चंडीगढ़ से खबर आ रही है कि दैनिक भास्कर चंडीगढ़ के सिटी इंचार्ज संजीव महाजन को चंडीगढ़ पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। संजीव महाजन के खिलाफ पुलिस ने अपहरण, धोखाधड़ी, कोठी मालिक को ड्रग देने सहित कुल 10 विभिन्न धाराएं लगाई हैं। पुलिस उन्हें आज कोर्ट में पेश कर रिमांड हासिल करेगी।
जानकारों के मुताबिक महाजन गैरकानूनी कार्यों में लंबे वक्त से शामिल रहे हैं, पर अपनी अखबारी धौंस की वजह से बचते रहे हैं। महाजन को पुलिस सिक्योरिटी भी मिली हुई है। राम रहीम केस की रिपोर्टिंग के दौरान खुद पर हमले की आशंका जताते हुए खुद की हिफाजत के लिए महाजन ने चंडीगढ़ एडमिनिस्ट्रेशन से सिक्योरिटी मांगी थी।
बताते हैं कि महाजन के कथित कारनामों की शिकायत केंद्रीय गृह मंत्रालय दिल्ली को की गई थी। वहां गठित की गई एक जांच टीम ने महाजन व उनके दूसरे साथियों पर लगे आरोपों की गहन जांच पड़ताल की। जांच का यह काम पिछले दो-तीन हफ़्तों से चल रहा था। पिछले दिनों चंडीगढ़ कांग्रेस के नए अध्यक्ष की ताजपोशी कार्यक्रम के दौरान भी इस प्रकरण की अंदरखाने पत्रकारों के बीच काफी चर्चा रही।
दैनिक भास्कर चंडीगढ़ के सिटी इंचार्ज संजीव महाजन को अपहरण, धोखाधड़ी, कोठी मालिक को ड्रग्स देने आदि के विभिन्न मामलों में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद चंडीगढ़ के मीडिया जगत में हड़कंप मच गया है। 10 विभिन्न धाराओं में गिरफ्तार महाजन से पूछताछ के बाद पुलिस कुछ अन्य मीडियाकर्मियों को भी गिरफ्तार कर सकती है। इसी पूछताछ के लिए पुलिस उन्हें कोर्ट में पेश कर रिमांड पर लेगी।
महाजन को चंडीगढ़ की सेक्टर 11 थाने की पुलिस ने अरेस्ट किया है। इन मामलों में महाजन के अलावा उनके संपादकीय विभाग के कई सीनियर जूनियर सहयोगियों के नाम शामिल हैं। पूछताछ के लिए उन्हें सेक्टर 31 के थाने भी ले जाया गया। सेक्टर 17 की साइबर क्राइम पुलिस के इंस्पेक्टर देवेंदर सिंह ने महाजन की गिरफ़्तारी की पुष्टि की है। गिरफ़्तारी 1 मार्च की रात करीब 11 बजे हुई। पता चलने पर उनके अनेक शुभचिंतक पत्रकार मिलने के लिए थाने पहुंचे, पर पुलिस ने किसी को मिलने नहीं दिया।
यह भी बताया जा रहा है कि इस मामले में पुलिस ने दैनिक भास्कर के संपादक को भी थाने में बिठा रखा है। कहा जा रहा है कि इस रैकेट में कुछ पुलिस वाले और कई मीडियाकर्मी शामिल हैं। ये मामला आने वाले दिनों में काफी बड़ा रूप ले सकता है।
इस बीच सूचना है कि प्रेस क्लब चंडीगढ़ के लोग एक बैठक करने के बाद संजीव महाजन की गिरफ्तारी के मुद्दे पर चंडीगढ़ के प्रशासक से मिलने पहुंचे लेकिन प्रशासक ने इस प्रकरण में कोई मदद करने या कोई दखल देने से हाथ खड़े कर दिए हैं।
इस प्रकरण पर भड़ास एडिटर यशवंत फेसबुक पर लिखते हैं-
क्या जमाना आ गया है.
दैनिक भास्कर का सिटी इंचार्ज दूसरे की कोठी हथियाने और फर्जीवाड़ा करके बेचने में अरेस्ट हुआ है… कई अन्य पत्रकार नप सकते हैं… कई पुलिस वाले भी नपेंगे… एक गुमनाम सूचना पर गृह मंत्रालय की गोपनीय जांच में इस प्रकरण का भंडाफोड़ हुआ…
सिटी इंचार्ज को सिक्योरिटी मिली हुई थी…
शर्मनाक है यह सब कुछ. इतने बड़े मीडिया हाउस के मालिक और मैनेजर आंख-कान में तेल डाले बैठे थे क्योंकि उन्हें तो पत्रकारों से ठीकठाक धंधा मिल रहा था…
अब कैसे वे खुद को जस्टीफाई करेंगे… क्या कहेंगे कि हमको पता न था…?
आगे की कहानी पढ़ें-
Sahil
March 2, 2021 at 3:15 pm
Sab chor hai danik bhaskar chandigarh me…
Prabhu om attam bodhanand
March 5, 2021 at 9:16 am
हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक पत्रकारिता का सफर तय करने का मौका मिला जाने अनजाने गिरते पड़ते। पता नहीं जीवन में कितनी तरह का नशा हमने किया, रिपोर्टिंग की, लेकिन सबसे बड़ा नशा इंसानियत का लगा । दुख हुआ चंडीगढ़ संजीव महाजन से जुड़ी खबर सुनकर। चंडीगढ़ में दिल्ली के बाद वेतनमान अच्छा है लेकिन पत्रकारों की भौतिक तावादी भूख, नेताओं की संगत में रहकर बढ़ जाती है असलियत यह है कि संजीव महाजन के नाम पर खबर किसी दूसरे ग्रुप में भेजी होगी । संंजीव, जल्द सिटी संपादक हो गए थे। अमर उजाला से भास्कर में आये वरिंदर रावत , दैनिक जागरण चंडीगढ़ में गए तो संजीव को मौका मिल गया ।संजीव, युवा हैं डीएसपी क्राइम से लेकर पुलिस विभाग में उनके अच्छे संबंध है और भी अच्छी स्टोरी की लाते हैं कई गेम खेले होंगे ।लेकिन हमारे मित्र रहे, चंडीगढ़ में पूरे 10 साल बिताएं । अब जाकर के बेंगलुरु में संपादक होंने का मौका मिला था । संजीव महाजन का दोष क्या है आखिर, चूहा कितना खाएगा, नेता कितना खाता है । चंडीगढ़ में लगभग हर संपादक किसी न किसी सरकारी मकान को कब्जे में लीये है। नो संपादकों के मकान कैंसिल होने के बाद ,
भाइयों ने पॉलिसी बदलवा दी। जबकि उनकी सैलरी पत्रकारों से बहुत अच्छी है कोई जरूरत नहीं है । लेकिन मुफ्त का मजा लेने के शौक ने उन्हें सरकारी मकानों का कब्जा दार बना रखा है ।गवर्नर तक को पॉलिसी बदलनी पड़ी, जिससे हक मारा गया आम श्रमजीवी पत्रकार। संपादक महोदय अपना मजा लेते रहे। स्वर्गीय बाबूलाल शर्मा , नीतिश त्यागी, संजय पांडे संपादकों ने सरकारी मकान के लिए आवेदन ही नहीं किया, न सरकारी सुविधाएं ली । लेकिन हरामखोरी की आदत पड़ जाए तो छूटती नहीं है । ऐसे में अब महाजन ने कुछ किया तो क्या किया, पूरा गैंग होगा भाई, हो सकता है । चलो ,मामले की जांच होगी ।दोषी पाया जाएगा, सजा मिलेगी ।
आखिर छोटा बनकर रहने में बुराई क्या है ,कम से कम नींद अच्छी आती है । धन-संपत्ति तो यहीं छूट जाती है हमें तो ,जो आनन्द जमीन पर गद्दा या दरी बिझाकर सोने में आया , कही नहीं।