Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

अमर उजाला बनारस के संपादक वीरेंद्र आर्य ने स्वीकारा कि उनके दोनों पत्रकार निर्दोष हैं!

हर्ष कुमार-

अमर उजाला के लिए शर्म की बात! बलिया में यूपी बोर्ड परीक्षा का पेपर लीक होने का मामला पूरे प्रदेश में सुर्खियों में है। लेकिन इस मामले के कई तथ्य ऐसे हैं जिन्हें कोई नहीं जानता। इस कांड में तीन पत्रकारों को भी मुख्य अभियुक्त बनाया गया है। दो अमर उजाला ( अजित ओझा व दिग्विजय सिंह) के हैं और एक राष्ट्रीय सहारा (मनोज गुप्ता) का।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अजित ओझा बलिया जिले में ही सहायक अध्यापक के रूप में भी कार्य करता है। अमर उजाला के पत्रकारों को पेपर हाथ लगा और इसे एक्सक्लूसिव बनाने के लिए सबूत के तौर पर पेपर को स्कैन करके अखबार में छापा भी गया। जाहिर तौर पर संपादक से सहमति के बाद ही खबर छपी होगी। बलिया जिला वाराणसी यूनिट से जुड़ा है और वहां पर स्थानीय संपादक वीरेंद्र आर्य हैं।

जिस दिन से यह खबर छपी है और पेपर लीक हुआ है उस दिन से आज तक के सारे संस्करण मैंने देखे, कहीं पर भी अमर उजाला ने अपने पत्रकारों के बारे में कुछ नहीं लिखा है। उन्हें own करने की भी कोशिश नहीं की गई है। कहीं पर भी यह नहीं लिखा गया है कि पकड़े गए दो पत्रकार अमर उजाला के थे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

आरोपियों की सूची में इनका नाम साधारण अपराधियों की तरह छापा गया है। जब ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के पत्रकार ने वीरेंद्र आर्य को फोन किया तो उन्होंने ये स्वीकारा कि उन्होंने विभागीय जांच कराई है और उसमें दोनों पत्रकार निर्दोष हैं और वे उनके साथ हैं। फिर अखबार इसे लेकर खबर क्यों नहीं छाप रहा है कि अमर उजाला के पत्रकारों का शोषण किया जा रहा है?

इस प्रकरण में बलिया के जिला विद्यालय निरीक्षक को भी गिरफ्तार किया जा चुका है। एक बात बहुत साफ नजर आ रही है कि पेपर लीक हुआ तभी अखबार में छपा। अगर पत्रकार पेपर लीक कराने में शामिल होते तो इसे अखबार में नहीं छापते और पैसे कमाते। और अगर उन्हें पेपर कहीं से मिला तो तय बात है कि शिक्षा विभाग के किसी अधिकारी व कर्मचारी ने ही इसे लीक किया। जांच में जो लोग दोषी हैं उन पर कार्रवाई होनी ही चाहिए लेकिन पत्रकारों की गिरफ्तारी नाजायज है। उन्होंने अपना काम किया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

रिपोर्टिंग के दिनों में मुझे भी कई बार ऐसा हालात का सामना करना पड़ता था। हम पत्रकार एक्सक्लूसिव के चक्कर में कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं और हमारे संस्थान जरा सी बात पर अपना पल्ला झाड़कर अलग हो जाते हैं।

इस पूरे प्रकरण में अमर उजाला के संपादक, प्रबंधक, निदेशक मंडल सबकी जितनी आलोचना की जाए कम है। उन्हें खुलकर समर्थन करना चाहिए अपने पत्रकारों का। स्टोरी लिखनी चाहिए और प्रशासन की लापरवाही को उजागर करना चाहिए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इसमें पत्रकारों के लिए भी नसीहत भी छिपी है। हजार दो हजार रुपये के मानदेय के चक्कर में इतना रिस्क ना उठाएं।वैसे भी प्रिंट मीडिया धीरे धीरे दम तोड़ रहा है। फिर अमर उजाला एक खस्ताहाल हो चुका संस्थान है। यहां ब्यूरो चीफ को 15 हजार रुपये के वेतन पर रखा जा रहा है। इतने पैसे के लिए इतना जोखिम तो कतई ना उठाएं।

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement