हिमालय बचाओ आंदोलन के तीसरे चरण में जनचेतना अभियान की पदयात्रा गैरसैंण से नेपाल तक होगी। पहले दो चरणों में 28 दिन में 500 किलोमीटर की पदयात्रा हो चुकी है। मलेथा से गैरसैंण तक की यह यात्रा 92 गांवों से होकर गुजरी। हिमालय बचाओ आंदोलन दल के सदस्यों ने ग्रामीणों से सीधे संवाद कर उनकी बेरोजगारी और पलायन जैसे ज्वलंत मुद्दों को सरकार के समक्ष रखा।
हिमालय बचाओ आंदोलन के सदस्य समीर रतूड़ी ने प्रेस वार्ता में कहा कि यात्रा पड़ाव में जो गांव पड़े उनकी स्थिति बेहद खराब है। रोजगार की तलाश में पलायन होने से गांव खाली हो चुके हैं। आजीविका चलाने के लिए परंपरागत खेतीबाड़ी पर निर्भरता है, जिसे बंदर और सुअर बर्बाद कर देते हैं। गांवों में स्कूल और अस्पताल जरूर हैं, लेकिन टीचरों और डाक्टरों का अभाव है। आजादी के छह दशकों बाद भी अधिकतर गांवों तक बिजली, पेयजल की लाइनें और सड़कें नहीं पहुंच सकी हैं।
समार ने बताया कि आन्दोलन के दूसरे चरण की यात्रा के निष्कर्षों और अनुभवों को सरकार के समक्ष रखा जाएगा। ग्रामीणों को खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए, खेती को मनरेगा के साथ जोड़ने पर जोर दिया जाना चाहिए। अपने खेत में हल जोतने पर किसान को निश्चित आय मिलनी चाहिए जो मनरेगा के माध्यम से ही मिल पाएगी। उत्तराखंड में विकास के नाम पर कारखाने की रूप-रेखा स्पष्ट होनी चाहिए। कारखाने के हिसाब से संसाधनों के दोहन बात नहीं होनी चाहिए बल्किन संसाधनों के हिसाब से कारखाने खोलने की बात की जानी चाहिए जिससे स्थानीय लोगों की सहभागीता सुनिश्चित हो सके।
रतूड़ी ने कहा कि हिमालय बचाओ आंदोलन का तीसरा चरण फरवरी 2015 से शुरू होगा।
* तीसरे चरण की पद यात्रा गैरसैण से नेपाल तक जायेगी, जो पंचेश्वर से होते हुए बड़े बाँध का विरोध करेगी। पंचेश्वर बांध बड़े विस्थापन और तबाही का सबब बन सकता है।
* यात्रा के मुख्य उद्देश्यों में जल के संरक्षण पर विचार किया जाएगा और इस पर जन जागरण किया जाएगा।
यात्रा दल के सदस्य ग्रामीणों से संवाद करेंगे। हिमालय बचाओ आंदोलन के सदस्य उमेश तिवारी ने कहा कि पहाड़ में निर्माण कार्यों के मानक तय करने होंगे। उन्होने ग्लोबल वार्मिंग से हो रहे बदलाव को महसूस करने पर बल दिया। इसके लिए सरकारी मशीनरी को चौकस करने की जरूरत है। उन्होने कहा कि चीड़ की जगह बांज के जंगल लगाने को प्रोत्साहन देने की जरूरत है।