लखनऊ : हिंदी दैनिक ‘अमर उजाला’ ने दावा किया है कि उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले में उसकी प्रसार संख्या अन्य समाचारपत्रों की प्रसार संख्या की तुलना में सबसे अधिक हो गई है। अपने 17 मार्च 2015 के अंक में प्रथम पृष्ठ पर अखबार ने लखनऊ के पाठकों का शुक्रिया अदा करते हुए लिखा है कि ‘जुलाई से दिसंबर 2014 तक की ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन (एबीसी-ABC) की रिपोर्ट के अनुसार अमर उजाला अपने सभी प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में आगे निकल गया है।’
अमर उजाला के संबंध में एक और सूचना मिली है कि उसने मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों के अनुपालन में अपने अखबार कर्मियों के लिए ‘नाइट अलाउंस’ देना प्रारंभ कर दिया है। इससे उनके वेतन में 1200 रुपये तक की बढ़ोत्तरी होने का अनुमान है।
हिंदी मीडिया मार्केट में दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिंदुस्तान, भास्कर, राजस्थान पत्रिका, पंजाब केसरी आदि मुख्य प्रतिद्वंद्वी माने जाते हैं। सर्वे एजेंसियों की रिपोर्ट को अपनी अपनी सुविधानुसार आकड़ों की बाजीगरी दिखाते हुए गढ़ी सूचनाओं के माध्यम से ये अखबार अपनी अपनी पीठ थपथपाते रहते हैं। कोई कहता है, मैं पूरी दुनिया में नंबर वन, कोई पूरे हिंदुस्तान में, कोई अखबार किसी प्रदेश विशेष में तो कोई प्रदेश के किसी खास हिस्से में अपनी नंबर वन की दावेदारी ठोकता रहता है। तीन करोड़ से अधिक पाठकों में पढ़े जाने का दावा करते हुए अमर उजाला सात प्रदेशों से प्रकाशित कुल 18 संस्करणों के माध्यम में 167 जिलों तक अपनी पहुंच बखानता रहता है।
अमर उजाला की तरह ही एक अन्य हिंदी अखबार ने कुछ समय पहले किन शब्दों में अपनी पीठ थपथपाई थी, उसके ही शब्दों में पढ़िए- ‘हिन्दुस्तान की औसत अंक पाठक संख्या पिछले दौर से 20 लाख बढ़कर अब 1.42 करोड़ हो गई है। रिसर्च एजेंसी एसी नीलसन तथा एमआरसीयू द्वारा आयोजित नवीनतम आईआरएस सर्वे (आईआरएस क्यू4 2013) में औसत अंक पाठक संख्या के परिणामों के मुताबिक हिन्दुस्तान एक पायदान और आगे बढ़कर पूरे भारत में दूसरे नंबर पर आ गया है। हिन्दुस्तान के प्रतियोगी अखबारों दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर तथा अमर उजाला की पाठक संख्या में इस अवधि में कमी दर्ज की गई है। हिन्दुस्तान ने उत्तर प्रदेश में लंबे समय से दूसरे स्थान पर काबिज अमर उजाला को पीछे छोड़ दिया है।’ लीजिए, एक और दावा पढ़ लीजिए – ‘दैनिक जागरण ने 5.65 करोड़ सुधी पाठकों के साथ लगातार देश के नंबर वन समाचार पत्र का दर्जा प्राप्त कर नया कीर्तिमान बनाया है। भारतीय मीडिया के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है। दैनिक जागरण को कंज्यूमर सुपरब्रांड और बिजनेस सुपरब्रांड का दर्जा मिल चुका है।’
विज्ञापन बाजार पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखने के लिए ‘हम किसी से कम नहीं’ के अंदाज में प्रायः सभी बड़े अखबार समय समय पर ऐसे दावे-प्रतिदावे करते रहते हैं। मीडिया मार्केट की गलाकाटू प्रतिस्पर्द्धा में वह प्रसार संख्या का ढिंढोरा पाठकों के लिए कम, उन दाता कंपनियों को रिझाने-डराने के उद्देश्य ज्यादा पीटती हैं, जिनसे हर महीने उनकी करोड़ों की कमाई होती है। बाजार की प्रसारवादी भिड़ंत में पिछले साल एक रिपोर्ट जारी होने के बाद ऐसी सर्वे एजेंसियों की भूमिका भी संदिग्ध हो चली है।
ऐसे में खोजी पत्रकार एस.गुरुमूर्ति की वह टिपण्णी उल्लेखनीय हो जाती है, जिसमें वह लिखते हैं कि ‘आज बुनियादी सिद्धांतों पर चल रहे अखबारों को अंगुलियों पर गिना जा सकता है। सबसे समृद्ध अखबारों में खबर को विज्ञापनों के बीच भराव के रूप में देख सकते हैं। उनके विज्ञापन प्रबन्धक खबर और विचार के लिए नियम तय करते हैं। कभी लोकतंत्र का मजबूत खम्भा माने जाने वाले भारतीय अखबार आज अपनी जमीर और आत्मा दोनों एक साथ बेच रहे हैं। समृद्धि में बेतहाशा वृद्धि से आदर्शवाद और नैतिक मूल्य खो गए हैं। आसानी से पैसा कमाने की लत ने कई अखबारों को भ्रष्ट बना दिया है। मीडिया ने भ्रष्ट तरीके से पैसा कमाने के लिए दूसरों को भी प्रेरित किया है। कई पत्रकारों को इस भ्रष्टाचार में हिस्सा भी मिला है। वे इससे दूरी बनाने की जगह इसका जश्न मनाने लगे हैं। पांच सितारा पत्रकार आधुनिक माने जाने लगे हैं।’
Dharam Chand Yadav
March 18, 2015 at 7:38 am
dono hi chor hai