-Anil Bhaskar-
पारी समाप्ति की घोषणा… हां, कुछ ऐसा ही। 30 वर्षों तक पत्रकारिता की मुख्यधारा में सतत तरण-उत्प्लावन के बाद अब विश्राम तट पर।
हाल के महीनों में चिंतन आत्मकेंद्रित हो चला था। जीवन और सफलता के पढ़े-सुने सिद्धांतों को अपने अनुभवों के भांडे में लगातार उबालने के बाद जो शेष रहा, वह मेरे लिए एक नया जीवनदर्शन था।
आज मौका और दस्तूर दोनों उसे आपसे साझा करने की सलाह दे रहे हैं- “जीवन की सफलता वस्तुतः उस मुकाम पर पहुंचना है जहां दिमाग से जीने की मजबूरी नहीं, दिल से जीने की आज़ादी हो।”
आज़ादी का यही अहसास अंतर्मन को हर्षित-पुलकित कर रहा है। कार्यालयी विधानों के जंजाल में लगभग मूर्छित पड़ चुकी सम्वेदनाओं को पुनर्स्पन्दित कर रहा है। क्षितिज के इस पार शायद जगावलोकन, मनन, सृजन को नया विस्तार, नया आयाम, नया आलम्ब मिले।
तीन दशक के कर्मकाल में पत्रकारिता के कई रूप, कई रंग देखे। परिवर्तनों के कई दौर भी। अखबारों की श्वेत-श्याम काया को सतरंगी होते देखा। कुछ नवोन्मेषी अंतरण देखे तो कई विशुद्ध धनोन्मुख भी। हुनर पर तकनीक का अधिग्रहण देखा। और भी बहुत कुछ। इस पर विस्तार से फिर कभी।
अभी बस इतना ही कि हिंदी पत्रकारिता के स्वर्णिम युग के साक्षात्कार का गौरव अघाने सी संतृप्ति देता है। इस कालखण्ड में अर्जित-संचित ज्ञान और अनुभवों की पोटली आज भी किसी नवपल्लवित पुष्प सी सुवासित है। कालजयी स्मृतियों का अपरिमित भंडार जीवनभर रोमांचित-आह्लादित करता रहेगा, यह विश्वास भी दृढ़ है।
रब का शुक्रिया, आप सबका शुक्रिया।
वरिष्ठ पत्रकार अनिल भास्कर की एफबी वॉल से.
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