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सुख-दुख

आईआईएमसी, जांगिड सर और राकेश उपाध्याय!

विकास मिश्र-

ये सिर्फ तस्वीरें ही नहीं है, बल्कि एक स्वर्णिम इतिहास को चमचमाते वर्तमान की आदरांजलि है। जिस कमरे की तस्वीरें दिखाई दे रही हैं वो कमरा है एशिया के सर्वश्रेष्ठ मीडिया संस्थान भारतीय जनसंचार संस्थान यानी आईआईएमसी के हिंदी विभाग के डायरेक्टर का। जो कुर्सी पर बैठे हैं, वो पत्रकारिता शिक्षण-प्रशिक्षण के भीष्म पितामह और आईआईएमसी में हिंदी पत्रकारिता के कोर्स डायरेक्टर आदरणीय प्रोफेसर रामजी लाल जांगिड हैं। उनके बगल में चश्मा लगाए जो दिखाई दे रहे हैं वो आईआईएमसी के वर्तमान कोर्स डायरेक्टर हैं प्रोफेसर राकेश उपाध्याय Rakesh Upadhyay।

आईआईएमसी में कल वर्तमान और पूर्व छात्रों का महामिलन कार्यक्रम था। कार्यक्रम में जांगिड सर को भी विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था, लेकिन दिल जीत लिया राकेश जी ने। हमारे गुरुदेव को बड़े ही आदर के साथ ले गए उनके उसी चैंबर में, जहां कभी जांगिड सर पूरी हनक के साथ बैठते थे। राकेश जी ने उन्हें डायरेक्टर की कुर्सी पर बिठाया, उनके पांव छुए और सामने बैठकर उनका आशीर्वाद लेते रहे। मैं जानता हूं कि ये पल हमारे जांगिड सर के लिए कितना खुशनुमा रहा होगा। उससे कम ये बात नहीं है कि राकेश जी के जेहन में इतना शानदार विचार आया कि कैसे उस शख्सियत का सम्मान किया जाए, जिसने संस्थान हिंदी पत्रकारिता विभाग की स्थापना की थी। तो इससे बेहतरीन सम्मान का तरीका कोई और हो नहीं सकता था।

1994-95 में जब मैं आईआईएमसी में आया था तो जांगिड सर ही हमारे डायरेक्टर थे। वे नोट्स लेकर पढ़ाने नहीं आते थे। जड़ों से जोड़कर पढ़ाते थे। पहला स्पॉट रिपोर्टर बजरंगबली हनुमान को बताते थे तो नारद से भी रिपोर्टर को जोड़ते थे। हर विषय पर पकड़ मजबूत। हम लोगों को लिखने और इंटरव्यू लेने के लिए प्रेरित करते रहते। एक से बढ़कर एक किस्से उनके पास हैं। खबर सूंघने, खबर लिखने के तरीके कहानियों के जरिए समझाते थे।
जांगिड सर की सुनाई एक कहानी मुझे अभी भी याद है। एक बड़े बिजनेसमैन की बेटी की शादी थी। संपादक ने रिपोर्टर को भेजा कवर करने के लिए। अगले दिन रिपोर्टर से पूछा- तुमने शादी कवर नहीं की..? रिपोर्टर बोला- सर क्या कवर करता, शादी के कुछ घंटे पहले ही लड़की अपने आशिक के साथ भाग गई।
जांगिड सर की कोशिश रहा करती थी कि उनका एक भी छात्र बेरोजगार न रहे। वे किसी भी बड़े पत्रकार को इसके लिए फोन करने से हिचकते नहीं थे। पूरी हनक से फोन करते थे-मेरा छात्र है, रख लो, फायदे में रहोगे। आईआईएमसी से निकले मुझे 27 साल हो गए हैं। जांगिड सर की उम्र भी 80 के आसपास हो रही होगी।संस्थान में कल मैं भी गया था, लेकिन शाम को सीधे दफ्तर से, इस नाते उनसे भेंट नहीं हो पाई थी, लेकिन राकेश उपाध्याय ने तो दिल जीत लिया।

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कार्यक्रम से एक दिन पहले ही शनिवार को राकेश भाई दफ्तर में आए थे मुझसे मिलने। करीब दो घंटे तक गप हुई थी। राकेश जी और हम आजतक में साथ-साथ थे। उनके काम करने और बात करने का अंदाज अद्भुत है। अक्सर मैं उनसे मजाक में कहता था कि आप यहां के लिए बने नहीं हैं। आपमें बड़े संत और महंत बनने की प्रबल संभावना है। जिसके लिए पानी भी चांदी के गिलास में आए। गिलास लाने वाले और ले जाने वाले चेले-चेलिनें और हों। दरअसल राकेश जी जब अपने अंदाज में बोलते हैं तो लगता है कि प्रवचन कर रहे हैं। कई मायने में उनकाअंदाज हमारे परम मित्र और वरिष्ठ पत्रकार Manoj Jha से मिलता है। फक्कड़ और सरल भी गजब के हैं। उनसे नजदीकी संबंधों ने कई बार मेरी और उनकी दोनों की सांसत की है।

जब राकेश उपाध्याय बीएचयू में प्रोफेसर बने तो मैंने उन्हें बधाई देते हुए कहा कि मेरी भविष्यवाणी का पहला चरण शुरू हो चुका है। अब वो उस संस्थान के कोर्स डायरेक्टर हैं, जहां से मैंने पत्रकारिता की पढ़ाई की है। ऐसे में रिश्तों के रसायन का और गाढ़ा होना तो तय ही था।

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