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सुख-दुख

यशवंत पर जंगली सांपों के काटने का भला क्या असर होगा!

भड़ास के ‘मुखिया’ यशवंत सिंह को गांव में काले नाग ने डस लिया है। खबर लगने पर भड़ासियों के बदन में गरमी दौड़ गयी। जितने मुंह उतनी बातें। कुछ का मानना है, सांप अगर जहरीला हुआ, और इलाज में देरी हुई होगी, तो खतरा मरीज (यशवंत सिंह) की जान को हो जायेगा। कुछ इस सोच में जुटे हैं कि, कहां काला सांप और कहां भला इंसानी शख्शियत वाले यशवंत सिंह। भला दोनो का भी कोई जोड़ हो सकता है!

भड़ास के ‘मुखिया’ यशवंत सिंह को गांव में काले नाग ने डस लिया है। खबर लगने पर भड़ासियों के बदन में गरमी दौड़ गयी। जितने मुंह उतनी बातें। कुछ का मानना है, सांप अगर जहरीला हुआ, और इलाज में देरी हुई होगी, तो खतरा मरीज (यशवंत सिंह) की जान को हो जायेगा। कुछ इस सोच में जुटे हैं कि, कहां काला सांप और कहां भला इंसानी शख्शियत वाले यशवंत सिंह। भला दोनो का भी कोई जोड़ हो सकता है!

कुल मिलाकर एक यशवंत, सौ मुंह..हजार बतौलेबाज….लाखों बकवासें। मैं इस चिंता में हूं, कि बिचारा सांप कहां होगा? किस हाल में होगा? आपाधापी में शिकार (यशवंत सिंह) को अधकचरा डसने के मलाल की ‘भड़ास’ न मालूम बिचारा कैसे निकाल रहा होगा। यशवंत को डसा है, तो कमीने को आज वक्त ने पानी तक को तरसा दिया होगा। कम-अक्ल ने डसा भी तो उस इंसान को, जिसकी नस-नस में सौ-सौ नागों (मीडिया के काले सांप-सपोलों) का विष भरा है। जिसकी जुबान और हलक तक में काला-नीला विष भरा पड़ा है। जिसके कानों से सोते-जागते बस मीडियाई सांपों के विष का धुंआ ही बाहर निकलता है।

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मुझे चिंता है तो मीडिया के उन सांप-सपोलों की जो देखने में बड़े खुबसूरत हैं, मगर आदत से नाग से भी जहरीले। जो इंसान के गले में पड़कर पहले मस्ती में झूमते हैं, जैसे ही खूबसूरत समझकर इंसान उनसे खेलना, उन्हें पुचकारना (इज्जत देना) शुरु करता है, वे डस लेते हैं। यशवंत तो मीडिया के इन सांपों में से सबसे ज्यादा जहरीला है। इन तमाम सांप-सपोलों का जहर यशवंत की नस-नस में दौड़ रहा है। यशवंत बोले तो जहर उगले। हंसे तो जहर उगले। रोये तो भी जहर उगले। नशे में हो तो जहर उगले। नींद में हो तो भी जहर उगले। अब सोचिये कौन ज्यादा जहरीला साबित होगा…यशवंत सिंह या फिर वो सांप जिसने यशवंत को अनजाने में अंधेरे में गफलत मेें ‘डसने’ की गलती कर दी।

जो भी हो…बे-वजह की बतौलेबाजी नहीं। सिर्फ इंतजार करो। कुछ समय में यशवंत फिर फन फनफनाये हुए, सपोलों को खाने के लिए तैयार होगा। जिस सांप ने यशवंत को डसा है, वह यशवंत से ही छिपने के वास्ते ‘बिल’ का रास्ता पूछ रहा होगा….और यशवंत के जहर में डूबा यशवंत के ही गुणगान गा रहा होगा….यशवंत के विष की तारीफ में नाच रहा होगा…यशवंत से पूछ रहा होगा, गुरु यह तो बताओ कि तुम्हारा जहर मुझसे भारी कैसे? तब यशवंत समझायेगें हम तो विषैले नहीं थे, सांपो का जहर (मीडिया मठाधीशों का) गटकते-गटकते हम तो (यशवंत) काले-नागों से भी ज्यादा विषैले हो गये, अब हम पर जंगली सांपों के काटने का भला क्या असर होगा?

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लेखक संजीव चौहान वरिष्ठ खोजी पत्रकार हैं. ‘आज तक’ समेत कई न्यूज चैनलों में वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं. संजीव से संपर्क [email protected] या 09811118895 के जरिए किया जा सकता है.


पूरे प्रकरण को जानने के लिए इस शीर्षक पर क्लिक कर सकते हैं….

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सांप की मति मारी गयी कि और कोई नहीं मिला, भड़ास को डंस लिया

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