भास्कर गुहा नियोगी-
गीतों की आंच दे रही है आंदोलन को ऊर्जा
वाराणसी। अंध विद्यालय को बंद किए जाने के विरोध में बीते एक महीने से आंदोलन कर रहे दृष्टिहीन छात्रों को गीतों से उर्जा मिल रही है डफली की थापो पर गीत गाकर इन लोगों ने अपनी हिम्मत और ताकत दोनों को बरकरार रखा है यहां तक कि आंदोलन में नारे भी काव्यात्मक शैली में लगाए जा रहे है।
वैसे तो आंदोलन की शुरुआत दृष्टिहीन छात्रों ने प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर स्कूल को खोलने के मांग के साथ की कोई जवाब न मिलने और बात न बनते देख दृष्टिहीनों ने सड़क का रूख किया फिर डफली की थाप पर गीत गूंज उठे- ऐसे दस्तूर को सुबहे बेनूर को मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता.
बीते 25 दिनों तक ये छात्र शहर के अलहदा हिस्सों कभी घाटों कभी चौराहों तो कभी जिला मुख्यालय पर गीत गाकर अपनी बात कहते रहे- हादसों के शहर में एक हादसा ऐसा हुआ.
कड़ी धूप और बरसात के बीच सड़क पर बैठे दृष्टिहीन बस इतना चाहते है कि उनका बंद स्कूल खुल जाएं चाहे इसके लिए उन्हें लम्बी लड़ाई लड़नी पड़े उनके मंसूबों में और मजबूती आती दिखाई देती है जब वो गाते है “बोल रहे साथी हल्ला बोल पूरा जोर लगा कर हल्ला बोल”.
बनारस की तारीख में शायद पहली बार शिक्षा छीन लिये जाने के विरोध में स्कूल की मांग को लेकर दृष्टि हीन छात्र सड़क पर आंदोलन कर रहे हैं. कह रहे हैं हमको शिक्षा देनी होगी, शासन से लेकर प्रशासन तक मौन है और शहर के स्थानीय जनप्रतिनिधि गायब. मगर जारी है होठों पर गीत लिए लड़ने और जीतने का जज्बा, जो गा रहा है “दबे पैरों से उजाला आ रहा है सच शगूफे सा उछाला जा रहा है….!
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-भास्कर गुहा नियोगी
बनारस
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कुमार योगेश
August 20, 2021 at 12:54 pm
भास्कर साहब नमस्कार
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