनके खेत हैं। गैया है। ख़ुद की सब्ज़ियाँ हैं। घर और दुआर अलग अलग हैं। गाँव में इनके इस वक्त इतनी ठण्ड है कि लोग स्वेटर पहनते हैं।

ये ख़ुद गरम और ज़हरीली दिल्ली में डेढ़-दो दशक से पड़े हुए हैं। एक प्राइवेट कंपनी में एकाउंटेंसी का काम देखते हैं। चिंतक स्वभाव के हैं इसलिए कभी कभी ख़ुद की गति और मंज़िल को लेकर सोचते सोचते डिप्रेशन टाइप फील करने लगते हैं।

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मैंने दो लाइन का कल इन्हें ज्ञान दिया-

  1. फ़ौरन इस्तीफ़ा दीजिए। गाँव के दुआर में दो तीन कमरे विथ अटैच टॉयलेट बाथरूम बनवाइये। आपको फ्री में प्रमोट करने का काम मेरा। दिल्ली एनसीआर से इतने लोग जाएँगे कि आपको नोट रखने का जगह नहीं मिलेगा।
  2. उनतीस साल के हो गये आप। अब बियाह कर लीजिए। बियाह करने से दो काम होगा। या तो डिप्रेशन बढ़ जाएगा या ख़त्म हो जाएगा। ख़त्म हो जाएगा तो कोई बात नहीं। बढ़ जाएगा तो दो बात होगी। या तो आप संन्यासी बन जाएँगे (जो कि बनने की इच्छा है आपकी) या आप चिंतक से रिड्यूस होकर प्योर गृहस्थ बन जाएँगे।

ख़ुद मस्त रहिए, दूसरों को त्रस्त रखिए!
त्रस्त रखने वाला ऑप्शनल है।
मस्त रहने वाला कंपलसरी है।

भड़ास एडिटर यशवंत की एफबी वॉल से..

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