झारखण्ड पूरी तरह से चुनाव के मोड में है। सभी पार्टियां, जनता को कैसे बेवकूफ बनाने और सत्ता-सरकार का हिस्सा बनने का खेल कर रही है। पहले भी ऐसा ही होता था आज भी वही हो रहा है। लेकिन इस चुनाव से पहले एक दंगे की कहानी रखी गयी है। इसी तरह का दंगा लोकसभा चुनाव से पहले पश्चमी उत्तर प्रदेश में कराया गया था। राजनीति बदल गयी, लेकिन दंगे की आग अभी तक नहीं बुझी है। झारखण्ड के दंगे की कहानी ठीक उसी तरह लग रही है।
रांची से कोई 50 किलोमीटर की दूरी पर है चान्हो प्रखंड। और इस प्रखंड का गांव है सिलगाई। मंगलवार सुबह में एक जमीन को लेकर हिन्दू मुसलमान लड़ पड़े। एक आदमी की जान गयी और करीब 40 आदमी गंभीर रूप से लहूलुहान हुए। 49 लोग गिरफ्तार हुए हैं। यह मांदर विधानसभा का इलाका है। यहाँ से बंधू तिर्की विधायक हैं। इस घटना के 24 घंटे बाद यानी बुधवार को मैं घटना स्थल पर पहुंचा। हजारो की भीड़ लगी थी। सरकारी अमले मौजूद थे। रैफ, सैफ, जगुआर और पुलिस चप्पे चप्पे पर खड़ी थी। मेला सा मजमा था। जैसा की हमेशा होता है नेताओ की आवाजाही लग गयी।
पहले स्थानीय विधायक बंधू तिर्की पहुंचे, चप्पल, जूते दिखाए गए। तिर्की भाग खड़े हुए। तमाम तरह की देशी गालियों से उन्हें विभूषित किया गया। फिर बीजेपी वाले अर्जुन मुंडा जी अपने दल-बल के साथ पहुंचे। घटना क्यों हुयी और दोषी कौन है इस पर बातें काम हुयी, वोट बैंक की राजनीति खूब चली। फिर स्थानीय उपायुक्त पहुंचे। मृतक के परिजन को 5 लाख की राशि देने। लाश पड़ी थी। देखते देखते फिर हल्ला मचा। नेताओ को छोड़कर लोग दौड़े। मैं भी दौड़ा। भीड़ में जय श्रीराम और जा माँ काली के नारे लग रहे थे। तमाम तरह की पुलिस के बीच लोग लाठी डंडे, भाला, तीर, कुल्हाड़ी, फरसा, तलवार, गुप्ती और तमाम तरह के देशी हथियारों के साथ चारो तरफ एक खास समुदाय के लोगों को ढूंढने लगे।
लेकिन वे सब तो घटना के बाद ही अपने बाल बच्चो के साथ पलायन कर गए थे। फिर भीड़ ने उनके बंद घरो पर हमला करना शुरू किया। किवाड़ तोड़े, जंगला तोड़ा, छप्पर उखाड़े। पुलिस वोले मौन दर्शक बने खड़े रहे। फिर हल्ला हुआ की इस गांव के पड़ोसी गांव हुरहुरी में दंगा चल रहा है। लोग उस गांव की तरफ भागे। मैं भी पीछे हो लिया। देखते देखते दर्जन भर लोग लथपथ हो गए। नंगी आँखों से ऐसा मंजर कभी नहीं देखा था। इस दंगे का लाभ किस पार्टी को चुनाव में मिलेगा, नहीं पता। लेकिन यह पता चल गया की इस दंगे को रोका जा सकता था। मौत को रोका जा सकता था। कहा जा सकता की दंगे के पीछे राजनितिक खेल है।
लेखक अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।