एक समय मैं फ़िल्मी हिरोइनों के इंटरव्यू बहुत करता था। उन के बारे में लिखता भी बहुत था । तो हिरोइनों से मिलने को ले कर घर में पत्नी फुदक-फुदक पड़ती थीं । कहतीं कि क्या आप के अखबार में और कोई नहीं है यह काम करने के लिए ? अब देख रहा हूं कि वेद प्रताप वैदिक के हाफिज सईद से मिलने को ले कर उसी तरह चैनल और कांग्रेस के लोग उचक रहे हैं । उन की आपत्तियां भी वैसी ही हैं जैसी मेरी पत्नी की तब हुआ करती थीं । सौतिया डाह की भी एक हद होती है । कांग्रेस अपनी पूरी मूर्खता से इस मामले में अपनी फजीहत करवाने पर पिल पड़ी है । रही बात चैनलों की तो उन के पास कोई मुद्दा नहीं होता , एक आग होती है टी आर पी की जिस में झुलसे बिना उस का गुज़ारा नहीं होता । तो चैनलों को एक विवाद मिल गया है । जब तक दूसरा नहीं मिलता यह चलेगा क्या, दौड़ेगा। पत्रकारीय सौतिया डाह अपनी जगह है । कि हाय, हम क्यों नहीं मिल लिए हाफिज सईद से सो अलग । और जो मिल लिए होते तो आप देखते कि कैसे चीख-चीख कर ब्रेकिंग न्यूज चलाते । कि यह देखिए , वह देखिए । गोया सारे दर्शक गधे और बहरे हैं । लेकिन जैसा कि वैदिक कूद कह रहे हैं इन पत्रकारों की पीड़ा को कि , ‘ हाय हुसेन हम न हुए ! ‘ और तो और वैदिक की हाफ़िज़ सईद की मुलाक़ात को यासीन मालिक की हाफ़िज़ सईद से मुलाक़ात की तुलना की जा रही है । वैदिक का पासपोर्ट ज़ब्त करने और उन की गिरफ्तारी की बात कांग्रेस कर रही है । यह तो और हास्यास्पद है ।
खैर मैं कोई वेद प्रताप वैदिक का प्रवक्ता नहीं हूं तो भी इतना तो जानता ही हूं कि वह क्या हैं और क्या नहीं । निश्चित रूप से वेद प्रताप वैदिक मेरी नज़र में पढ़े-लिखे विद्वान पत्रकारों में शुमार होते हैं । उन की भाषा भी मुझे मोहित करती है । बावजूद इस सब के वेद प्रताप वैदिक पर दाग भी बहुत हैं । लेकिन वह देशद्रोही भी हैं या कि हो सकते हैं यह मानने के लिए मैं हरगिज-हरगिज तैयार नहीं हूं । और कि मैं यह बात भी बहुत जोर से कहना चाहता हूं कि हाफिज सईद जैसे खूंखार आतंकवादी से मिल कर वैदिक जी ने कोई गलती नहीं की है । दुनिया भर के पत्रकार अकसर विवादित, अपराधी या आतंकवादी तत्वों से मिलते रहे हैं , मिलते रहेंगे । इसी देश में अरुंधती राय नक्सल साथियों से मिलती रहती हैं और कि लिखती रहती हैं तो क्या वह देशद्रोही हो जाएंगी ? हरगिज नहीं । देश के तमाम पत्रकारों ने तमाम डाकुओं से, अपराधियों से मुलाक़ात की है समय-समय पर तो क्या वह अपराधी हो गए हैं ? दूसरों की बात छोड़िए मैं अपनी बात कहना चाहता हूं कि मैं ने भी समय-समय पर बहुतेरे अपराधियों से मुलाक़ात की है , इंटरव्यू किए हैं । जंगल में जा कर , बीहड़ों में जा कर मैं ददुआ से भी मिला हूं और कि भारतीय जेलों में कैद तमाम कुख्यात अपराधियों से भी मिला हूं। कुख्यात हत्यारे श्रीप्रकाश शुक्ल जैसों से भी ।
तो क्या मैं अपराधी हो गया ?
कल्पनाथ राय एक समय कांग्रेस राज में ऊर्जा मंत्री थे । कल्पनाथ राय में तमाम ऐब थे । उन्हीं ऐबों के तहत एक बार कल्पनाथ राय फंस गए । ऊर्जा विभाग के एक गेस्ट हाऊस में कुछ आतंकवादी कल्पनाथ के पी ए के कहने से ठहराए गए । कल्पनाथ राय की एक नेपाली महिला मित्र ने उन की सिफारिश की थी । अब मामला थाना पुलिस का तो हुआ ही, लोकसभा में भी पहुंचा । मुझे याद है कि तब भाजपा की सुषमा स्वराज , कांग्रेसी कल्पनाथ राय की पैरवी में खुलेआम खड़ी हो गईं । और साफ कहा कि कल्पनाथ राय सब कुछ हो सकते हैं पर देशद्रोही हरगिज नहीं हो सकते । बात खत्म हो गई थी । जांच में भी कल्पनाथ राय दोषी साबित नहीं हुए ।
फिल्म अभिनेता संजय दत्त अवैध हथियार रखने के जुर्म में जेल काट रहे हैं । दाऊद से उन की बेवकूफी वाली कहिए कि लवंडपने वाली कहिए दोस्ती भी साबित है । तो क्या संजय दत्त देशद्रोही हो गए ? कि सुनील दत्त देशद्रोही थे ?
तो मित्रों वेद प्रताप वैदिक भी देशद्रोही नहीं हैं । किसी भी सूरत में नहीं हैं । न ही उन्हों ने हाफिज सईद से मिल कर कोई अपराध या गलती की है । कुछ मुस्लिम पत्रकार तो यहां तक कहने लगे हैं कि अगर वैदिक की जगह किसी मुस्लिम पत्रकार ने हाफिज सईद से मुलाक़ात की होती तो उसे आतंकवादी घोषित कर दिया गया होता । हंसी आती है इन मित्रों की बात पर । वेद प्रताप वैदिक तो लिट्टे के प्रभाकरन से भी मिलते रहे हैं । और की ऐसे तमाम विवादित लोगों से मिलते ही रहे हैं तमाम और पत्रकारों की तरह ।
हां, आप इसे वेद प्रताप वैदिक की खूबी मानिए या खामी सत्ता प्रतिष्ठान के आगे परिक्रमा करने और उसे साधने में उन्हें महारत हासिल है । इन दिनों उन्हें भाजपाई होने का तमगा देते लोगों को देख रहा हूं। अभी जल्दी ही उन्हें अन्ना हजारे और फिर रामदेव के साथ भी निरंतर देखा गया था। रामदेव को जब रामलीला मैदान में आधी रात गिरफ्तार किया गया और उन के अनुयायियों को तंग किया गया तो रामदेव की उस कठिन घड़ी में वेद प्रताप वैदिक उन के प्रवक्ता बन कर उपस्थित हुए थे । बाद में वह उन के थीं टेक के रूप में जाने जाने लगे ।
लेकिन मैं ने वेद प्रताप वैदिक को इंदिरा गांधी के समय भी सत्ता गलियारों में घूमते देखा है । फिर नरसिंहा राव के प्रधानमंत्री रहते समय तो वह उन के अगल-बगल देखे जाने लगे । अटल बिहारी वाजपेयी के समय भी । जब मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री बने पहली बार तो उन के हिंदी प्रेम और शासकीय काम काज में हिंदी की जब तूती बोलने लगी तो वह यही वेद प्रताप वैदिक थे जिन्हों ने तब के नवभारत टाइम्स में लेख लिखा , नाम मुलायम, काम कठोर शीर्षक से । जो तब नारा बन गया।मुलायम से उन का अनुराग अभी भी बना हुआ है । इस साल बीते सैफई महोत्सव का उद्घाटन वेद प्रताप वैदिक से ही मुलायम सिंह यादव ने करवाया ।
अब ज़माना नरेंद्र मोदी का आ गया है तो वेद प्रताप वैदिक का नाम अब नरेंद्र मोदी के साथ जुड़ गया है । और वह छाती फुला कर कह रहे हैं कि नरेंद्र मोदी को प्रधान मंत्री पद के लिए प्रस्तावित करने वाले वह पहले आदमी हैं । शायद इसी बिना पर कांग्रेसियों की सांस फूल गई है यह सोच कर ही कि कहीं वेद प्रताप वैदिक अनआफिशियली तो हाफिज सईद से मिल कर कोई डिप्लोमेटिक चाल तो नहीं चल रहे? कुल समस्या यही है इस विवाद और बवाल के पीछे । राज्य सभा में अरुण जेटली कह चुके हैं कि वेद प्रताप वैदिक का हाफिज सईद से मिलने का सरकार से कोई लेना देना नहीं है । वैदिक कह चुके हैं और कि शपथ ले कर कह चुके हैं कि वह दूत बन कर नहीं बहैसियत पत्रकार मिले हैं । चलिए मान लिया वैदिक जी । लेकिन अब उसी पत्रकारीय धर्म को निभाते हुए आप को हाफिज सईद से अपनी बातचीत के बाबत कुछ लिख कर तो बताना ही चाहिए कि आखिर बात हुई भी तो क्या हुई ? क्यों कि यह मुलाक़ात कोई आशिकाना मुलाक़ात तो है नहीं कि आप यह गाना गा कर बच निकलें कि बात हुई , मुलाक़ात हुई , क्या बात हुई, यह बात किसी से ना कहना ! बात तो आप को बतानी ही चाहिए जनाब वेद प्रताप वैदिक जी । इस लिए भी कि यह कोई व्यापारिक मसौदा या सौदा तो नहीं ही है । कि आप चुप चाप इसे पी जाएं ।
यह बात तो बहुतेरे लोग जानते हैं कि वेद प्रताप वैदिक लंबे समय तक नवभारत टाइम्स में कार्यरत थे । एक समय वह संपादक विचार भी बने । पर बहुत कम लोग यह बात जानते हैं कि वेद प्रताप वैदिक ने एक समय टाइम्स कर्मचारियों की पीठ में छुरा भी भोंका । यह अस्सी के दशक की बात है । धर्मयुग बेनेट कोलमैन का प्रतिष्ठित प्रकाशन था । नवभारत टाइम्स और टाइम्स आफ इंडिया भी इसी बेनेट कोलमैन के प्रकाशन हैं । तो धर्मयुग को बंद करने के लिए , कर्मचारियों को धता बताने के लिए बेनेट कोलमैन ने धर्मयुग को बेच दिया । पर किस के हाथ ? जानते हैं आप ?
इन्हीं वेद प्रताप वैदिक के हाथ ।
एक कर्मचारी इतना बलवान हो जाए कि अपने मालिकान का एक प्रतिष्ठित प्रकाशन खरीद ले ? वह भी टाइम्स समूह से ? यह वेद प्रताप वैदिक ने कर दिखाया । अब अलग बात है कि इस सौदे में भी कहा जाता है कि वैदिक जी ने धर्मयुग को न सिर्फ ‘खरीदा ‘ बल्कि खरीदने की भारी-भरकम रकम भी वसूली । ऐसा कहा जाता है । और नतीज़ा सामने था । धर्मयुग बंद हो गया । कोई कर्मचारी कहीं लड़ने लायक भी नहीं रह गया । किस से लड़ता भला? यह एक ऐसा दाग है वेद प्रताप वैदिक के चेहरे पर जिसे वह अपनी विद्वता , अपनी भाषा, अपनी सत्ता गलियारों में तमाम पैठ के बावजूद मिटा नहीं पाए हैं , न कभी मिट पाएगा यह दाग वेद प्रताप वैदिक के चेहरे से ।
आतंकवादी हाफिज सईद से मिलना तो कोई अपराध नहीं है, न यह कोई दाग है वेद प्रताप वैदिक के नाम पर लेकिन धर्मयुग के साथियों के साथ की गद्दारी उन के मरने के बाद भी उन्हें अपराधी ही ठहराएगी और कि यह दाग अमिट है । दाग और भी बहुत हैं वेद प्रताप वैदिक के नाम पर । पर हाफिज सईद से मिल कर वह देशद्रोही तो नहीं ही हैं यह बात मैं अपने पत्रकार साथियों से फिर दुहराना चाहता हूं । वेद प्रताप वैदिक को घेरना ही है तो उन को घेरने के लिए और भी तमाम मुद्दे हैं पर यह मुद्दा सिवाय फुलझड़ी के कुछ और नहीं है ।
लेखक दयानंद पांडेय वरिष्ठ पत्रकार और उपन्यासकार हैं. उनसे संपर्क 09415130127, 09335233424 और [email protected] के जरिए किया जा सकता है। यह लेख उनके ब्लॉग सरोकारनामा से साभार लिया गया है।
सिकंदर हयात
July 15, 2014 at 3:05 am
sikander hayat • 10 hours ago
हो सकता हे की वैदिक जी बड़बोले ही हो मगर यहाँ इस कांड में ऐसा आभास हो रहा हे की उनसे जलने वाले भी बहुत हे और वो अपना कोई हिसाब किताब बराबर कर रहे हे ? क्या हो गया जो एक पत्रकार की हैसियत से हाफिज सईद से मिल भी लिए तो ?
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visfot Mod sikander hayat • 8 hours ago
हुआ यह कि इस मुलाकात को उन्होंने इस मुलाकात से प्रचार पाने की कोशिश की. दांव उल्टा पड़ गया. यह भी हो सकता है कि एजंसियां उनसे पूछताछ करने पहुंच जाएं.
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sikander hayat visfot • an hour ago
में तो ये कह रहा हु की पत्रकार की हैसियत मिल भी लिए तो क्या गज़ब हो गया आपने भी कल रविश कुमार साहब के प्रोग्राम से रिपोर्ट लिखी देखा ही होगा की किस तरह से वो जो कह रहे थे उसमे से खुचड़ निकाले जा रहे थे ऐसा क्यों कह दिया ? वैसा क्यों कह दिया ? अंगुलिमाल क्यों कह दिया खुद को बुद्ध कह दिया अरे ठीक हे बात हो रही हे की मिल कर क्या गुनाह कर दिया ? हमने तो ठाकरे लोगो की जावेद मियांदाद से मुलाक़ात पर हंगामे को भी गलत कहा था दाऊद के समधी हो या कोई हो घर कोई आएगा तो उसका स्वागत तो किया ही जाएगा धक्के मार कर थोड़े ही निकाल दिया जाएगा
Ira Jha
July 15, 2014 at 11:08 am
Ek jankari -vaidik jee ne sirf Dharmyug nahin 10 daryaganj se nikalane vali jyadatar patrikaon–sarika ,madhuri vagairah ke title khareed lie the.par tab ye patrikashit nahinho rahi theen..doosri baat ye ki tab vaidik jee Navbharat Times me nahin the aur jahan tak mujhe yaad hai vah bhasha ka sampadak pad bhee chhod chuke the.