राजीव तिवारी ‘बाबा’-
सुनने में आश्चर्य लग रहा होगा न। एक साल में तो बारह ही महीने होते हैं फिर कैसे तेरह महीने कमायेगा अंबानी? ये बबवा भी मोदी विरोध में पगला गया है। मानसिक संतुलन हिल गया है इसका। परेशान मत होइए दिमाग तो आपका भी हिलेगा जब बताउंगा कि साल के तेरह महीने ये निजी मोबाइल कंपनियां कैसे कमा रही हैं। यानि कि एक साल में एक अतिरिक्त महीने का हजारों करोड़ अतिरिक्त कैसे आपकी जेब से निकल कर उनकी जेब में जा रहा है और सरकार क्यों चुप्पी साधे बैठी है।
तो सुनिए अब। आपके यहां कोई कैलेंडर हो तो उसमें बारह महीने दिखेंगे। छे महीने ३१ दिन के, पांच महीने ३० दिन के और एक महीना २८ दिन का। ठीक न। मगर हमारे देश की निजी मोबाइल कंपनियों के दफ्तर में एक साल के तेरह महीने का रेवेन्यू कैलेंडर टंगा होता है। जो पूरी दुनिया में और कहीं नहीं है। क्योंकि अपना देश एक अनूठा देश है और इसे अनूठा बनाती है यहां की महान जनता। क्योंकि इसे चुपचाप अत्याचार शोषण लूट सहने की आदत है। दो दिन से क्या फर्क पड़ता है?
चलिए मुद्दे पर आते हैं। ऐसा मैं साबित कर दुंगा कि जियो समेत तमाम मोबाइल कंपनियों के दफ्तर में तेरह महीने का एक साल वाला कैलेंडर टंगा है और किस प्रकार ये लोग हमारी जेब से एक महीने अतिरिक्त लूट कर रहे हैं। तो सुनिए, आप अपने मोबाइल पर जब रीचार्ज कराते हैं तो टैरिफ कितने दिनों का मिलता है। २८ दिन का। क्यों भाई? पूरी दुनिया के देशों में मोबाइल कंपनियां एक महीने के तीस दिन का टैरिफ देती हैं तो फिर सिर्फ इंडिया में मोबाइल कंपनियों का टैरिफ २८ दिन का क्यों? क्योंकि इसी २८ दिन के टैरिफ से मोबाइल कंपनियां साल के बारह महीनों की जगह तेरह महीने का रेवेन्यू हमारी जेब से वसूल कर रही हैं।
३१ दिन वाले छे महीनों में से तीन दिन निकाल लीजिए (२८+३=३१)। ये हुए १८ दिन। अब फरवरी को छोड़ दें तो ३० दिन के महीने वाले महीने हुए पांच। यानि कि (२८+२=३०) दस दिन और। दोनों मिलाकर हुए (१८+१०=२८) अट्ठाइस दिन यानि कि मोबाइल कंपनियों के कैलेंडर के हिसाब से साल के एक अतिरिक्त माह का टैरिफ।
अब फर्ज कीजिए जियो के दावे के मुताबिक उसके तीस-पैंतीस करोड़ उपभोक्ता हैं। हम बीस करोड़ ही मान लेते हैं। बीस करोड़ लोग एक महीने के २८ दिन वाला २०० रुपए का ही रिचार्ज कराते हैं तो एक महीने का रेवेन्यू हुआ चार हजार करोड़ रुपए। यानि कि साल में चार हजार करोड़ रुपए हमारी जेब से अतिरिक्त लूटे गए। और ऐसी ही लूट अन्य मोबाइल कंपनियां भी मचा रही हैं कि नहीं?
इस संबंध में जियो एयरटेल व अन्य मोबाइल कंपनियों से तो पूछना भी अपराध सरीखा है। सरकार के मंत्रालय और नियामक संस्था ट्राई से आरटीआई के माध्यम से पूछे जाने पर भी कोई जवाब नहीं मिलता है कि पूरी दुनिया में तीस और इकत्तीस दिनों का स्टैंडर्ड महीना होने के बावजूद भारत में मोबाइल कंपनियों के रीचार्ज टैरिफ २८ दिनों का क्यों है? और तो और सुप्रीम कोर्ट भी इस बाबत पीआईएल को स्वीकार नहीं कर रहा है क्योंकि हमारा प्रधानमंत्री अंबानी का मित्र है। अंबानी ने समझा दिया है कि इससे सरकार को भी तो साल में एक अतिरिक्त महीने का अरबों रुपए का टैक्स बढ़ा कर मिल रहा है। जनता जाए भाड़ में।