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सियासत

सोशल मीडिया के मित्रों ने मुझे मोदी विरोधी कहते हुए हमला बोल दिया : अमोल पालेकर

हां, मैंने नोटा का बटन दबाया और बूथ के बाहर खड़े मीडिया को अपनी स्याही लगी बायें हाथ की उंगली उठा कर दिखा दिया. जी हां, मेरे विचार इन स्वार्थी लोगों से नहीं मिलते! मेरी ऐसी इच्छा भी नहीं है कि मेरे बारे में छोटी-छोटी बात दूसरे लोग जानें. शायद यही वजह है कि मुझे सोशल मीडिया और मोदी विरोधी मान लिया गया. आज ‘ब्रांडिंग’ के दौर में एक खास विचारधारा के लोग मुझ पर ठप्पा लगाने से नहीं चूक रहे. ये गजब है. या तो आप मोदी के समर्थक हैं या फिर मोदी विरोधी हैं. जिस समय मैंने ये कहा कि मोदी की आलोचना उनके कद को और ऊंचा कर देगी, मेरे आजाद ख्याल दोस्तों ने मुझे  मोदी का पक्षकार मान लिया और जिस क्षण मैंने ‘सेकुलर’ पर बात की, मेडिसन स्क्वायर से सोशल मीडिया के मित्रों ने मुझे  मोदी विरोधी कहते हुए हमला बोल दिया.

<p>हां, मैंने नोटा का बटन दबाया और बूथ के बाहर खड़े मीडिया को अपनी स्याही लगी बायें हाथ की उंगली उठा कर दिखा दिया. जी हां, मेरे विचार इन स्वार्थी लोगों से नहीं मिलते! मेरी ऐसी इच्छा भी नहीं है कि मेरे बारे में छोटी-छोटी बात दूसरे लोग जानें. शायद यही वजह है कि मुझे सोशल मीडिया और मोदी विरोधी मान लिया गया. आज 'ब्रांडिंग' के दौर में एक खास विचारधारा के लोग मुझ पर ठप्पा लगाने से नहीं चूक रहे. ये गजब है. या तो आप मोदी के समर्थक हैं या फिर मोदी विरोधी हैं. जिस समय मैंने ये कहा कि मोदी की आलोचना उनके कद को और ऊंचा कर देगी, मेरे आजाद ख्याल दोस्तों ने मुझे  मोदी का पक्षकार मान लिया और जिस क्षण मैंने 'सेकुलर' पर बात की, मेडिसन स्क्वायर से सोशल मीडिया के मित्रों ने मुझे  मोदी विरोधी कहते हुए हमला बोल दिया.</p>

हां, मैंने नोटा का बटन दबाया और बूथ के बाहर खड़े मीडिया को अपनी स्याही लगी बायें हाथ की उंगली उठा कर दिखा दिया. जी हां, मेरे विचार इन स्वार्थी लोगों से नहीं मिलते! मेरी ऐसी इच्छा भी नहीं है कि मेरे बारे में छोटी-छोटी बात दूसरे लोग जानें. शायद यही वजह है कि मुझे सोशल मीडिया और मोदी विरोधी मान लिया गया. आज ‘ब्रांडिंग’ के दौर में एक खास विचारधारा के लोग मुझ पर ठप्पा लगाने से नहीं चूक रहे. ये गजब है. या तो आप मोदी के समर्थक हैं या फिर मोदी विरोधी हैं. जिस समय मैंने ये कहा कि मोदी की आलोचना उनके कद को और ऊंचा कर देगी, मेरे आजाद ख्याल दोस्तों ने मुझे  मोदी का पक्षकार मान लिया और जिस क्षण मैंने ‘सेकुलर’ पर बात की, मेडिसन स्क्वायर से सोशल मीडिया के मित्रों ने मुझे  मोदी विरोधी कहते हुए हमला बोल दिया.

आज यही हम सबके जीवन का अभिन्न अंग बन गया है. आगे बढ़ने के लिए हम सभी लोग किसी न किसी राजनीतिक दल के हिस्से हैं, जो धर्म की वजह से पंगु हो गयी है. हिंदुत्व उस फ्लोराइड की तरह हो गया है, जो पानी में है, लेकिन नंगी आंख से दिखता नहीं है. अगर किसी का मुसलिम उपनाम है, तो वह आतंकवाद फैलाने से लेकर गुंडागर्दी समेत तमाम कई तरह की बुराइयों का संदिग्ध बन जाता है.
 
मैं इन चीजों का गहरे से अनुभव करता हूं, क्योंकि जब मेरा उपनाम पुकारा जाता है, तो मैं सजग हो जाता हूं. पिछले दिनों जब महिलाओं के खिलाफ अत्याचार मीडिया की सुर्खियों में था, मेरी छह महिला असिस्टेंट के बीच इकलौते पुरुष असिस्टेंट को कहते सुना-अगर मैं महिला विरोधी लगता हूं, तो मेरी तरफ देखो. वास्तव में इस तरह की ‘ब्रांडिंग’ लोगों को एक-दूसरे के गिरोह में शामिल करने में मदद दे रही है. है न चिंताजनक बात?

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केजरीवाल के पराभव और अपने ही कर्मो से ब्रांड आम आदमी पार्टी के कमजोर पड़ने के बाद, मीडिया ने एक सोची-समझी योजना के तहत बड़े स्तर ब्रांड मोदी का निर्माण किया. इन दोनों मामलों में देश के यंगिस्तान की बहुत बड़ी भूमिका रही. कुछ ने भ्रष्टाचार विरोधी मोरचा गढ़ लिया, तो बाकी ने हिंदुत्व ब्रिगेड की धारी पकड़ ली. ये यंगिस्तान हमारा नया टर्मिनेटर है, जो हवा बनाने में मदद करता है.
 
जब मैं महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव नतीजे टीवी पर दहाड़ते एंकर्स के मुंह से सुन रहा था, तो मेरे पास ई-मेल की बाढ़ आ गयी. इन ई-मेल में मुझ पर तरह-तरह के आरोप लगाये गये हैं. मुझे  असामाजिक और लोकतंत्र विरोधी बताया जा रहा है. लोगों का कहना है कि मैंने नोटा का बटन दबा कर बहुत बड़ा गुनाह कर डाला. कृपया मुझे  ई-मेल भेजने वाले विद्वान लोगों बताइए.. नोटा, मेरा अधिकार है. मैं चाहूं तो वोट डालूं, या बहिष्कार करूं. फिर भी यह प्रतीकात्मक ही है. यहां तक कि यदि नोटा का वोट सबसे ज्यादा वोट पानेवाले से भी ज्यादा हो, तब भी इसका यह मतलब नहीं है कि मेरी सीट से चुनाव लड़ने वाले सभी प्रत्याशी हार जायेंगे या रिजेक्ट कर दिये जायेंगे.
 
यदि मेरा नोटा का वोट अवैध मान लिया जाये, तब भी मैं उन 36 फीसदी लोगों से अलग कहां हूं, जो वोट डालने गये ही नहीं. तब मैं किस तरह से असामाजिक या गैर जिम्मेदार नागरिक हूं. मुझ पर सवाल उठाना या आरोप लगाना, तो सीधे-सीधे मेरे लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला है. मैं उन लोगों में नहीं कि मान लूं कि मेरे वोट से कोई बदलाव हो जायेगा. इससे मुझे  किसी प्रत्याशी को वापस बुलाने या उसे रिजेक्ट करने का हक भी नहीं मिलने वाला है.
 
यद्यपि मेरी आवाज दबाने की कोशिश की जा रही है, फिर भी मैं यह साफ कर देना चाहता हूं कि मैं कम और ज्यादा बुराई में से किसी एक को चुनने का हामी नहीं हूं. मेरी नजर में दो ही तरह के लोग होते हैं, एक अच्छा-दूसरा खराब. अब तीसरा कम अच्छा-कम खराब भी आ गया है. यह मेरी समझ से परे है. कोई या तो खराब होता है या अच्छा होता है. बाकी सब बकवास है.
 
ब्लैक एंड व्हाइट के रूप में सभी चीजों को देखने की अभ्यस्त दुनिया में एक संभावना ग्रे की भी होती है, जिसे मैं चाहता हूं. वैचारिक संशयों को साथ रखकर इसी ‘ग्रे’ को स्थापित करना महत्वपूर्ण संघर्ष होगा. एक बार तीसरी धारा बन जाती है, तो यह ऐसे लोगों को भी अपने साथ ला सकेगी, जो मदरसों की पढ़ाई में सुधार की जरूरत समझते हैं, जो यह कहते हैं कि वंशवाद की राजनीति में तीन फीसदी सांसद वस्तुत: इसी लोकतांत्रिक राजनीति के परिणाम हैं, भारत समाजवादी देश नहीं है की बजाय यह अब धर्मनिरपेक्ष देश नहीं है, का नारा लगानेवाले लोग भी, जो नरेगा को रद्द करने के हिमायती हो सकते हैं.
 
मैं बिना वैधानिक बहुलतावाद का त्याग किये यूनिफॉर्म सिविल कोड की वकालत कर सकता हूं. भाजपा का कट्टर कार्यकर्ता, जो वेंडी डॉनिगर के हिंदूवाद पर विचार की कटु आलोचना करता है, मगर उनकी किताब पर प्रतिबंध की जोरदार मुखालफत करता है, को भी मेरे बगल में जगह मिल सकती है.
 
शायद, कल का सूरज जब केसरिया क्षितिज पर उदित होगा मेरी ट्विटर की चिड़िया मेरे उदास साथियों को यह संदेश देगी ‘कृपया धीरज रखें, उन्हें एक उचित मौका दें.’

लेखक अमोल पालेकर अभिनेता और फिल्मकार हैं. उनका यह लिखा प्रभात खबर अखबार में छप चुका है.

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