देश के 68वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ऐतिहासिक लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र के नाम अपने पहले संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि वह देश को संसद में बहुमत के आधार पर नहीं बल्कि सहमति के आधार पर चलाना चाहते हैं। उन्होंने विपक्ष को साथ लेकर चलने के आह्वान के साथ ही जातिगत एवं सांप्रदायिक हिंसा पर रोक की हिमायत की।
अपने 65 मिनट के धाराप्रवाह हिंदी में दिये संबोधन में मोदी ने गरीबी, भ्रष्टाचार, आर्थिक उन्नति, निवेश, नक्सली हिंसा जैसे अनेक सामाजिक-आर्थिक मुददों पर बोलते हुए खुद को देश के प्रधान सेवक के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने बलात्कार तथा कन्या भ्रूण हत्या की बढ़ती घटनाओं को शर्मनाक बताते हुए घर-परिवार से लेकर समाज और अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं तक में लड़कियों की भूमिका की बात की। मोदी ने सवा सौ करोड़ देशवासियों के अच्छे दिन लाने के लिए जनधन योजना की घोषणा की, जिसमें प्रत्येक गरीब को बैंक खाते की सुविधा देने के साथ ही जीवन बीमा का संरक्षण प्रदान करने की प्रतिबद्धता भी शामिल थी।
प्रधानमंत्री ने सांसदों को अधिक जिम्मेदार बनाने के इरादे से ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ का ऐलान किया, जिसमें प्रत्येक सांसद को हर वर्ष एक गाँव को गोद लेकर उसका विकास करना होगा। उन्होंने सभी सांसदों का आह्वान किया कि वे अगले स्वतंत्रता दिवस तक कम से कम एक गाँव को ‘आदर्श गाँव’ बनायें और अपने पूरे कार्यकाल में पाँच आदर्श गाँव बना कर देश की ग्रामीण स्थिति में सुधार लाने में मदद करें। मोदी ने योजना आयोग को समाप्त करने का भी ऐलान किया।
अब यहाँ बात करते हैं उन मुद्दों की जिनका विगत लोकसभा चुनाव में धुआँधार प्रचार कर नरेन्द्र मोदी और भाजपा सत्ता के सर्वोच्च शिखर तक पहुँचने में कामयाब तो हुए परन्तु चुनाव में अभूतपूर्व कामयाबी हासिल करने के बावजूद मोदी ने इस भाषण में उन मुद्दों को भुला कर उन्हें छुआ तक नहीं। अमीरी व गरीबी के बीच बढ़ते फासले को कम करना, गाँवों का पूर्ण विकास कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना, समान नागरिक संहिता, हिन्दी को सरकारी कामकाज की भाषा बनाना, महिलाओं के प्रति बढ़ रही हिंसा और महिला सुरक्षा, विदेशों में जमा काले धन को वापस लाना जैसे अनेक विषय हैं जिन पर नरेन्द्र मोदी सरकार की क्या रणनीति होगी वह सुनने को पूरा देश बेताब था। सांप्रदायिक दंगों को रोकने हेतु सरकार कौन से कारगर कदम उठायेगी, लघु तथा मध्यम वर्ग के उद्योगों को पुनर्जीवित करने के लिए क्या किया जायेगा, देश के 70 फीसदी गरीबों की उन्नति के लिए क्या काम होगा, ऐसे ढेरों सवालों पर वे क्यों मौन रहे, यह किसी की समझ में नहीं आ रहा।
सवाल तो बहुत सारे हैं परन्तु अधिक जरूरी और तात्कालिक प्रश्नों में शामिल हैं विदेशों में जमा खरबों के काले धन की भारत वापसी, देश को कॉरपोरेट गुलामी से बचाना, गरीबों की स्थिति में सुधार, देश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर नियंत्रण, युवाओं को रोजगार देना, सुरसा के मुँह की तरह बढ़ती महंगाई पर लगाम लगाना, रसातल को जाती देश की कृषि और आत्महत्या को विवश किसानों को राहत आदि, इत्यादि। मगर अफसोस, मोदी ने अपने चिर परिचित और बहु-प्रचारित इन मुद्दों पर अपनी तथा अपनी सरकार की भावी योजनाओं पर कोई बात नहीं की। और तो और देश भर में घूम-घूम कर अपनी ‘56 इंच चैड़ी छाती’ की नुमाइश लगाने वाले मोदी ने आतंकी निर्यातक व जब-तब आँखें दिखाते पड़ोसी देश को काबू करने के लिए उनकी सरकार क्या और कैसे कूटनीतिक प्रयास करेगी, इस पर जरा भी इशारा तक नहीं किया।
शायद मोदी को अंदाजा नहीं होगा कि उनके इस पहले राष्ट्रीय संबोधन से देशवासियों को कितने गहरे नैराश्य के अंधकार में डुबो दिया है। ऐसा जान पड़ा कि हालिया सम्पन्न लोकसभा चुनाव में मोदी के आकर्षण से सम्मोहित हो गये देश के मतदाताओं ने जिस एकजुटता से उन्हें अभूतपूर्व समर्थन दिया, मोदी ने उस मिथकीय जादू से निर्मित स्वयं की छवि को तोड़ फेंकने की कोशिश की है। पूत के पाँवों की पालने में ही पहचान रखने वालों की मानी जाये तो इमेज बिल्डिंग में निष्णात अमेरिकी पीआर. कंपनी द्वारा गढ़ी गयी एक राष्ट्रनायक की छवि लिये जिस तीव्रगामी घोड़े पर मोदी चुनावों में सवार थे, उसके पाँव अभी से लड़खड़ाने लगे हैं। जबकि मंजिल अभी कोसों दूर है।
कुल जमा 80 दिन पहले प्रधानमंत्री बने मोदी ने इन 80 दिनों के भीतर उम्मीदों के एकदम उलट अपना जो चेहरा देश के सामने प्रगट किया है, उसमें उनके मुहावरे ‘मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सीमम गवर्नेंस’ का मतलब अब समझ में आ रहा है। उन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होते ही जिस तरह सुप्रीम कोर्ट को किनारे रखकर भूमि-अधिग्रहण, श्रम, बैंकिंग, माइनिंग, पर्यावरण आदि से जुड़े कानूनों में मनचाहे फेरबदल किये, उससे उनका असली चेहरा सामने आ गया है। इससे उनकी प्राथमिकताओं, एजेंडा, कार्यशैली और रीति-नीति का पता चल चुका है।
साफ जाहिर है कि चुनावों के दौरान उन पर अडाणी-अंबानी जैसे कॉरपोरेट घरानों के एजेंट के तौर पर काम करने के जो आरोप लगे थे, वे निरर्थक और सिर्फ बदनाम करने के लिए नहीं थे। राष्ट्र के नाम लालकिले की प्राचीर से किये गये उनके इस संबोधन से यह भी स्पष्ट हो गया है कि केसरिया ध्वजवाहक बने कॉरपोरेट संस्कृति के उन्नायक मोदी ने श्रम और संसाधनों के अधिकतम दोहन के पक्ष में खुल्लम खुल्ला देश की जनता के खिलाफ एकाधिकारवादी कॉरपोरेट युद्ध का ऐलान कर दिया है। और सारा देश चुपचाप उसे दम साधे देख-सुन रहा है। इसके साथ ही मोदी को लेकर फैलाया गया अमेरिकी पीआर कंपनी का वह तिलिस्म भी टूट गया है जिसका कुहासा पिछले दिनों देश भर में फैल गया था।
फिर भी, देश के प्रधानमंत्री के तौर पर नरेन्द्र मोदी को बधाई और ढेर सारी शुभकामनायें, इस आशा और विश्वास के साथ कि वे लाल किले की प्राचीर से की गई अपनी घोषणाओं को जल्द से जल्द अमली जामा पहनाने में कामयाब होवें और हमारा यह प्यारा भारत इक्कीसवीं सदी के श्रेष्ठ देश के रूप में संसार भर को प्रकाशित करे।
श्यामसिंह रावत
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