Ravish Kumar-
जर्जर समाज इस झूठ के साथ और जर्जर हो जाएगा। एक नेता की ज़िद के पीछे इतने झूठ को सहना करना ठीक नहीं है।
कोई और देश होता तो उस अस्पताल पर जाँच बैठ जाती और ईमानदारी से एक एक मौत का ऑडिट किया जाता लेकिन यहाँ झूठ के साथ चिपके रहने के बहाने ढूँढे जा रहे हैं।
किसी भी जीवित समाज के लिए इस तरह के झूठ को बर्दाश्त करना अपमानजनक है। एक अस्पताल में जितनी मौत हुई उतनी एक महीने में पूरे राज्य में। यह झूठ हम सबको खोखला कर देगा।

बंद हो गए जब झूठ के सारे दरवाज़े, दोष राज्यों पर मढ़ चले प्रधानमंत्री
सात जून के राष्ट्र के नाम संबोधन को सुनते हुए लिखना चाहिए। लिखने के बाद ध्यान से पढ़ना चाहिए। तब पता चलेगा कि इतने लोगों के नरसंहार के बाद कोई नेता किस तरह की कारीगरी करता है।कैसे वह ख़ुद को अपनी सभी जवाबदेहियों से मुक्त करता हुए, दूसरों पर दोष डाल कर जनता को एक भाषण पकड़ा जाता है। यह भाषण ठीक वैसा ही है।
एक लाइन की बात कहने के लिए दायें बायें की बातों से भूमिका बांधी गई हैं। नीति, नियत, नतीजे और न जाने न से कितने शब्दों को मिलाकर वाक्य बना लेने से ज से जवाबदेही ख़त्म नहीं हो जाती। जब लाशों की गिनती का पता नहीं, हर दूसरे तीसरे घर में मौत हुई हो, उसके बीच से ख़ुद को निर्दोष बताते हुए निकल जाना नेतागिरी की कारीगरी हो सकती है, ईमानदारी की नहीं।
टीके को लेकर शुरू से झूठ बोला गया। बिना टीके के आर्डर के दुनिया का सबसे बड़ा टीका अभियान बताया गया। जब झूठ के सारे दरवाज़े बंद हो गए तब प्रधानमंत्री ने भाषण के पतले दरवाज़े से अपने लिए निकलने का रास्ता बना लिया। यह भाषण मिसाल है कि कैसे जनता को फँसा कर ख़ुद निकल जाया जाता है। वैसे भाषण में मानवता का भी ज़िक्र आया है।